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ढोल-नगाड़ों और लोकनृत्य की गूंज के साथ शुरू हुआ गुर्जर महोत्सव, संस्कृति और परंपरा का दिखा अनोखा संगम Haryana News & Updates

ढोल-नगाड़ों और लोकनृत्य की गूंज के साथ शुरू हुआ गुर्जर महोत्सव, संस्कृति और परंपरा का दिखा अनोखा संगम Haryana News & Updates

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फरीदाबाद: फरीदाबाद के सूरजकुंड मेला परिसर में जब गुर्जर महोत्सव 2025 की शुरुआत हुई, तो माहौल ही कुछ और था. तीन दिन तक चलने वाले इस महोत्सव का आगाज खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री राजेश नागर ने दीप जलाकर किया. इस बार भी सब कुछ पूरी रंगत और परंपरा के साथ हुआ. गुर्जर समाज की सांस्कृतिक विरासत, लोक कला, पारंपरिक खानपान और उनकी पहचान सब कुछ यहाँ खुलकर सामने आया.

गुर्जर संस्कृति से जुड़ी झलकियाँ

मेले में जहाँ देखो वहाँ पारंपरिक झोपड़े, रंग-बिरंगे हस्तशिल्प और गुर्जर संस्कृति से जुड़ी झलकियाँ थीं. हर स्टॉल कुछ अलग दिखा रहा था. ढोल-नगाड़ों की गूंज, लोक-नृत्य का जोश पूरा परिसर मानो एक बड़े उत्सव में बदल गया था. पहले ही दिन लाखों लोग उमड़ पड़े.

देश-विदेश से आएं हैं लोग

Local18 से बातचीत में गुर्जर आर्ट कल्चर संस्थापक रणदीप चौहान ने बताया कि ये महोत्सव चौथे साल भी उसी जोश से हो रहा है. इस बार 133 स्टॉल लगे जिनमें से 64 अलग-अलग संस्थाओं को मिले. रणदीप ने बताया कि गुर्जर समाज सिर्फ भारत में नहीं नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ऑस्ट्रेलिया तक फैला है और इन देशों से भी लोग इस बार शामिल हुए. उनका कहना था महोत्सव का मकसद है पुरानी परंपराएँ, रीति-रिवाज और संस्कृति को फिर से सामने लाना ताकि नई पीढ़ी अपनी जड़ों को पहचान सके.

क्या है इतिहास

रणदीप ने गुर्जर समाज के इतिहास की बात भी छेड़ी. उन्होंने बताया कि 836 ईस्वी में गुर्जर साम्राज्य अफगानिस्तान से पाकिस्तान और बांग्लादेश तक फैला था. उस समय सोने-चांदी की मुद्राएँ चलती थीं और सम्राट मिहिर भोज के समय समाज ने अपनी खास पहचान बनाई थी. ये बातें बताना और लोगों को उनका गौरवशाली इतिहास दिखाना यही भी इस फेस्टिवल का मकसद है.

स्टॉल के जरिए दिखाई गई आर्ट-कल्चर

मेले में आए लोगों ने भी अपने अनुभव खुले दिल से बताए. नेपाल से आई खुशबू रोनियाल अपने परिवार के साथ आई थीं और उन्होंने कहा मेला देखकर बहुत अच्छा लगा. उनके पति विशाल को भी यहाँ की संस्कृति और सादगी ने खासा प्रभावित किया. दिल्ली के हितेंद्र टेढ़ा हर साल इस मेले का इंतजार करते हैं. उन्होंने कहा इस बार तो स्टॉल की संख्या भी ज्यादा है और परंपराएँ बहुत अच्छे से दिखाई गई हैं. ग्रेटर नोएडा के मनोज नागर ने बताया कि शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी ध्यान दिया गया है और आर्ट-कल्चर के जरिए गुर्जर समाज की परंपराएँ सामने आई हैं.

ऐसे ही मेले समाज की संस्कृति को जिंदा रखते हैं

दीक्षा भाटी पहली बार मेला घूमने आई थीं. उन्होंने हर स्टॉल देखा और कहा सच में यहाँ आकर अच्छा लगा. अंजू ने भी कहा कि ऐसे ही मेले समाज की संस्कृति को जिंदा रखते हैं. रीना भाटी को सबसे अच्छा लगा कि यहाँ गुर्जर और हरियाणा दोनों की संस्कृति का सुंदर मेल दिखा.

उत्सव में शामिल हो चुके हैं अब तक लाखों लोग

गुर्जर महोत्सव 2025 ने न सिर्फ समाज की सांस्कृतिक विरासत को सामने रखा बल्कि लोगों को पारंपरिक कला खानपान और हस्तशिल्प के जरिए समाज की पहचान से जोड़ा. तीन दिन चले इस उत्सव में लाखों लोग आए बच्चे, युवा, बड़े सबने खूब मजा किया. महोत्सव का मकसद सिर्फ मनोरंजन नहीं है बल्कि ये नई पीढ़ी को उनकी संस्कृति, परंपराओं और इतिहास से भी जोड़ता है.

इस बार का महोत्सव पहले से भी भव्य रहा. पारंपरिक झोंपड़ों, नृत्य, ढोल-नगाड़ों और कला-शिल्प की प्रदर्शनी ने मेले को और रंगीन बना दिया. हर उम्र के लोग यहाँ आए, हर किसी ने इस अनुभव को यादगार बताया. सच कहें तो गुर्जर महोत्सव 2025 ने दिखा दिया कि परंपरा और आधुनिकता एक साथ आकर कितना शानदार माहौल बना सकती हैं. इस गुर्जर महोत्सव में देश दुनिया से लोग यहां पहुंच रहे हैं संस्कृति देखने के लिए.

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