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17 मिनट पहले

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नीरज कौशल, कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर
ट्रम्प के टैरिफ दुनिया की दहलीज पर आन खड़े हुए हैं। वे विश्व-अर्थव्यवस्था को किस तरह का नुकसान पहुंचाएंगे, यही सवाल आज हर किसी के दिमाग में है। क्या इससे ट्रेड-वॉर होंगे? क्या ये मुद्रास्फीति को बढ़ाएंगे? क्या वे वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में गंभीर बदलाव लाएंगे? क्या उनके कारण दुनिया का कारोबार घटेगा और इसी के चलते क्या वैश्विक-अर्थव्यवस्था का आकार भी सिकुड़ेगा?
इन तमाम सवालों का सीधा-सा उत्तर यह है कि हम नहीं जानते हैं और हमें अभी बहुत समय तक पता नहीं चलेगा। नुकसान की सीमा केवल अमेरिकी टैरिफ दरों पर ही नहीं, बल्कि इस बात पर भी निर्भर करेगी कि उच्च टैरिफ का सामना करने वाले देश और शेष दुनिया इस पर कैसे प्रतिक्रिया करती है, निर्यातक अमेरिकी आयात के अपने हिस्से की रक्षा कैसे करते हैं, इसकी प्रतिक्रिया में वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएं कैसे बदलती हैं, अतिरिक्त टैरिफ का सामना न करने वाले देशों के निर्यातक कैसे प्रतिक्रिया करते हैं, वैश्विक मुद्राओं में कैसे उतार-चढ़ाव होता है, आदि-इत्यादि।
अच्छी खबर यह है कि अमेरिका में चुनावी बुखार खत्म हो जाने के बाद ट्रम्प अब थोड़े शांत हैं। तो शायद वास्तविक नुकसान विशेषज्ञों द्वारा लगाए गए अनुमानों की तुलना में कम हो। दो कारणों से। अव्वल तो ट्रम्प कार्रवाई के साथ-साथ धमकाने की शक्ति में भी उतना ही विश्वास करते हैं।
वे टैरिफ के खतरे में उतना ही विश्वास करते हैं, जितना कि टैरिफ पर। राष्ट्रपति के रूप में ट्रम्प का पहला कार्यकाल इस बात का सबूत है कि उनकी धमकियां उनकी कार्रवाइयों की तुलना में अधिक सख्त रहती हैं। पिछले दो वर्षों में, ट्रम्प ने चीन से आयात पर 60% से 100% और अन्य देशों से आयात पर 10% से 20% के बीच टैरिफ लगाने की बार-बार धमकी दी है।
लेकिन जैसे-जैसे राष्ट्रपति पद के लिए उनका दूसरा कार्यकाल करीब आ रहा है, उनकी टैरिफ धमकियां कुछ हद तक सौम्य होती जा रही हैं। हाल ही में एक इंटरव्यू में ट्रम्प ने कहा कि उनकी सरकार चीनी वस्तुओं पर 10% टैरिफ लगाएगी, जो चुनाव-प्रचार अभियान के दौरान उनके द्वारा दी गई सबसे कम टैरिफ की धमकी का भी छठवां हिस्सा है!
दूसरे, विश्व-अर्थव्यवस्था पिछले दो वर्षों से यों भी ट्रम्प के टैरिफ के लिए खुद को तैयार कर रही थी। सबसे बुरे हालात के लिए खुद को तैयार करने के बाद चीन के निर्यातक नई रियायत से रोमांचित ही होंगे। 100% की तुलना में 10% टैरिफ आसानी से मैनेज किया जा सकता है।
चीन का सेंट्रल बैंक युआन का 10% अवमूल्यन करके इसे आसानी से कर सकता है। चीनी उत्पादक अन्य देशों के हाथों अमेरिकी निर्यात का अपना हिस्सा खोने के बजाय अपेक्षित टैरिफ के एक निश्चित अनुपात को ग्रहण करना चुन सकते हैं।
अमेरिका-चीन संबंधों में तनाव के अंदेशे और उसकी प्रतिक्रिया में वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएं भी पहले ही बदल रही हैं। ट्रम्प के पहले कार्यकाल के टैरिफ- गौरतलब है कि इन्हें बाइडेन प्रशासन ने जारी रखा था- के परिणामस्वरूप 2018 और 2024 के बीच अमेरिकी निर्यात में चीन की हिस्सेदारी लगभग एक तिहाई कम हो गई।
वहीं आसियान देशों की हिस्सेदारी में इसी अनुपात में वृद्धि हुई और इस वृद्धि का कम से कम एक हिस्सा चीनी व्यापारियों द्वारा आसियान देशों को अपने माल का निर्यात करने से हुआ। नए टैरिफ से भी इसी तरह के समायोजन होंगे।
ट्रम्प के टैरिफ का भारत पर क्या असर पड़ेगा? ट्रम्प को व्यापार-घाटे से नफरत है और उनका ध्यान उन देशों पर है, जिनका अमेरिका के साथ व्यापार-घाटा बहुत ज्यादा है। भारत अमेरिका को निर्यात करने वाले शीर्ष देशों में शामिल नहीं है। व्यापार-घाटे के मामले में हम सूची में दसवें स्थान पर हैं। इसलिए निश्चिंत रहें, ट्रम्प भारत को धमकाने की कोशिश जरूर करेंगे, लेकिन हम उनकी सूची में शीर्ष पर नहीं होंगे।
ट्रम्प के पहले कार्यकाल में चीन पर लगाए गए टैरिफ का सबसे ज्यादा फायदा वियतनाम को हुआ था। कई कॉर्पोरेट्स चीन से वियतनाम में स्थानांतरित हो गए और उसने अमेरिका को अपने निर्यात में लगातार वृद्धि का अनुभव किया। लेकिन आज वियतनाम व्यापार-घाटे की सूची में तीसरे नम्बर पर है।
ऐसे में वह ट्रम्प की उन देशों की फेहरिस्त में होगा, जिन्हें वे घाटे को कम करने के लिए धमकाना चाहेंगे। ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में भारत चीन और वियतनाम पर अपेक्षित प्रतिबंधों और टैरिफ से लाभ उठाने की स्थिति में आ सकता है, बशर्ते वैश्विक आपूर्ति शृंखला किसी लो-टैक्स हेवन की तलाश करने लगे।
ट्रम्प के पहले कार्यकाल में चीन पर लगाए टैरिफ का सबसे ज्यादा फायदा वियतनाम को हुआ था। लेकिन आज वियतनाम अमेरिका से व्यापार-घाटे की सूची में तीसरे नम्बर पर है। भारत इस स्थिति से लाभ उठा सकता है। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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नीरज कौशल का कॉलम: ट्रम्प के टैरिफ से वास्तव में हमें फायदा हो सकता है