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मॉस्को5 मिनट पहले
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पुतिन ने इसी साल तालिबान को आतंकवाद से लड़ने में सहयोगी बताया था। फाइल फोटो
रूसी संसद के निचले सदन स्टेट ड्यूमा एक कानून पारित कर अदालतों को यह ताकत दी है कि वो चाहें तो किसी भी संगठन को आतंकवादी समूहों की लिस्ट से हटा सकते हैं। इस कानून के पास होने से अब रूस के लिए अफगान ताबिलान और सीरिया के विद्रोही गुट हयात तहरीर अल-शाम (HTS) से डिप्लोमेटिक रिलेशन कायम करना आसान हो जाएगा।
मंगलवार को पारित इस कानून के मुताबिक अगर कोई संगठन आतंकवाद से जुड़ी हुई एक्टिविटी बंद कर दे तो उसे इस लिस्ट से हटाया जा सकता है। इस कानून के तहत रूस के प्रॉसिक्यूटर जनरल अदालत में एक अपील दायर कर सकते हैं। इस अपील में बताया जाएगा कि किसी प्रतिबंधित संगठन ने आतंकवादी गतिविधियां बंद कर दी हैं।
इसके बाद जज चाहें तो उस संगठन को आतंकी संगठनों की लिस्ट से हटाने का फैसला ले सकते हैं।
रूस ने 2003 में तालिबान और 2020 में HTS को आतंकी संगठनों की लिस्ट में शामिल किया था।
पुतिन ने तालिबान को आतंकवाद से लड़ने में सहयोगी बताया था तालिबान ने अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया था। जिसके बाद से अभी तक किसी भी देश में तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है।
हालांकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसी साल जुलाई में तालिबान अब आतंकवाद से लड़ने में सहयोगी बताया था।
पुतिन ने जुलाई 2024 को कजाकिस्तान में SCO शिखर सम्मेलन के दौरान कहा था-
हमें यह मानकर चलना चाहिए कि तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता पर नियंत्रण रखता है। इस नाते तालिबान आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हमारा सहयोगी है।
रूस ने इसी साल मई में तालिबान को प्रतिबंधित आतंकी संगठनों की लिस्ट से हटाने का फैसला किया था। तब रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा था कि तालिबान असली ताकत है। हम उनसे अलग नहीं हैं। सेंट्रल एशिया में हमारे सहयोगी भी उनसे अलग नहीं हैं।
HTS को भी प्रतिबंधित सूची से हटाने की मांग दूसरी तरफ सीरिया में बशर अल असद का तख्तापलट करने वाले हयात तहरीर अल-शाम (HTS) को भी इस लिस्ट से हटाने की मांग की जा रही है।
सीरिया में तख्तापलट के बाद HTS को लेकर रूस के बयान पूरी तरह बदल गए हैं। पहले जहां रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने सीरियाई विद्रोहियों को आतंकवादी कहा था, लेकिन तख्तापलट के अगले ही दिन रूसी विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक तौर पर जारी बयान में उन्हें विपक्ष कहा था।
बता दें कि सीरिया में इसी साल बशर अल असद के खिलाफ 27 नवंबर को विद्रोह की शुरुआत हुई थी, जिसके 11 दिन बाद यानी 8 दिसंबर को असद खानदान की सत्ता खत्म कर दी गई।
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