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- Neeraj Kaushal’s Column Technology Or Planning Can Save Us From Stampedes
नीरज कौशल, कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर
भारत दुनिया की भगदड़-राजधानी बनता जा रहा है। हर जगह भगदड़ है। धार्मिक मेलों में, खेल आयोजनों में, रेलवे स्टेशनों पर, राजनीतिक रैलियों और यहां तक स्कूलों में भी। जानकार लोग कहते हैं कि भगदड़ें इसलिए हो रही हैं, क्योंकि भारत की बहुसंख्य आबादी नागरिक अधिकारों के प्रति अशिक्षित है।
लेकिन वे पूरी तरह से गलत हैं। भगदड़ें अशिक्षा नहीं, बल्कि अपर्याप्त और लचर भीड़-प्रबंधन के कारण होती हैं। वैसे भी, एक तरफ देश में असाक्षरता घट रही है, दूसरी तरफ भगदड़ों से होने वाले हादसे बढ़ते जा रहे हैं।
धार्मिक मेलों और खेल आयोजनों में एकत्र हो रही विशाल भीड़ इस बात का संकेत है कि भारत का उभरता हुआ मध्यम वर्ग अपनी समृद्धि का उत्सव मनाना चाहता है। भारतीय बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के हैं और धर्मावलम्बी लोग तीर्थयात्राओं पर जाना चाहते हैं।
चूंकि उनकी समृद्धि बढ़ी है, इसलिए उनके पास अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए संसाधन भी हैं। शुभ अवसरों के बारे में मान्यता है कि उनमें पुण्य भी बहुत मिलता है। इसलिए धार्मिक मेलों और शुभ अवसरों पर बड़ी संख्या में लोग उमड़ रहे हैं। अशिक्षा में कमी और समृद्धि में बढ़ोतरी के चलते आप मान लें कि आने वाले दिनों में यह भीड़भाड़ और बढ़ेगी।
जून में आईपीएल के जश्न के दौरान बेंगलुरु में मची भगदड़ से 11 लोगों की मौत हो गई। पुरी की रथयात्रा में तीन लोग मारे गए। फरवरी में दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 18 जानें चली गईं। प्रयागराज में महाकुम्भ के दौरान कम से कम 30 लोगों की मृत्यु हो गई थी और उससे पहले जनवरी में भी तिरुपति की भगदड़ में छह लोग मारे गए थे।
पिछले वर्ष भी हाथरस के एक धार्मिक कार्यक्रम में भगदड़ के बाद 121 लोगों की मृत्यु हो गई थी और 150 को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। इन सभी मामलों में या तो भीड़-प्रबंधन बेहद लचर था या इसका पूर्णत: अभाव था।
भीड़-प्रबंधन टेढ़ी खीर है और बढ़ते शहरीकरण के साथ यह और दुष्कर होता जा रहा है। अच्छी बात यह है कि इंस्टैंट कम्युनिकेशन की बेहतर क्षमता और भीड़ के मूवमेंट्स के रियल टाइम डेटा के साथ हम इसकी अच्छी योजना बनाते हुए इसका प्रबंधन कर सकते हैं।
ग्रीनविच विश्वविद्यालय के फायर सेफ्टी इंजीनियरिंग समूह ने व्यवहार संबंधी प्रयोगों और गणितीय मॉडलों का उपयोग कर यह समझने का प्रयास किया है कि विभिन्न परिस्थितियों में भीड़ किस प्रकार से चलती है। उन्होंने पाया कि चार व्यक्ति प्रति मीटर से अधिक घनत्व की भीड़ का मूवमेंट जोखिमपूर्ण होता है।
ऐसी भीड़ में चल रहे व्यक्ति को यह नहीं दिखता कि उसके आसपास क्या हो रहा है। वह सिर्फ अपने आसपास चल रहे चंद लोगों को ही देख पाता है। उसे इस बात का जरा भी अनुमान नहीं होता कि चारों ओर भीड़ का दवाब बन रहा है। हां, सीटीसी कैमरों के जरिए भीड़ की गंभीरता की निगरानी संभव है और रियल टाइम में सुरक्षाकर्मियों और कार्यकर्ताओं को जोखिम भरे इलाकों की जानकारी दी जा सकती है।
रियल टाइम डेटा से निगरानी के अलावा हमें प्रयागराज, तिरुपति, पुरी, वाराणसी, बद्रीनाथ, द्वारका जैसे धार्मिक स्थलों पर प्रवेश के नियम-कायदे बनाने होंगे। इन शहरों में स्थानीय प्रशासन को वेनिस से सीख लेनी चाहिए, जहां आने वाले दैनिक आगंतुकों से शुल्क वसूला जाता है। धार्मिक मेलों के दौरान भीड़ कम करने के लिए शुल्क बढ़ा भी दिया जाता है।
भारत में तो राजनेता ऐसा शुल्क लगाने में संकोच करेंगे, क्योंकि कोई भी ईश्वर के घर में प्रवेश पर शुल्क लगाने का दोष अपने सिर नहीं लेना चाहेगा। लेकिन अगर वो ऐसा करते हैं तो इससे प्राप्त होने वाले राजस्व को धार्मिक स्थलों की बदतर हो रही बुनियादी सुविधाओं को सुधारने पर खर्च किया जा सकता है। श्रद्धालुगण भी इसकी सराहना ही करेंगे। तीर्थयात्रा से एक सप्ताह पहले पंजीकरण को अनिवार्य किया जा सकता है, ताकि आने वाले लोगों के प्रबंधन के लिए पर्याप्त संसाधन लगाए जा सकें।
इस समस्या का कोई एक हल नहीं है। रेलवे स्टेशन का भीड़-प्रबंधन स्कूल और खेल आयोजनों से भिन्न होता है। वैष्णो देवी और तिरुपति मंदिरों में सुबह-शाम की आरती के दौरान भीड़-प्रबंधन की तकनीक धार्मिक यात्राओं और सियासी रैलियों से अलग होती है। महत्वपूर्ण यह है कि हमें विशाल भीड़ को प्रबंधित करने की अपनी क्षमता बढ़ानी होगी। क्योंकि शहरीकरण और बढ़ती समृद्धि के कारण आने वाले समय भीड़ तो और बढ़ेगी ही।
भीड़-प्रबंधन टेढ़ी खीर है और बढ़ते शहरीकरण के साथ यह और कठिन होता जा रहा है। पर इंस्टैंट कम्युनिकेशन की क्षमता और भीड़ के मूवमेंट्स के रियल टाइम डेटा के साथ हम इसकी अच्छी योजना बनाते हुए प्रबंधन कर सकते हैं। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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नीरज कौशल का कॉलम: टेक्नोलॉजी या प्लानिंग हमें भगदड़ों से बचा सकती है
