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नेपाल: 6 पार्टियों के टॉप लीडर्स को हटाने की मांग: कहा- पुराने चेहरे बर्दाश्त नहीं करेंगे; एक सप्ताह से गायब नेताओं ने अब तक पद नहीं छोड़ा Today World News

नेपाल: 6 पार्टियों के टॉप लीडर्स को हटाने की मांग:  कहा- पुराने चेहरे बर्दाश्त नहीं करेंगे; एक सप्ताह से गायब नेताओं ने अब तक पद नहीं छोड़ा Today World News

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काठमांडू48 मिनट पहले

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नेपाल में हुए जेन-जी आंदोलन का असर सभी प्रमुख दलों पर पड़ा है। इनके भीतर नेतृत्व परिवर्तन और पार्टी के पुनर्गठन की आवाज तेज हो गई है। जो नेता अब तक अपनी ही पार्टी में बदलाव की धीमी आवाज उठा रहे थे, वे अब खुलकर कह रहे हैं कि मौजूदा नेतृत्व बदलना होगा।

नेपाल में पिछले एक सप्ताह में सरकार ही नहीं गिरी, संसद भी भंग हो गई और देश में गैर-दलीय अंतरिम सरकार बनानी पड़ी। लोगों को उम्मीद थी कि पुराने नेता हालात की जिम्मेदारी लेकर इस्तीफा देंगे और नई पीढ़ी को रास्ता देंगे। लेकिन एक हफ्ता बीतने के बाद भी किसी बड़े नेता ने पद नहीं छोड़ा है।

बीबीसी नेपाली की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगले साल फरवरी में होने वाले चुनाव से पहले कई दल अपने शीर्ष नेतृत्व में बदलाव करने को मजबूर होंगे। हालिया विरोध ने यह साफ कर दिया है कि जनता अब पुराने चेहरों को स्वीकार करने के मूड में नहीं है।

इस बीच, युवाओं के दबाव में छह अहम दलों के 16 वरिष्ठ नेताओं ने एक संयुक्त बयान जारी किया। इसमें कहा गया कि भाई-भतीजावाद खत्म करना होगा और नई पीढ़ी को आगे लाने का माहौल बनाना जरूरी है। नेताओं ने यह भी स्वीकार किया कि लंबे समय तक कुछ चेहरों का सत्ता पर कब्जा ही मौजूदा राजनीतिक संकट की जड़ है।

प्रदर्शनकारियों ने 9 सितंबर को संसद भवन पर कब्जे के बाद उत्पात मचाया था। उन्होंने सुरक्षाकर्मियों के हथियार भी लूट लिए थे।

प्रदर्शनकारियों ने 9 सितंबर को संसद भवन पर कब्जे के बाद उत्पात मचाया था। उन्होंने सुरक्षाकर्मियों के हथियार भी लूट लिए थे।

देउबा इलाज करा रहे, खड़का पार्टी चला रहे

नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेरबहादुर देउबा, जो 5 बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं, छठी बार कार्यकारी अध्यक्ष बनने का इंतजार कर रहे थे। इतना ही कांग्रेस–UML गठबंधन के समझौते के हिसाब से अगले साल पीएम बनने की बारी उनकी थी लेकिन लेकिन जेन-जी आंदोलन ने गठबंधन सरकार ही गिरा दी।

देउबा की उम्र अब अस्सी साल से ऊपर हो चुकी है। वे दशकों से नेपाली कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं, यह वही पार्टी है जो लोकतंत्र आने से पहले ही स्थापित हो गई थी। 24 जुलाई को जब प्रदर्शनकारी उनके घर बुधनीलकांठा पहुंचे, तो उन्होंने और उनकी पत्नी आरजू राणा को पीटा और घर से बाहर निकाल दिया।

उनका घर जल गया और वे अपनी आंखों के सामने सबकुछ नष्ट होता देख रहे थे। सुरक्षाकर्मियों ने बड़ी मुश्किल से दोनों को बचाया और सुरक्षित जगह ले गए। यह बेहद अजीब था कि जिसने पचास साल से ज्यादा समय तक लोकतंत्र के लिए संघर्ष किया, उसे अपने ही घर से इस हालत में भागना पड़ा।

इस बीच नेपाली कांग्रेस महासचिव गगन थापा ने एक वीडियो मैसेज में कहा कि मौजूदा नेतृत्व पार्टी को जनता से नहीं जोड़ सकता। कांग्रेस के नेता और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री प्रदीप पौडेल ने तो साफ कहा है कि पार्टी नेतृत्व तत्काल इस्तीफा दे और छह महीने में आम अधिवेशन बुलाकर नई लीडरशिप चुनी जाए।

फिलहाल देउबा प्रदर्शनकारियों के हमले में घायल होने के बाद अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। बताया गया है कि उन्होंने पार्टी की जिम्मेदारी उपाध्यक्ष पूर्णबहादुर खड़का को सौंप दी है।

प्रदर्शनकारियों ने 9 सितंबर को पूर्व पीएम शेर बहादुर देउबा और उनकी पत्नी विदेश मंत्री आरजू राणा को उनके घर में घुसकर पीटा था।

प्रदर्शनकारियों ने 9 सितंबर को पूर्व पीएम शेर बहादुर देउबा और उनकी पत्नी विदेश मंत्री आरजू राणा को उनके घर में घुसकर पीटा था।

ओली के 4 घर जलाए गए, एक सप्ताह से गायब हैं

नेपाल में 3 बड़ी वामपंथी पार्टियां हैं। पूर्व पीएम केपी ओली की CPN-UML, पूर्व पीएम प्रचंड की CPN माओवादी सेंटर और पूर्व पीएम माधव कुमार नेपाल की CPN यूनिफाइड सोशलिस्ट। तीनों पार्टियों में टॉप लीडर्स को हटाने की पहल तेज हो गई है।

यूएमएल के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली पिछले एक दशक से पार्टी के शीर्ष पर हैं और 4 बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं। उनकी पार्टी ने हाल ही में संविधान बदलकर यह सुनिश्चित किया था कि वे अगले अधिवेशन में भी अध्यक्ष बने रहें। लेकिन वही जेन-जी आंदोलन उनकी सरकार गिराने की वजह बना।

प्रदर्शनकारियों ने ओली के सरकारी घर के अलावा उनके 2 निजी घरों, यहां तक कि तेहराथुम के अथराई स्थित उनके जन्मस्थान तक में आगजनी और तोड़फोड़ की। आखिरकार ओली को सेना की बैरक में शरण लेनी पड़ी। यह वही ओली हैं जिन्होंने पंचायत काल में चौदह साल जेल में बिताए थे। ऐसे नेता को इस तरह अपनी ही जनता से बचने के लिए भागना पड़ा।

प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री ओली के निजी आवास में आग लगा दी थी।

प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री ओली के निजी आवास में आग लगा दी थी।

सेना की बैरक में अच्छे दिनों का इंतजार कर रहे प्रचंड

माओवादी अध्यक्ष प्रचंड का हाल भी कुछ ऐसा ही रहा। उन्होंने दस साल तक सशस्त्र संघर्ष चलाया और लोकतंत्र के लिए लड़े। वे 3 बार प्रधानमंत्री बने और 37 साल से पार्टी के शीर्ष पर हैं। लेकिन जेन-जी आंदोलन का नुकसान उन्हें भी उठाना पड़ा। शांति प्रक्रिया के बाद बीस साल में पहली बार उन्हें सेना की बैरक में शरण लेनी पड़ी। प्रदर्शनकारियों ने उनके घर को आग के हवाले कर दिया और सबकुछ नष्ट कर दिया।

एक और वामपंथी पार्टी CPN यूनिफाइड सोशलिस्ट के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल की भी हालत भी ऐसी ही रही। आंदोलनकारियों ने उनके घर में भी आग लगा दी। सुरक्षाकर्मी उन्हें बचाकर सेना की बैरक ले गए।

CPN यूनिफाइड सोशलिस्ट के एक और नेता झालानाथ खनाल, जो 2039 से 2046 बीएस तक माले के महासचिव रहे और 2065 बीएस में यूएमएल के अध्यक्ष बने, अब एकीकृत समाजवादी पार्टी में वरिष्ठ नेता हैं। दल्लू स्थित उनके घर को भी प्रदर्शनकारियों ने आग लगा दी। उनकी पत्नी रविलक्ष्मी चित्रकार बुरी तरह जल गईं।

प्रदर्शनकारियों ने नेपाल के पूर्व पीएम झालानाथ खनाल के घर में आग लगा दी। इसमें उनकी पत्नी गंभीर रूप से झुलस गईं।

प्रदर्शनकारियों ने नेपाल के पूर्व पीएम झालानाथ खनाल के घर में आग लगा दी। इसमें उनकी पत्नी गंभीर रूप से झुलस गईं।

देउबा, ओली और प्रचंड को राजनीति से संन्यास की सलाह

कांग्रेस महासचिव गगन थापा और विश्वप्रकाश शर्मा कहते हैं कि मौजूदा नेतृत्व रहते न पार्टी सुधर सकती है, न जनता की इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। थापा ने कहा, “जब हम अपने अध्यक्ष और नेताओं पर ही हमला करने लगते हैं, तो यह बताता है कि हम कितने खोखले हो चुके हैं। पार्टी इस प्रक्रिया से नहीं चल सकती। बदलाव तभी होगा जब नेतृत्व, कानून और पूरी कार्यशैली बदल दी जाए।”

शर्मा कहते हैं कि अब समय आ गया है कि पुराने नेता सक्रिय राजनीति छोड़कर संरक्षक की भूमिका निभाएं। वे साफ कहते हैं कि देउबा, ओली और प्रचंड को राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए।

राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर कृष्ण पोखरेल कहते हैं कि यह सब इसलिए हुआ क्योंकि नेताओं ने राजनीति को सेवा नहीं, बल्कि पेशा बना लिया। उनके अनुसार, “अगर सेवानिवृत्ति की व्यवस्था न होती तो सरकारी कर्मचारी भी नौकरी नहीं छोड़ते। राजनीति में आजीवन बने रहने का चलन फल-फूल रहा है। यही समस्या की जड़ है।”

उनका मानना है कि मौजूदा घटनाओं ने कांग्रेस और यूएमएल दोनों को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। उनका कहना है, “अब नेतृत्व संभालने का समय है। लेकिन आज के नेता राज्य को शोषण का ज़रिया बना चुके हैं। सुधार की कोई गुंजाइश नहीं बची। ये नेता पार्टी नेतृत्व से बाज़ की तरह चिपके हुए हैं और उनके जाने का कोई संकेत नहीं है।”

जानकारों का मानना है कि वामपंथी पार्टियों का अस्तित्व अब तभी बच सकता है जब वे पुनर्गठन करें। उनके मुताबिक, जो पार्टियां नए नेतृत्व को लेकर बदलाव करेंगी, वे फिर खड़ी हो जाएंगी, लेकिन जो ऐसा नहीं करेंगी, वे खत्म होने के खतरे में पड़ जाएंगी।

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