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पंजाब के सीएम भगवंत मान, दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल, पंजाब कांग्रेस प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग, पंजाब BJP प्रधान सुनील जाखड़ और अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल।
पंजाब में लुधियाना की वेस्ट विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) ने जीत हासिल की है। इस जीत ने जहां पार्टी के लिए 2027 के विधानसभा चुनाव की जमीन और मजबूत कर दी है, वहीं यह स्पष्ट संकेत भी दिया है कि पंजाब में सत्ता विरोधी लहर अभी आम आ
.
इस चुनाव में AAP को अपना उम्मीदवार पहले घोषित करने का बड़ा फायदा मिला। चुनाव घोषित होने तक संजीव अरोड़ा ने जमीनी स्तर तक खुद को मजबूत किया। बुनियादी सहूलियतों को सुधारने से लेकर लोगों की समस्याओं को सुलझाने के लिए खुद संजीव अरोड़ा आगे बढ़े।
इसके अलावा AAP सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल व सीएम भगवंत मान के प्रचार व अरोड़ा को कैबिनेट में शामिल करने के वादे का फायदा सीधे तौर पर मिला है। वहीं, कांग्रेस और भाजपा को बड़े नेताओं की प्रचार से दूरी और अंतर्कलह ले डूबी।
AAP कैसे जीती, 4 पॉइंट में समझिए
- CM मान और केजरीवाल के प्रचार से फायदा: अरविंद केजरीवाल और CM भगवंत मान ने सीट खाली होने के बाद ही संजीव अरोड़ा के नाम की घोषणा कर दी थी। इसके बाद अरविंद केजरीवाल और सीएम मान कई बार उनके लिए प्रचार करने आए। इंडस्ट्रलिस्ट से वादा किया कि उनके कार्य आसान किए जाएंगे। मजदूरों के लिए वेलफेयर पॉलिसी लाने का वादा किया। इसके अलावा संजीव अरोड़ा को कैबिनेट तक पहुंचाने का वादा भी किया, जिसे लोगों ने स्वीकारा है।
- मुफ्त बिजली व राशन का मिला फायदा: लुधियाना ईस्ट में एक बड़ा हिस्सा स्लम एरिया में आता है, जहां इंडस्ट्रियों में काम करने वाले मजदूर रहते हैं। हर महीने 600 यूनिट बिजली और राशन मुफ्त मिलने का फायदा भी आम आदमी पार्टी को मिला।
- सत्ता में रहने का मिला फायदा: ये सीट पहले भी आम आदमी पार्टी के पास थी, लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी का वोट शेयर बढ़ा है। 2027 के विधानसभा चुनाव में तकरीबन डेढ़ साल अभी भी पड़ा है। तब तक आम आदमी पार्टी स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में है। ऐसे में वोटरों ने उन्हें चुना, ताकि आने वाले डेढ़ साल इलाके के कामों को प्राथमिकता मिलती रहे।
- वोट प्रतिशत रहा काफी कम: इस चुनाव में 51.33 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। इस उपचुनाव में 14 उम्मीदवार थे। इसका फायदा भी पार्टी को मिला। अगर वोट प्रतिशत 65 फीसदी से अधिक होता तो कांग्रेस या विपक्षीय दलों को इसका फायदा पहुंच सकता था। क्योंकि पिछले चुनावों में ऐसा दिखा है।

AAP सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और पंजाब CM भगवंत मान की संजीव अरोड़ा के लिए प्रचार करते वक्त की तस्वीर।
कांग्रेस क्यों हारी…
- बड़े नेताओं की अनुपस्थिति और अंदरूनी कलह: पंजाब कांग्रेस के प्रधान एवं लुधियाना से सांसद अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग कांग्रेस उम्मीदवार भारत भूषण आशु के नामांकन पर तो पहुंचे थे, लेकिन उनके हक में प्रचार करते नहीं दिखे। इसके बाद उनके करीबी सिमरजीत सिंह बैंस भी हक में नहीं आए। प्रताप बाजवा भी प्रचार करने नहीं पहुंचे। सिमरजीत सिंह बैंस से 36 का आंकड़ा रखने वाले कमलजीत सिंह कड़वल को पार्टी जॉइन करवाने के बाद आशु को और भी अधिक नुकसान झेलना पड़ा।
- समर्थकों में उत्साह की कमी, कम मतदान: इस बार इस सीट पर सिर्फ 51.3% मतदान हुआ। कम मतदान में कांग्रेस समर्थक वर्गों में उत्साह की कमी दिखी, लोकल लीडरशिप भी साथ नहीं चली। सीनियर नेता संजय तलवाड़ भी नहीं दिखे। कई लोकल लीडरों ने न प्रचार किया और न ही चुनाव के दौरान वोटरों को उत्साहित किया। यही कारण है कि वोट प्रतिशत भी कांग्रेस का गिरा।
- AAP की सक्रियता और नीतियां : AAP को मुफ्त बिजली और राशन का सबसे अधिक फायदा हुआ है। गरीब परिवार AAP के साथ खड़े दिखे। कांग्रेस ने AAP की घोषणाओं और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाकर धरना दिया, लेकिन इसका ज्यादा असर नहीं दिखा।

भाजपा कहां पिछड़ी…
- उम्मीदवार को मिला प्रचार का सीमित समय: भाजपा ने जीवन गुप्ता को टिकट देने का ऐलान अंतिम समय में किया, जिससे उन्हें पूरे क्षेत्र में प्रचार करने और संगठन को सक्रिय करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया। नामांकन और प्रचार के बीच का समय बेहद कम था, जिससे गुप्ता की पहचान जनता के बीच नहीं बन पाई।
- संगठन कमजोर और गुटबाजी: पार्टी के स्थानीय और राज्य स्तरीय नेताओं में तालमेल की कमी दिखी। प्रचार में केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू सहित कुछ नेता सक्रिय रहे, परंतु कैडर वर्कर सामने नहीं आया। 2022 के चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे भाजपा के विक्रम सिद्धू प्रचार से दूर रहे। विक्रम टिकट के दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने उनकी जगह जीवन गुप्ता को टिकट दे दी।
- कम मतदान ने भाजपा को नुकसान पहुंचाया: 51.33% कम मतदान का सीधा असर भाजपा पर पड़ा, क्योंकि पार्टी का वोट बैंक पारंपरिक रूप से शहरी और व्यवसायिक वर्ग में रहा है, जो इस बार मतदान केंद्रों तक कम संख्या में पहुंचे।
- भाजपा का राष्ट्रीय मुद्दों पर प्रचार : भाजपा का प्रचार राष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्रित रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगे गए। जबकि मतदाता स्थानीय विकास, ट्रैफिक, सफाई और व्यापारिक समस्याओं का समाधान चाहते थे।

भाजपा उम्मीदवार जीवन गुप्ता के प्रचार में केंद्रीय राज्य मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू सहित कुछ नेता ही सक्रिय रहे।
अकाली दल के पिछड़ने की 2 वजहें…
- शहरी क्षेत्रों में कमजोर पकड़, पार्टी वोटर टूटा, आप में जुड़ा: लुधियाना का वेस्ट हल्का शहरी क्षेत्र में है, जबकि शिरोमणि अकाली दल की परंपरागत पकड़ ग्रामीण व सिख बाहुल्य क्षेत्रों में है। भाजपा से गठजोड़ टूटने के बाद से ही कैडर वोटर अकाली दल से दूर हो चुका है। 2022 के बाद काफी बड़ी संख्या में वोटर आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ चुका है। पार्टी की अंतर्कलह के कारण वे वापस अकाली दल पर यकीन करने को अभी तैयार नहीं है।
- सुखबीर ने प्रचार की कमान संभाली, लेकिन रिस्पॉन्स नहीं मिला: शिरोमणि अकाली दल का चुनाव प्रचार कमजोर दिखा। सुखबीर बादल खुद प्रचार के लिए आए, लेकिन वोटरों ने उन्हें वो रिस्पॉन्स नहीं दिया, जो 2017 से पहले मिलता रहा है। सोशल मीडिया और जमीनी स्तर पर बूथ मैनेजमेंट भी लगभग न के बराबर रहा।
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पंजाब में लुधियाना की वेस्ट विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) ने जीत दर्ज कर ली है। AAP उम्मीदवार संजीव अरोड़ा ने कांग्रेस के भारत भूषण आशु को 10637 वोटों से हराया। वहीं, तीसरे नंबर पर BJP के जीवन गुप्ता और चौथे नंबर पर शिरोमणि अकाली दल के परउपकार सिंह घुम्मन रहे। पूरी खबर पढ़ें…
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