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पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने भारतीय नौसेना भर्ती मामले में एक बड़ा फैसला सुनाते हुए साफ किया है कि किसी भी भर्ती एजेंसी को यह अधिकार नहीं है कि वह केवल अयोग्य लिखकर उम्मीदवार को खारिज कर दे।
अदालत ने कहा कि जब तक भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता नहीं बरती जाती और ठोस कारण सामने नहीं रखे जाते तब तक किसी की उम्मीदवारी खारिज करना न्यायसंगत नहीं है। इसी आधार पर कोर्ट ने भारतीय नौसेना को आदेश दिया कि वह युवक को 2.5 लाख रुपये मुआवजा दे।
दीपक सिंह ने 2018 में भारतीय नौसेना में सीनियर सेकेंडरी रिक्रूट पद के लिए आवेदन किया था। दीपक ने बताया कि शारीरिक फिटनेस परीक्षा में उसने दौड़ और स्क्वैट्स सफलतापूर्वक पूरे कर लिए थे लेकिन जैसे ही उसने पुश-अप्स शुरू किए एक परीक्षक ने बिना कोई कारण बताए उसे मैदान से बाहर जाने को कह दिया। याचिकाकर्ता ने लिखित स्पष्टीकरण मांगा और बाद में कई बार पत्राचार किया लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला। नतीजतन उसकी उम्मीदवारी खारिज कर दी गई।
नौसेना की ओर से अदालत में दलील दी गई कि उम्मीदवार को मानक नियमों के अनुसार अयोग्य घोषित किया गया था। अन्य 16 उम्मीदवार भी असफल हुए थे। लेकिन नौसेना न तो रिजल्ट शीट में और न अपने जवाब में यह बता पाई कि दीपक को किस आधार पर असफल करार दिया गया।
जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने सुनवाई के बाद कहा कि सात साल बीतने के बाद अब दीपक अधिकतम आयु सीमा पार कर चुका है और नौसेना भर्ती में शामिल होने का उसका हक खत्म हो गया है। ऐसे में उसे न्याय दिलाने का एकमात्र रास्ता मुआवजा ही है।
कोर्ट ने नौसेना को आदेश दिया कि दीपक को 2.5 लाख रुपये क्षतिपूर्ति दी जाए। कोर्ट ने टिप्पणी की कि भर्ती एजेंसियां मानक तय करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन वे संविधान के निष्पक्षता, समानता और पारदर्शिता जैसे मूल सिद्धांतों से बंधी हैं। किसी उम्मीदवार को बाहर करने की स्थिति में एजेंसी पर जिम्मेदारी होती है कि वह ठोस कारण प्रस्तुत करे।
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नौसेना भर्ती में बिना कारण अयोग्य ठहराया: सात साल बाद हाईकोर्ट ने माना अन्याय, 2.5 लाख का मुआवजा देने का आदेश