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त्रिनिदाद एंड टोबैगो के सफर पर मोदी: यहां 180 साल पहले गिरमिटिया मजदूर पहुंचे थे, अब राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री समेत 40% भारतीय मूल की आबादी Today World News

त्रिनिदाद एंड टोबैगो के सफर पर मोदी:  यहां 180 साल पहले गिरमिटिया मजदूर पहुंचे थे, अब राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री समेत 40% भारतीय मूल की आबादी Today World News

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पोर्ट ऑफ स्पेन4 मिनट पहले

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त्रिनिदाद एंड टोबैगो, लैटिन अमेरिका के उत्तर और अमेरिका के दक्षिण में है। मोदी पहली बार यहां जा रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी 2 जुलाई से पांच देशों की यात्रा पर हैं। घाना के बाद वे आज त्रिनिदाद और टोबैगो रवाना हो गए हैं, जहां वे 3 और 4 जुलाई को रुकेंगे। खास बात यह है कि 1999 के बाद किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की यह त्रिनिदाद और टोबैगो की पहली यात्रा है।

प्रधानमंत्री मोदी को त्रिनिदाद और टोबैगो की प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर ने न्योता दिया था। अपनी यात्रा के दौरान पीएम मोदी राजधानी पोर्ट ऑफ स्पेन में प्रधानमंत्री कमला के साथ-साथ राष्ट्रपति क्रिस्टीन कार्ला कांगालू से भी मुलाकात करेंगे। गौरतलब है कि दोनों ही शीर्ष नेता भारतीय मूल की हैं।

इस ऐतिहासिक यात्रा का मकसद भारत और त्रिनिदाद एंड टोबैगो के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को और मजबूत करना है। PM मोदी की यह यात्रा एक और मायने में बेहद खास है।

दरअसल, इस साल त्रिनिदाद एंड टोबैगो में भारतीय मजदूरों के पहली बार पहुंचने की 180वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। इस देश की करीब 40% आबादी भारतीय मूल की है, जिनके पूर्वज 19वीं सदी में वहां काम की तलाश में गए थे।

मोदी के त्रिनिदाद एंड टोबैगो दौरे का शेड्यूल

3 जुलाई

  • त्रिनिदाद एंड टोबैगो की संसद के जॉइंट सेशन को संबोधित करेंगे।
  • भारतीय डायस्पोरा के साथ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल होंगे।
  • राष्ट्रपति कांगालू पीएम मोदी के लिए स्टेट डिनर का आयोजन करेंगी।

4 जुलाई

  • PM मोदी कई मंत्रियों और अधिकारियों से मुलाकात करेंगे।
  • रक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा, UPI तकनीक, कृषि और फूड प्रोसेसिंग जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा होगी, कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर होंगे।
  • देर शाम मोदी अर्जेंटीना के लिए रवाना होंगे।

कोलंबस ने त्रिनिदाद की खोज की, ईसाई धर्म से जुड़ा नाम रखा भारत से त्रिनिदाद की दूरी करीब 13,822 किलोमीटर है। यह कैरिबियाई देश कहलाता है। कैरीबियाई देश का मतलब उन देशों से होता है जो कैरिबियन सागर के आस-पास या उसके द्वीपों पर बसे हुए हैं। कैरीबियाई देशों को सामूहिक रूप से ‘वेस्ट इंडीज’ भी कहा जाता है।

क्रिस्टोफर कोलंबस ने 1498 में अपने तीसरे समुद्री सफर के दौरान त्रिनिदाद की खोज की थी। कोलंबस ने ही इस द्वीप का नाम त्रिनिदाद रखा, जिसका मतलब ‘त्रिमूर्ति’ होता है। उन्होंने यह नाम ईसाई धर्म के प्रतीक चिन्ह ‘ट्रिनिटी’ पर रखा था।

पहले इस द्वीप पर आदिवासी समुदाय रहते थे। कोलंबस के आने के बाद स्पेन ने 16वीं सदी में इस पर उपनिवेश स्थापित किया। ब्रिटेन ने 1797 में इसे अपने कब्जे में ले लिया और 1889 में टोबैगो को भी त्रिनिदाद के साथ मिला लिया। त्रिनिदाद एंड टोबैगो को साल 1962 में ब्रिटेन से आजादी मिली।

भारत ने सबसे पहले राजनयिक संबंध स्थापित किए भारत ने त्रिनिदाद एंड टोबैगो की स्वतंत्रता के बाद सबसे पहले राजनयिक संबंध स्थापित किए थे। दोनों देशों के संबंध 1845 में शुरू हुए थे। इस साल फातेल रज्जाक नाम का जहाज 225 भारतीय मजदूरों को लेकर त्रिनिदाद पहुंचा था।

इनमें ज्यादातर मजदूर उत्तर प्रदेश और बिहार के थे, जो वहां काम करने गए थे। इन मजदूरों को 5 से 7 साल के कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने के लिए ले जाया गया था। इन मजदूरों के साथ हुए ‘एग्रीमेंट’ को बोलचाल की भाषा में ‘गिरमिट’ कहा जाने लगा।

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इस तरह एग्रीमेंट पर काम करने वाले मजदूरों को ‘गिरमिटिया’ नाम से लोकप्रिय हो गए। भारतीय गिरमिटिया मजदूरों के वंशज आज भी त्रिनिदाद एंड टोबैगो में बसे हैं, जो देश की कुल 13 लाख आबादी का लगभग 40% हिस्सा हैं। अभी वहां 5 लाख से ज्यादा भारतीय मूल के लोग हैं।

त्रिनिदाद की राष्ट्रपति-PM भारत के गिरमिटिया मजदूरों की वंशज साल 1834 में ब्रिटेन ने अफ्रीका में गुलाम प्रथा पर रोक लगा दी थी। ऐसे में यूरोपीय उपनिवेश वाले देशों में गन्ने के खेतों और दूसरे कामों के लिए मजदूरों की कमी होने लगी। इन मजदूरों की कमी पूरी करने के लिए भारत जैसे देशों से मजदूर लाए गए।

भारत से मजदूरों की पहली खेप 1834 में मॉरीशस भेजी गई। इतिहासकारों के मुताबिक, 1834 से 1920 तक करीब 15 लाख भारतीय मजदूरों को गिरमिटिया बनाकर मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम (दक्षिण अमेरिका), गुयाना, त्रिनिदाद एंड टोबैगो, जमैका जैसे देशों में भेजा गया।

त्रिनिदाद एंड टोबैगो की राष्ट्रपति क्रिस्टीन कंगालू और प्रधानमंत्री कमला बिसेसर, दोनों इन्हीं गिरमिटिया मजदूरों की वंशज हैं। कमला के परदादा राम लखन मिश्रा बिहार के बक्सर जिले के थे।

टोबैगो पर कब्जा करने के लिए 30 से ज्यादा जंग टोबैगो दक्षिण अमेरिकी तट के बेहद नजदीक है। साल 1498 में कोलंबस ने टोबैगो को देखा तो था, लेकिन काफी छोटा होने की वजह से इस पर कब्जा नहीं किया। लेकिन साल 1600 के बाद स्थिति बदल गई।

इसकी लोकेशन की वजह से 16वीं से 19वीं सदी तक यूरोप के कई देश इस द्वीप पर कब्जा करने की कोशिश में जुट गए, ताकि यहां से कैरिबियन व्यापारिक रास्तों और आसपास की कॉलोनियों पर नजर रख सकें। सबसे पहले डच ने 1628 में टोबैगो पर कब्जे का दावा किया। फिर ब्रिटेन, स्पेन, फ्रांस, डच के अलावा कई यूरोपीय देश भी कब्जा जमाने की कोशिश करने लगे।

17वीं और 18वीं सदी के बीच 30 बार टोबैगो पर कब्जा हुआ। औसतन हर 5-10 साल में टोबैगो का शासक बदल जाता था। युद्धों और संधियों के जरिए यह द्वीप ब्रिटेन, डच और फ्रांस के बीच लगातार इधर-उधर होता रहा। इसलिए टोबैगो को ‘कैरिबियन का फुटबॉल’ कहा जाने लगा।

1814 में पेरिस की संधि के बाद टोबैगो को आधिकारिक तौर पर ब्रिटेन के अधीन मान लिया गया। इसके बाद यहां कब्जों का सिलसिला खत्म हुआ। हालांकि इतने कब्जे और लड़ाइयों का टोबैगो की संस्कृति पर बहुत असर पड़ा। वहां फ्रेंच, डच, ब्रिटिश, स्पेनिश जैसी भाषाओं और परंपराओं के मिश्रण का प्रभाव आज भी दिखता है।

इन्फो ग्राफिक्स- अंकित पाठक

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