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- Pt. Vijayshankar Mehta’s Column Happy During Hard Work And Blissful During Rest
पं. विजयशंकर मेहता
यूं तो हनुमान जी की स्तुति अलग-अलग ढंग से भक्तों ने की है, लेकिन तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में एक जगह बहुत सुंदर पंक्ति लिखी है। उत्तरकांड में वो लिखते हैं- ‘हनुमान सम नहिं बड़भागी। नहिं कोउ राम चरन अनुरागी॥’ श्रीराम बैठे हुए थे, हनुमान जी उनको पंखा कर रहे थे। यह दृश्य देख शिव जी ने पार्वती से कहा, हनुमान के समान न तो कोई बड़भागी है और न कोई राम चरणों का प्रेमी है।
शिव जी ने अनूठी बात बोली- गिरिजा, जिनके प्रेम और सेवा की स्वयं प्रभु ने अपने मुख से बार-बार बड़ाई की है। क्या ऊंचाई रही होगी हनुमान जी की, जिनका यश श्रीराम ने स्वयं गाया। हमारे परिवारों में भी हर सदस्य बड़भागी हो सकता है। हम उसके भीतर छुपी योग्यता को पकड़ें।
मंजिल पर तो सभी आनंद उठाते हैं, पर हनुमान जी यात्रा में भी आनंद लेते हैं। चलना परिश्रम है, पहुंचना विश्राम है। हनुमान जी का व्यक्तित्व परिश्रम के समय भी प्रसन्न रहता है और विश्राम में आनंदित रहता है।
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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: परिश्रम के समय प्रसन्न और विश्राम के समय आनंदित