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नीरज कौशल का कॉलम: खाने-पीने की चीजों के दामों पर सरकार का अंकुश जरूरी Politics & News

नीरज कौशल का कॉलम:  खाने-पीने की चीजों के दामों पर सरकार का अंकुश जरूरी Politics & News

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2 घंटे पहले

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नीरज कौशल – कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर

महंगाई के मुद्दे ने दुनिया में कई चुनावों के नतीजे तय किए हैं। अमेरिका में कोविड के बाद महंगाई को काबू में न रख पाने की कीमत जो बाइडेन और डेमोक्रेट्स को व्हाइट हाउस खोकर चुकानी पड़ी थी। डोनाल्ड ट्रम्प ने कीमतें घटाने का वादा किया था, लेकिन उलटे उन्होंने टैरिफ बढ़ा दिए, जिससे महंगाई और बढ़ी। उनका कोर वोटर इससे नाखुश है।

ऐसे में कई विश्लेषकों का मानना है कि मिड-टर्म चुनावों में रिपब्लिकंस का प्रदर्शन कमजोर रह सकता है क्योंकि ट्रम्प प्रशासन महंगाई घटाने में नाकाम रहा है। सच पूछो तो राजनेता महंगाई से डरते हैं। अमेरिका में अंडे की कीमतें- और भारत में प्याज के दाम- उनकी धड़कनें बढ़ा देते हैं।

बहुतों का मानना है कि 1998 में प्याज की ऊंची कीमतों ने ही अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिराने में अहम भूमिका निभाई थी। भारत में सब्जियों की कीमतों में उतार-चढ़ाव तो खासा बदनाम है। यहां कुछ ही महीनों- और कभी-कभी तो कुछ ही हफ्तों में- टमाटर या प्याज की कीमतें दस गुना तक बढ़ या घट जाती हैं।

उदाहरण के तौर पर, दिल्ली में पिछले नवंबर में प्याज 100 रुपए किलो बिक रहा था और हाल में वह 13 रुपए किलो पर बिका। टमाटर पिछले अक्टूबर में 65 रुपए किलो था, अब 35 रुपए किलो है। हम अकसर बढ़ी हुई कीमतों पर ही ध्यान देते हैं, जबकि हालिया रुझान दिखाता है कि कीमतों का पेंडुलम दोनों दिशाओं में बराबर झूलता है। किसी भी व्यवसाय में आउटपुट-कीमतों में ऐसी अस्थिरता कारोबारी को हैरान-परेशान कर सकती है। कीमतों में उतार-चढ़ाव कम करने के लिए सरकार क्या कर सकती है?

दो सरल उपाय हैं : वैश्विक स्रोतों से खरीद और फूड प्रोसेसिंग। पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि औद्योगीकृत देशों में फल-सब्जियों की कीमतें साल भर काफी स्थिर रहती हैं। इसका कारण यह है कि वे घरेलू फसल पर निर्भर नहीं रहते। वे वैश्विक सप्लाई चेन से जुड़े रहते हैं और जिस भी गोलार्ध में मौसम अनुकूल हो, वहां से आयात करते हैं। दक्षिणी और उत्तरी गोलार्ध की काउंटर-सीजनैलिटी (एक के ऑफ-सीजन के समय दूसरे का ऑन-सीजन) के कारण उन्हें साल भर आपूर्ति मिलती है।

यही कारण है कि अमेरिका में लोगों को सालभर ताजे टमाटर मिलते हैं। ऑफ-सीजन में वे चिली या मैक्सिको से टमाटरों का आयात कर लेते हैं। वास्तव में शायद ही ऐसा कोई मौसमी उत्पाद है, जो अमेरिकी ग्रॉसरी स्टोर्स में ऑफ-सीजन में भी उपलब्ध न होता हो। जब कैलिफोर्निया या फ्लोरिडा की आपूर्ति कमजोर पड़ती है तो मैक्सिको, कनाडा, चिली, ग्वाटेमाला या कोस्टा रीका उसकी भरपाई कर देते हैं। दक्षिणी गोलार्ध की सस्ती मजदूरी, कम परिवहन लागत और उनका विशाल कोल्ड-स्टोरेज नेटवर्क अमेरिकी सुपरमार्केट की शेल्फों पर साल भर स्थिर कीमतें बनाए रखते हैं।

लेकिन भारत में उपभोक्ताओं की रक्षा के नाम पर आयात-नियंत्रण और किसानों की रक्षा के नाम पर निर्यात-नियंत्रण ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि बड़े पैमाने पर फलों और सब्जियों के व्यापार तथा भंडारण के लिए आवश्यक वैल्यू चेन विकसित ही नहीं हो पाईं।

नतीजा यह है कि खाने-पीने की चीजों की कीमतें लगातार ऊपर-नीचे होती रहती हैं। फूड प्रोसेसिंग की बात करें। अधिकांश पश्चिमी देशों में प्याज और टमाटर का बड़ा हिस्सा प्रोसेस कर लिया जाता है- सूखे प्याज-टमाटर, कैन में स्टोर किए हुए स्लाइस या फिर प्याज-टमाटर की प्यूरी के रूप में।

2016 के आंकड़ों पर आधारित एक अध्ययन बताता है कि अमेरिका में 33 प्रतिशत टमाटर प्रोसेस होते हैं, चीन में 14 प्रतिशत, जबकि भारत में यह अनुपात सिर्फ 0.3 प्रतिशत ही है। एक अन्य अध्ययन का अनुमान है कि अमेरिका में फलों और सब्जियों का एक-तिहाई से अधिक हिस्सा प्रोसेस होता है; जबकि भारत में यह 5 प्रतिशत से भी कम है।

इस साल भारत में प्याज और आलू की भरपूर पैदावार ने महंगाई को नकारात्मक दायरे में पहुंचा दिया है। दुनिया बढ़ती कीमतों से चिंतित है, लेकिन भारतीय उपभोक्ता नहीं। बहरहाल, यह याद रखना जरूरी है कि ये हालात तेजी से उलट सकते हैं। कीमतें जब बहुत नीचे चली जाती हैं, तो किसान अगले साल वही फसल उगाने से कतराते हैं और इसी से कीमतों में उछाल की पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है।

आपूर्ति और मांग के बीच यह विसंगति कीमतों में अस्थिरता को तंत्र की स्थायी विशेषता बना देती है। ऐसे में आयात कीमतों को स्थिर रखने में कारगर हो सकते हैं। भारत के लिए जरूरी है कि बाजार से नियंत्रण घटाए, विश्व-व्यापार बढ़ाए और भंडारण व प्रोसेसिंग पर गंभीरता से निवेश करे।

  • भारत में सब्जियों की कीमतों में उतार-चढ़ाव खासा बदनाम है। इससे बचने के लिए सरकार क्या कर सकती है? दो सरल उपाय हैं : वैश्विक स्रोतों से खरीद और फूड प्रोसेसिंग। इससे ऑफ-सीजन में भी हमारे ग्रॉसरी स्टोर्स भरे रहेंगे।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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