नेशनल खिलाड़ी बनकर बेटियों ने किया मां का अधूरा सपना पूरा


अपनी मां वीना के साथ तीनों खिलाड़ी शिवानी, डिंपल व भूमिका । संवाद

अपनी मां वीना के साथ तीनों खिलाड़ी शिवानी, डिंपल व भूमिका । संवाद
– फोटो : Sirsa

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बलविंद्र स्वामी
सिरसा। खेल के मैदान में जिस मां का सपना अधूरा रह गया था उसे उसकी तीन बेटियों ने साकार कर दिखाया। तीनों बहनों ने चुनौतियों का सामना कर उसे पार किया। इसके लिए न तो पिता को मजबूर किया और न ही मां को विफल होने का कभी अहसास होने दिया। आज माता-पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है जब कोई उन्हें बेटियों के नाम से जानता है।
कंगनपुर रोड स्थित कॉलोनी निवासी शिवानी, डिंपल व भूमिका तीनों सगी बहने जूडो की नेशनल खिलाड़ी हैं। एक ही परिवार से तीनों बेटियों का एक साथ नेशनल स्तर तक पहुंचना भी कोई इत्तफाक नहीं है, बल्कि इसके पीछे तीनों बहनों की कड़ी मेहनत और मां के अधूरे सपने को पूरा करना था।
इन बेटियों की मां वीना खो-खो की खिलाड़ी होने के साथ ही खेल के प्रति गहरा लगाव था। महज तीसरी कक्षा के दौरान 11 साल की उम्र में उनका बाल विवाह हो गया, लेकिन जैसे तैसे दो साल और खेलने का अवसर मिला। ग्रामीण परिवेश व सामाजिक बंदिशों के चलते पांचवीं कक्षा के बाद स्कूल और खेल से नाता तोड़ना पड़ा। हालांकि उनकी बेटियों ने खेल के मैदान में बेहतर प्रदर्शन किया। शिवानी ने 13 वर्ष की उम्र में 5वीं कक्षा से जूडो का अभ्यास किया और 6 बार नेशनल स्तर पर गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं। उनकी तीसरी बेटी डिंपल जूडो में नेशनल स्तर पर 2 गोल्ड, 1 सिल्वर तथा एक कांस्य सहित 4 बार मेडल हासिल कर चुकी है। चौथी बेटी भूमिका का चयन हाल ही में नेशनल स्तर के लिए हुआ है। उनकी बड़ी बेटी निशा अध्ययन कर रही है। सभी बेटियां खेल के साथ-साथ शिक्षा भी ग्रहण कर रही है। संवाद
शिवानी ने खेल के लिए 3 बार छोड़ दी परीक्षा
दूसरी बेटी शिवानी का खेल के प्रति गहरा लगाव है। इसलिए 11 वीं की पढ़ाई के दौरान खेल प्रतियोगिता के लिए 3 बार परीक्षा बीच में ही छोड़ दी। इसके अलावा साइकिल दौड़ में भी उपलब्धि रही है कि पूरी सिरसा का चक्कर लगाने की साइकिल प्रतियोगिता में वह प्रथम रही थी, जिसमें इनाम के रूप में साइकिल हासिल हुई।
माता-पिता करते हैं मजदूरी
माता वीना ने बताया कि वह तथा उनके पति श्योपाल पेशे से मजदूर हैं। आज उन्हें गर्व महसूस होता है जब बेटियां मेडल लेकर आती हैं। बेटियों के खेल में बेहतर प्रदर्शन की वजह से छात्रवृत्ति मिल रही है, जिससे उनकी डाइट और खेल से संबंधित सभी जरूरतें पूरी हो जाती हैं।

बलविंद्र स्वामी

सिरसा। खेल के मैदान में जिस मां का सपना अधूरा रह गया था उसे उसकी तीन बेटियों ने साकार कर दिखाया। तीनों बहनों ने चुनौतियों का सामना कर उसे पार किया। इसके लिए न तो पिता को मजबूर किया और न ही मां को विफल होने का कभी अहसास होने दिया। आज माता-पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है जब कोई उन्हें बेटियों के नाम से जानता है।

कंगनपुर रोड स्थित कॉलोनी निवासी शिवानी, डिंपल व भूमिका तीनों सगी बहने जूडो की नेशनल खिलाड़ी हैं। एक ही परिवार से तीनों बेटियों का एक साथ नेशनल स्तर तक पहुंचना भी कोई इत्तफाक नहीं है, बल्कि इसके पीछे तीनों बहनों की कड़ी मेहनत और मां के अधूरे सपने को पूरा करना था।

इन बेटियों की मां वीना खो-खो की खिलाड़ी होने के साथ ही खेल के प्रति गहरा लगाव था। महज तीसरी कक्षा के दौरान 11 साल की उम्र में उनका बाल विवाह हो गया, लेकिन जैसे तैसे दो साल और खेलने का अवसर मिला। ग्रामीण परिवेश व सामाजिक बंदिशों के चलते पांचवीं कक्षा के बाद स्कूल और खेल से नाता तोड़ना पड़ा। हालांकि उनकी बेटियों ने खेल के मैदान में बेहतर प्रदर्शन किया। शिवानी ने 13 वर्ष की उम्र में 5वीं कक्षा से जूडो का अभ्यास किया और 6 बार नेशनल स्तर पर गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं। उनकी तीसरी बेटी डिंपल जूडो में नेशनल स्तर पर 2 गोल्ड, 1 सिल्वर तथा एक कांस्य सहित 4 बार मेडल हासिल कर चुकी है। चौथी बेटी भूमिका का चयन हाल ही में नेशनल स्तर के लिए हुआ है। उनकी बड़ी बेटी निशा अध्ययन कर रही है। सभी बेटियां खेल के साथ-साथ शिक्षा भी ग्रहण कर रही है। संवाद

शिवानी ने खेल के लिए 3 बार छोड़ दी परीक्षा

दूसरी बेटी शिवानी का खेल के प्रति गहरा लगाव है। इसलिए 11 वीं की पढ़ाई के दौरान खेल प्रतियोगिता के लिए 3 बार परीक्षा बीच में ही छोड़ दी। इसके अलावा साइकिल दौड़ में भी उपलब्धि रही है कि पूरी सिरसा का चक्कर लगाने की साइकिल प्रतियोगिता में वह प्रथम रही थी, जिसमें इनाम के रूप में साइकिल हासिल हुई।

माता-पिता करते हैं मजदूरी

माता वीना ने बताया कि वह तथा उनके पति श्योपाल पेशे से मजदूर हैं। आज उन्हें गर्व महसूस होता है जब बेटियां मेडल लेकर आती हैं। बेटियों के खेल में बेहतर प्रदर्शन की वजह से छात्रवृत्ति मिल रही है, जिससे उनकी डाइट और खेल से संबंधित सभी जरूरतें पूरी हो जाती हैं।

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