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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: थाली में भोजन ही नहीं, सुख और दु:ख भी बंटते हैं Politics & News

पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:  थाली में भोजन ही नहीं, सुख और दु:ख भी बंटते हैं Politics & News

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  • Column By Pt. Vijayshankar Mehta Not Only Food Is Shared In The Plate, Happiness And Sorrow Are Also Shared

11 मिनट पहले

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पं. विजयशंकर मेहता

कहते हैं सभी प्राणियों में अकेली गाय ऐसी है, जिसके चार पेट होते हैं। मनुष्यों का एक पेट होता है, लेकिन गहराई से देखें तो मनुष्य का पहला पेट उसका मन है। मन- विचार और स्मृति का भोजन खाता है। अति भोजन के कारण उसको भी डायरिया होता है, जिसका नाम डिप्रेशन है।

दूसरा पेट है, दिमाग। जितनी अधिक जानकारियां इसमें भर ली जाएंगी, इसको भी अपच होगा। तीसरा पेट वह है, जिसको हम पेट कहते हैं, जहां हम भोजन रखते हैं, उतारते हैं। समय आ गया है कि पेट में भी दिमाग रखा जाए। क्या खा रहे हैं, कितना पचा रहे हैं। क्योंकि अन्न हमारी जीवनशैली पर प्रभाव डालता है, यह बात विज्ञान से भी अच्छे से साबित हो गई है।

और अब तो मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि पेट का दिल तभी अच्छा रहता है, जब परिवार के साथ भोजन किया जाए। क्योंकि थाली में भोजन ही नहीं, सुख और दु:ख भी बंटते हैं। किशोर उम्र की संतानें यदि घरवालों के साथ भोजन करें तो उनका डिप्रेशन दूर होता है। विज्ञान का यह शोध ऋषि-मुनियों की बात को प्रमाणित कर रहा है। इसलिए अन्न के मामले में अपने सारे पेटों पर ठीक से काम करिए।

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