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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: मन को विश्राम दीजिए, तब तन सही विश्राम कर सकेगा Politics & News

पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:  मन को विश्राम दीजिए, तब तन सही विश्राम कर सकेगा Politics & News

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59 मिनट पहले

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पं. विजयशंकर मेहता

कर्म और श्रम में फर्क है। कर्म तो आप कुछ ना करें तो भी एक कर्म है। लेकिन जब कर्म किसी विशेष उद्देश्य के साथ प्रकृति ने जो क्लॉक बनाई है, उसको मानकर किया जाता है तो श्रम कहलाता है। श्रीराम श्रम करने के मामले में बेजोड़ थे, लेकिन वे अपने चरित्र से सिखाते हैं कि विश्राम भी किया जाना चा​हिए।

एक पंक्ति लिखी है तुलसीदास जी ने- ‘हरन सकल श्रम प्रभु श्रम पाई। गए जहां सीतल अवरांई।’ संसार के सभी श्रमों को हरने वाले प्रभु ने हाथी, घोड़े आदि बांटने में श्रम का अनुभव किया और श्रम मिटाने को वहां गए, जहां शीतल अमराई थी।

श्रम तो राम करते ही थे, लेकिन उसके साथ विश्राम भी करते थे। विश्राम का अर्थ है श्रम हटा और ऐसा विश्राम आया, जो दोबारा श्रम करने में प्रोत्सा​हित करे। श्रम तब हटता है, जब मन गिरता है। मन बहुत भागता है। और मन जब बहुत अधिक श्रम कर लेता है तो अवसाद नाम की बीमारी आ जाती है। इसलिए मन को भी विश्राम दीजिए, तब तन सही विश्राम कर सकेगा।

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