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नंदितेश निलय का कॉलम: किसी अच्छे लीडर के लिए बोलने से ज्यादा सुनना जरूरी है Politics & News

नंदितेश निलय का कॉलम:  किसी अच्छे लीडर के लिए बोलने से ज्यादा सुनना जरूरी है Politics & News

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5 घंटे पहले

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नंदितेश निलय वक्ता, एथिक्स प्रशिक्षक एवं लेखक

क्या ट्रम्प एक नए लीडरशिप-सम्प्रेषण को गढ़ रहे हैं? अगर हम गौर से देखें तो पाएंगे कि ट्रम्प अपने भाषणों को दो ध्रुवों में बांट देते हैं, जैसे कि विनर्स बनाम लूजर्स या हम बनाम वो। अपने विरोधियों के लिए वे दयनीय या पराजय के भाव से जुड़े शब्दों का प्रयोग करते है।

वे लगातार उन शब्दों को दुहराते हैं, जब तक उनके श्रोता उन्हें कंठस्थ न कर लें। उनकी आत्म-प्रचार और अतिशयोक्तिपूर्ण सम्प्रेषण की शैली ने सत्ता और ताकत को उस सुपीरियाॅरिटी के साथ जोड़ दिया है, जिसमें “मैं ही सही हूं’ का भाव ही सबकुछ हो जाता है।

लेकिन क्या लीडरशिप-सम्प्रेषण का व्याकरण यही होना चाहिए? और क्या इससे नेतृत्व की भावना और टीम की अस्मिता कमतर नहीं होती? हमेशा अपने को महान कहना या सुपरलेटिव्स में खुद को रखना क्या समाज में नए तरह का भेद नहीं पैदा कर रहा?

नेतृत्व तो खुद ही असंख्य सपनों की जिम्मेदारी होता है, जहां बोलने से ज्यादा सुनने का भाव आवश्यक होता है। लीडरशिप और मैनेजमेंट गुरु पीटर ड्रकर अपनी पुस्तक ‘द डेली ड्रकर’ में लिखते हैं, नेतृत्व जिम्मेदारी है।

और एक लीडर के लिए वह भी सुनना और समझना जरूरी है, जो बोला नहीं गया। यानी लीडर की जिम्मेदारी उन लोगों के लिए भी होती है, जो उनकी बातों को सुनकर खुद को छोटा नहीं महसूस करें। आखिर, जब ट्रम्प ‘अमेरिका फॉर अमेरिकन्स’ कहते हैं तो यह माना जाएगा कि इसमें सभी दल के लोग तो शामिल हैं ही, वो भी हैं, जो दलगत राजनीति से दूर हैं, लेकिन अमेरिकी हैं।

इतिहासकार युवाल नोआ हरारी मनुष्य और पशुओं के सम्प्रेषण की जब चर्चा करते हैं, तो मानते हैं कि अन्य सभी जानवर वास्तविकता का वर्णन करने के लिए अपने सम्प्रेषण-तंत्र की सहायता लेते हैं। लेकिन मनुष्य ने अपनी संचार प्रणाली का उपयोग नई वास्तविकताओं को बनाने के लिए किया है।

और नई वास्तविकता यह है कि सम्प्रेषण में शालीनता- चाहे वह राजनीतिक प्लेटफाॅर्म पर हो या ओटीटी पर- मद्धम-सी पड़ती जा रही है। सामाजिक और राजनीतिक गलियारे में “हम बनाम वो’ की आक्रामकता तेज आवाज में सुनाई पड़ने लगी है।

भूतपूर्व अमेरिकी उपराष्ट्रपति अल गोर कहते हैं, प्रभावी संचार का मतलब है लोगों तक पहुंचना और उन्हें समझना। इसलिए सम्प्रेषण में शालीनता और विनम्रता को अच्छी तरह से संबोधित किए जाने की आवश्यकता है। फिर चाहे वह अमेरिका हो या रूस, चीन हो या भारत, सभी देश के नेतृत्व की यह जिम्मेदारी बनती है।

राजनीतिक लीडरशिप ही नहीं, बल्कि बड़ी बैंडविड्थ के साथ भी बड़ी जिम्मेदारी आती है। अब तो एआई भी इस ध्रुवीकरण में फंसता नजर आ रहा है। ओपनएआई के सीईओ मानते है कि चैटजीपीटी के ‘कृपया’ और ‘धन्यवाद’ जैसे सामान्य शिष्टाचार से उनकी कंपनी को काफी नुकसान हुआ है।

दूसरे शब्दों में, हर बार जब भी कोई मशीन आभार व्यक्त करने के लिए अतिरिक्त शब्दों का उपयोग करती है, तो ओपनएआई का खर्च भी बढ़ जाता है। एआई बड़े भाषा मॉडल के आधार पर चलते हैं। इसके लिए परिष्कृत ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट की आवश्यकता होती है, ताकि डेटा को प्रोसेस किया जा सके और रियल-टाइम में कुशलता से संकेतों का जवाब दिया जा सके। इस प्रक्रिया में बहुत ज्यादा बिजली और पानी की आवश्यकता होती है।

हाल के अध्ययनों से पता चला है कि एआई द्वारा बुनियादी ढांचे में पानी की खपत बढ़ गई है, और सौ शब्द की प्रतिक्रिया के लिए तीन बोतल पानी की आवश्यकता होने लगी है, जिससे सर्वर ठंडा रह सके। तो क्या एआई के चैटबॉट ‘कृपया’ और ‘धन्यवाद’ की भाषाई शालीनता को महज इमोजी के भरोसे छोड़ देंगे?

सुकरात का मानना ​​था कि शिष्टता सार्थक संवाद का आधार है; वहीं अरस्तू के अनुसार नैतिक आदतें पुनरावृत्तियों के माध्यम से बनती हैं। तो क्यों न मशीनों को विनम्र बनाने के लिए प्रशिक्षण देने के साथ-साथ दुनिया के लीडर्स स्वयं के सम्प्रेषण को भी उस विनम्रता से जोड़ें, जिससे नेतृत्व शायद अपने लिए इस विचार को पुष्ट कर सके कि एक अच्छा समाज विचारशील संवाद पर आधारित होता है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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