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दो दिन पहले ही दुनिया को अलविदा कहने वाले चर्चित फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र के राजनीति में कदम रखने, लोकसभा का चुनाव लड़ने और फिर सियासत से तौबा करने के बारे में तो सभी को पता है, लेकिन किस राजनेता के ऑफर और दोस्त के दबाव डालने पर वह बीजेपी में शामिल हुए और लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए राजी हुए, इस बारे में बहुत कम लोगों को ही जानकारी होगी. धर्मेंद्र को चुनाव लड़ने का ऑफर देने वाली राजनेता ने इस बारे में फैसला 6 महीने पहले साल 2003 में तभी कर लिया था, जब वह अपने एक करीबी दोस्त की पत्नी के चुनाव प्रचार के लिए राजस्थान आए हुए थे. धर्मेंद्र के प्रचार करने से ही दोस्त की पत्नी विधानसभा में फंसे हुए चुनाव में भी जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी.
कैसे हुई थी धर्मेंद्र की राजनीति में एंट्री?
दरअसल धर्मेंद्र साल 1977 में एक फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में जयपुर आए हुए थे. यहां उनकी मुलाकात शहर के बड़े बिजनेसमैन और सियासी परिवार से जुड़े हुए विजय पूनिया से हुई. यह मुलाकात इतनी गहरी दोस्ती में बदल गई कि धर्मेंद्र और विजय पूनिया में घरेलू संबंध कायम हो गए. विजय पूनिया से दोस्ती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि धर्मेंद्र उनकी बेटी की शादी में न सिर्फ शामिल हुए बल्कि कन्यादान खुद अपने हाथों किया और साथ ही विदाई के वक्त भावुक होकर रो भी पड़े.धर्मेंद्र और हेमा मालिनी की बेटियां अक्सर विजय पूनिया के घर ही रहती थी. धर्मेंद्र जब भी जयपुर आते विजय पूनिया के बंगले पर ही रुकते थे और वह भी मुंबई में उन्हीं के यहां जाते थे.
विजय पूनिया की पत्नी के लिए एक्टर ने किया प्रचार
राजस्थान में साल 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में विजय पूनिया की पत्नी ऊषा नागौर जिले से बीजेपी के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ रही थीं. चुनाव फंसा हुआ था. ऐसे में विजय पूनिया को अपने दोस्त धर्मेंद्र की याद आई. उन्होंने धर्मेंद्र से प्रचार करने की अपील की तो वह तुरंत तैयार हो गए. धर्मेंद्र ने यहां शोले फिल्म का डायलॉग सुनाते हुए जो माहौल बनाया, उससे ऊषा पूनिया चुनाव जीत गई.
वसुंधरा राजे के कहने पर बीजेपी में शामिल हुए थे एक्टर
विजय पूनिया की पत्नी ऊषा के धर्मेंद्र की वजह से चुनाव जीतने की कहानी 2004 में तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे को पता थी. उन्हें धर्मेंद्र और विजय पूनिया की दोस्ती के बारे में भी जानकारी थी. बीकानेर की लोकसभा सीट बीजेपी के लिए हमेशा चुनौती होती थी. वहां उसका प्रदर्शन आमतौर पर बहुत अच्छा नहीं होता था.

साल 2004 के लोकसभा चुनाव के वक्त वसुंधरा राजे ने विजय पूनिया को बुलाकर धर्मेंद्र को चुनाव लड़ने के लिए तैयार करने को कहा. विजय पूनिया ने धर्मेंद्र से बात की तो उन्होंने साफ मना कर दिया. बाद में विजय पूनिया ने अपने रिश्तों की दुहाई देकर उनसे वसुंधरा राजे से दिल्ली में मुलाकात करने को कहा है. वसुंधरा राजे के कहने पर धर्मेंद्र न सिर्फ बीजेपी में शामिल हुए, बल्कि चुनाव लड़ने को भी तैयार हो गए.
मुश्किल हालातों में सांसद बने थे धर्मेंद्र
विजय पूनिया के मुताबिक धर्मेंद्र जब बीकानेर से चुनाव लड़ रहे थे तो बीजेपी के ही तमाम लोग उनके साथ नहीं दे रहे थे. मुश्किल हालात में वह सांसद चुने गए. उन्होंने चुनाव में कांग्रेस के जिस दिग्गज नेता रामेश्वर डूडी को हराया था, बाद में उनसे मुलाकात भी की थी. चुनाव प्रचार के दौरान सनी देओल की सभा ने धर्मेंद्र के पक्ष में एकदम माहौल बना दिया था. सांसद चुने जाने के बाद धर्मेंद्र कुछ दिनों तो बहुत एक्टिव रहे.

धर्मेंद्र ने कम करवाई थी यूनिवर्सिटी की फीस
बीकानेर के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे. काफी कुछ उन्होंने किया भी लेकिन राजनीति का माहिर खिलाड़ी नहीं होने की वजह से उनके काम का क्रेडिट दूसरे लोग ले जाते थे. धर्मेंद्र को यह बात अखरती थी. धीरे-धीरे उन्होंने दूरियां बनानी शुरू कर दीं. सियासत उनको रास नहीं आई. हालांकि वह बीकानेर के बाहर के लोगों के भी काम करते थे. राजस्थान की तत्कालीन गवर्नर प्रतिभा देवी सिंह पाटिल से बातचीत कर उन्होंने यूनिवर्सिटी की फीस कम कराई थी और छात्रों के आंदोलन को खत्म कराया था.
विजय पूनिया के मुताबिक वो बेहद मिलनसार स्वभाव के इंसान थे. बड़ा स्टार होने के बावजूद वह बेहद सादगी के साथ रहते थे और लोगों से बड़ा अपनापन रखते थे. सियासत से उनका मोह इस कदर भंग हुआ था कि मथुरा में पत्नी हेमा मालिनी के चुनाव प्रचार में भी वह आखिरी वक्त ही गए थे.
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