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नीरजा चौधरी का कॉलम: अब भारतीय राजनीति में ‘थरूर फैक्टर’ के क्या हैं मायने? Politics & News

नीरजा चौधरी का कॉलम:  अब भारतीय राजनीति में ‘थरूर फैक्टर’ के क्या हैं मायने? Politics & News

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4 घंटे पहले

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नीरजा चौधरी वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार

पहलगाम हमले के बाद विपक्ष की राजनीति में यदि कोई केंद्र बिंदु बना है तो वो हैं डॉ. शशि थरूर। वे तब सुर्खियों में आए, जब केंद्र सरकार ने उन्हें विश्व की राजधानियों में भेजे जा रहे सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों में से एक का नेतृत्व सौंपा, जबकि उनकी पार्टी ने उनके नाम की सिफारिश तक नहीं की थी।

हालांकि मनमोहन सिंह ने भी कश्मीर पर राउंड-टेबल वार्ता के लिए 2006 में श्रीनगर में एक ऐसे ‘सरकारी प्रतिनिधिमंडल’ का नेतृत्व किया था, जिसके लिए दूसरी पार्टियों के अध्यक्षों से कोई सुझाव नहीं मांगे गए थे।

वास्तव में, सरकार ने तीन और ऐसे कांग्रेस सांसदों को प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया है, जो कांग्रेस की ओर से नामित नहीं किए गए थे। इनमें सलमान खुर्शीद, मनीष तिवारी और अमर सिंह हैं। सरकार ने राहुल गांधी की ओर से भेजे गए नामों में से सिर्फ आनंद शर्मा को ही चुना, शेष तीन नाम खारिज कर दिए। यदि थरूर को शामिल नहीं किया गया होता तो कांग्रेस और सरकार के बीच एक ऐसे समय में राजनीतिक मतभेद उभरकर सामने नहीं आए होते, जब सरकार कूटनीतिक मोर्चे पर भारत की एकजुटता दिखाने की कोशिश कर रही है।

थरूर ने निमंत्रण को तुरंत स्वीकारा और उसे अपने लिए ‘सम्मान’ बताया। उन्होंने कहा कि ‘जब देशहित में मेरी सेवाओं की दरकार हो तो मैं पीछे नहीं हटूंगा।’ थरूर ने वैश्विक मीडिया के सामने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भारत का पक्ष बेहद प्रभावी ढंग से रखा था।

केरल से चार बार सांसद रह चुके थरूर एक समय संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बनने को लेकर उम्मीदजदा थे। तब उनकी वाकपटुता और सम्प्रेषण-कौशल ने भाजपा और कांग्रेस दोनों को प्रभावित किया था। कई लोगों का मानना है कि पहलगाम के बाद भारत के पक्ष को थरूर ने इतने बेहतर तरीके से सामने रखा है, जितना कि भाजपा प्रवक्ता भी नहीं कर पाए थे।

पिछले कुछ समय से थरूर कांग्रेस आलाकमान की आंख की किरकिरी बने हुए हैं। गांधी परिवार को लगता है कि उन्होंने थरूर की कई बार करियर में आगे बढ़ने में मदद की थी, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में वे पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार मल्लिकार्जुन खरगे के सामने खड़े हो गए। हालांकि थरूर हार गए, लेकिन उन्होंने अपना असर जरूर छोड़ा।

वे पार्टी से परे भी अपने प्रशंसक बनाने में सफल रहे हैं। कुछ समय पहले उन्होंने नाराजगी जताते हुए यह भी कहा था कि पार्टी ने उनका ठीक से उपयोग नहीं किया है और उनके पास ‘दूसरे विकल्प’ भी हैं। सोशल मीडिया पर उनके बड़ी संख्या में फॉलोअर्स हैं।

पेशेवर और बुद्धिमान लोगों के साथ ही युवा भी उन्हें सम्मान की नजर से देखते हैं। लोग उन्हें सुनने आते हैं। उनके समर्थक केरल ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण भारत में देखे जा सकते हैं। उन्होंने अपना यह जनाधार हाईकमान की मदद के बिना तैयार किया है।

कांग्रेस में कई नेता अचरज करते हैं कि आखिर थरूर की राजनीति क्या है? कई उनके भाजपा की ओर झुकाव का संकेत भी करते हैं। मोदी सरकार द्वारा थरूर को एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई सौंपने से भी इन अटकलों को बल मिला है। थरूर के नेतृत्व वाला प्रतिनिधिमंडल अमेरिका सहित पनामा, गयाना, ब्राजील और कोलंबिया जाएगा।

मौजूदा हालात में यह साफ नहीं है कि क्या कांग्रेस उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करेगी और अगर हां तो किस आधार पर। केरल में अगले साल चुनाव होने जा रहे हैं, ऐसे में थरूर के खिलाफ कोई भी कदम उठाना कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। केरल ऐसा राज्य है, जहां कांग्रेस अपनी जीत के प्रति आश्वस्त है। वाम मोर्चा वहां पर पिछले दो कार्यकालों से सत्ता में है।

यह भी साफ नहीं है कि थरूर आने वाले हफ्तों में क्या करने वाले हैं। क्या वे नई पार्टी बनाएंगे, अलबत्ता यह कभी भी आसान नहीं होता। वे भाजपा या सीपीएम में शामिल हो सकते हैं। लेकिन इसकी भी संभावना बहुत कम है। क्योंकि ऐसा करने पर उनकी वो तमाम राजनीतिक पूंजी नष्ट हो सकती है, जो उन्होंने कमाई है।

या क्या वे निर्दलीय सांसद के रूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो सकते हैं? ये सब अभी अटकलें हैं, लेकिन यह साफ है कि केंद्र सरकार उनका सदुपयोग करना चाह रही है। थरूर भी उम्मीद कर सकते हैं कि सरकार उन्हें ऐसी कोई भूमिका दे, जैसे अभी दी है।

किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी, लेकिन थरूर-फैक्टर हमें भविष्य के बदलावों का संकेत जरूर देता है। क्या गांधी परिवार की अवहेलना के बावजूद अपनी जमीन कायम रखने से थरूर को कांग्रेस के अनपेक्षित हलकों से समर्थन दिलाया है? अतीत में कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी तो इन्हीं कारणों से लोकप्रियता मिली थी।

भाजपा यह साबित करने में तो निश्चय ही सफल हुई है कि कांग्रेस में शशि थरूर जैसे अनेक सक्षम, वाकपटु और अनुभवी नेता हैं, जिनको मौका मिले तो वे गांधी परिवार की तुलना में पार्टी का बेहतर तरीके से नेतृत्व कर सकते हैं।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं।)

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