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- Dr. Naresh Trehan’s Column Treatment Is Expensive, While Prevention Is Very Cheap
डॉ. नरेश त्रेहान सीएमडी, मेदांता हॉस्पिटल्स
लगभग चार दशक पहले जब मैं भारत लौटा था, मेरा उद्देश्य था कि मैं अपने देश को उन्नत कार्डियक-केयर के लिए दुनिया के हेल्थकेयर-नक्शे पर ला सकूं। उस समय हम दिल के दौरे के दौरान जानें बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
आज बेहतर बुनियादी ढांचा, पहुंच और जागरूकता है, जिसके चलते सर्वाइवल की दर में खासा सुधार हुआ है। हालांकि उपचारात्मक चिकित्सा में हुई प्रगति महत्वपूर्ण है, यह समस्या के होने के बाद ही उसका समाधान करती है।
आज हम देख रहे हैं कि परिवार और स्वास्थ्य सेवा प्रणालियां, दोनों ही गंभीर बीमारियों के प्रभाव से जूझ रही हैं। स्वास्थ्य चुनौतियों का बढ़ता बोझ यह देखने में हमारी मदद कर रहा है कि उपचार ही काफी नहीं, हमें बीमारियों को पनपने से भी रोकना होगा।
‘भारत में, 1.4 अरब लोगों में से 65 फीसदी 35 वर्ष से कम आयु के हैं। लेकिन युवा होने के बावजूद यह आबादी आम तौर पर बुजुर्गों में देखी जाने वाली स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर रही है। हमारी मेडिकल प्रैक्टिस में अब हमें ऐसे रोगी नजर आते हैं, जो अपनी उम्र की तीसरी या चौथी दहाई में ही हैं। युवा पेशेवर, छोटे बच्चों के माता-पिता और अपने कॅरियर के चरम पर मौजूद व्यक्ति भी हृदय रोगों, कैंसर या एक से अधिक रोगों का सामना कर रहे हैं।
2050 तक, भारत में 60 वर्ष से बड़े लोगों की संख्या दोगुनी हो जाएगी, जो कुल आबादी का लगभग 20 फीसदी होगी। ऐसे में केवल उपचार पर केंद्रित स्वास्थ्य सेवा प्रणाली काफी नहीं होगी। रोकथाम-योग्य स्थितियों के इलाज की आर्थिक और सामाजिक लागत किसी भी स्वास्थ्य-सेवा पारिस्थितिकी तंत्र की विस्तार-क्षमता से कहीं अधिक होगी। भारत की स्वास्थ्य प्रणाली पहले से ही दबाव में है, जहां हर 1,511 लोगों पर सिर्फ एक डॉक्टर है और बिस्तरों की संख्या विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से 5 गुना कम है।
हृदय रोग की रोकथाम के आर्थिक पहलुओं को देखें। हृदय शल्य चिकित्सा और रिकवरी पर लाखों के खर्च की तुलना में जोखिम वाले आयु-समूह में हृदयाघात की रोकथाम जीवनशैली के प्रबंधन और सरल, प्रिवेंटिव दवाओं के माध्यम से रोजाना मात्र 2 से 3 रुपए में हो सकती है।

लेकिन प्रिवेंटिव दवाइयों का वास्तविक महत्व यह सुनिश्चित करने में है कि हमारे युवा स्वस्थ रहें और जीवन की गुणवत्ता को बरकरार रखते हुए आगे बढ़ें। घर में पकाए भोजन, योग, नियमित सैर से पारंपरिक रोग-निवारण मूल्यवान है, लेकिन आधुनिक जीवन नई चुनौतियां लेकर आता है। महानगरों में- जहां लगभग आधे कर्मचारी तनाव में रहते हैं और वायु प्रदूषण का सामना करते हैं- हमें बेहतर प्रिवेंटिव-रणनीतियों की आवश्यकता है।
तकनीक ने रोकथाम की रणनीतियों को सटीक और पर्सनलाइज्ड स्वास्थ्य-योजनाओं में बदल दिया है। खून की सरल-सी जांचों से हम हृदय रोग के जोखिम की भविष्यवाणी कर सकते हैं, अल्ट्रासाउंड और सीटी कैल्शियम स्कोर प्रारंभिक कोलेस्ट्रॉल जमाव का पता लगा सकते हैं और कैंसर स्क्रीनिंग परीक्षण बीमारियों को विकसित या गंभीर होने से पहले ही पकड़ सकते हैं।
जेनेटिक परीक्षण और एआई-आधारित उपकरण उस सटीकता को और बढ़ाते हैं। अगर आप उम्र की तीसरी दहाई में हैं तो जेनेटिक-स्क्रीनिंग, खून की समग्र जांच और नियमित निगरानी पर ध्यान दें। प्रोसेस्ड फूड का सेवन बंद कर दें, मानसिक स्वास्थ्य और नींद की गुणवत्ता पर ध्यान दें।
अगर चौथी दहाई में हैं तो हृदय के स्वास्थ्य के आकलन और कैंसर की जांच सहित अधिक परिष्कृत स्क्रीनिंग की ओर रुख करें। महिलाएं रजोनिवृत्ति के करीब पहुंचने पर हड्डियों के घनत्व और हार्मोन की निगरानी करें।
पांचवीं दहाई में कैंसर की स्क्रीनिंग, हृदय संबंधी आकलनों और संज्ञानात्मक कार्यों की निगरानी बढ़ा दें। आने वाले नए वर्ष में रोकथाम को प्राथमिकता दें। इसके लिए तकनीक मौजूद है, ज्ञान उपलब्ध है और रोकथाम की लागत भी कम है।
रोगों की रोकथाम का मतलब बीमारियों से बचना भर नहीं, पूरी सम्भावनाओं के साथ जीना भी है। डॉक्टरों के रूप में हमें आपात-स्थिति में लोगों की जान बचाने से भी ज्यादा संतोष गंभीर हालत से लोगों को बचाने से मिलता है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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डॉ. नरेश त्रेहान का कॉलम: इलाज महंगा होता है, जबकि रोकथाम बहुत ही सस्ती है