तीन माह की सजा के मामले में 26 साल तक कोर्ट के चक्कर लगाते हुए जवानी से बुढ़ापा आ गया, अब उसे कैसे जेल भेजा जा सकता है, यह न्याय के हित में नहीं होगा।
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कोर्ट ने याचिकाकर्ता की काटी गई 7 दिन की सजा को ही पूरी सजा मानने का निर्देश देते हुए मामले का निपटारा कर दिया। कोर्ट ने कहा कि संविधान के तहत तेजी से और निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार अत्यंत मूल्यवान और बुनियादी अधिकार है।
हिसार के दुकानदार आदित्य के पास से खरीदी गई दाल की जांच में उसमें रंग की मिलावट पाई गई थी। उस समय उसकी उम्र 27 वर्ष थी। 2007 में हिसार के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) ने उसे दोषी ठहराते हुए तीन महीने की सजा और 500 रुपये का जुर्माना लगाया था।
सेशन कोर्ट में उसकी अपील 2010 में खारिज हो गई। इसके बाद उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने उसकी सजा पर रोक लगा दी थी लेकिन लंबित मामलों की संख्या के कारण यह केस 15 साल तक नहीं सुना गया। 2025 में यह मामला सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हुआ, आरोपी की उम्र 53 वर्ष हो चुकी थी।
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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा- कोर्ट के चक्कर लगाते जवानी से बुढ़ापा आ गया… अब कैसे भेज दें जेल, केस खत्म