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- Pt. Vijayshankar Mehta’s Column If You Feel Like Crying, Then Cry, It Is A Cheap Deal To Feel Lighter
2 घंटे पहले

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पं. विजयशंकर मेहता
माना जाता है कि कार्यस्थल पर भावनात्मक अभिव्यक्ति के मौके कम होते हैं। इसीलिए लोग दबाव में आ जाते हैं। सब कुछ हानि-लाभ, सफलता-असफलता, लक्ष्य- इसके आसपास चलता है। विदेशों में अब एक प्रयोग होने लगा है।
जापान ने इस प्रयोग को सबसे पहले किया कि कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए उन्होंने कुछ सुंदर पुरुष चुने, पुरुषों के लिए सुंदर स्त्रियां चुनीं। ये एजेंसी ऑफिस में सेवाएं देती हैं- कि काम कर रहा पुरुष या स्त्री जब परेशान हों, तो ये सुंदर स्त्री-पुरुष उनको थोड़ा रुलाते हैं, उनके आंसू बाहर निकालते हैं, तो वो हल्के हो जाते हैं।
ये प्रयोग मैंने ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी देखे हैं। अब बाकी बातें छोड़ दें, तो एक बात तय हुई कि आंसू औषधि भी हैं और हथियार भी। इसलिए आंसू आएं तो बहने दीजिए।
भारत की दृष्टि से आंसू का एक और महत्व है- आंसू दुनिया के लिए बहाएंगे, तो पानी की बूंदें बन जाएंगे। पर यही आंसू यदि ऊपर वाले की याद में गिरेंगे तो अमृत के कण बन जाएंगे। हमारे देश में पूजा को आंसुओं से जोड़ा है। इसलिए रोना आए तो जरूर रो लीजिएगा। हल्का होने का सस्ता सौदा है।
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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: रोना आए तो रो लें, हल्का होने का सस्ता सौदा है