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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: कम से कम वो हिंदी तो हम बचाएं, जो पुरखे छोड़ गए हैं Politics & News

पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:  कम से कम वो हिंदी तो हम बचाएं, जो पुरखे छोड़ गए हैं Politics & News

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  • Column By Pandit Vijayshankar Mehta At Least We Should Save The Hindi Language Which Our Ancestors Have Left Behind

3 घंटे पहले

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पं. विजयशंकर मेहता

पिछले दिनों एक समाचार आया और चला भी गया। लेकिन संवेदनशील लोगों के लिए चिंता छोड़ गया। हमारे देश में लगभग 50% लोग जिस हिंदी भाषा को बोलते हैं, उसकी दुर्गति के संकेत सामने आए। स्कूल की परीक्षा का नतीजा आया और उसमें 15 लाख बच्चों में से 127 को 100 में से 100 अंक मिले।

ये अच्छी बात है, लेकिन बहुत कम बच्चे निकले, जिन्हें हिंदी का ठीक से ज्ञान है। कहते हैं संस्कृत से प्राकृत, प्राकृत से अपभ्रंश और अपभ्रंश से हिंदी बनी। लेकिन हिंदी हमारे देश का प्राण है और उसको यूं ना निचोड़ा जाए।

नई हिंदी के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र जी थे। कम से कम वो हिंदी तो हम बचाएं, जो वो छोड़ गए। जो हिंदी कभी दो भाग में थी- पुरानी हिंदी और नई हिंदी- उसका तीसरा संस्करण आरंभ हो गया है- सोशल मीडिया की हिंदी। धीरे-धीरे बच्चे हिंदी के सामान्य शब्दों का भी अंग्रेजी में अनुवाद चाह रहे हैं। पिछले दिनों मैं एक रिकॉर्डिंग के लिए स्टूडियो में गया तो चौंक गया कि हिंदी के गाने की तैयारी भी अंग्रेजी में हो रही थी!

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