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- Dr. Aruna Sharma’s Column Manufacturing Of Things That Are Not Made Here Is Essential
डॉ. अरुणा शर्मा इस्पात मंत्रालय की पूर्व सचिव
‘स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत’ का लक्ष्य यों तो बहुत अच्छा है, लेकिन यह तभी सफल हो सकता है, जब हमारी नीतियां गुणवत्तापूर्ण मैन्युफैक्चरिंग और ऐसी चीजों के उत्पादन को बढ़ावा दें, जिनका निर्माण अभी भारत में नहीं हो रहा है। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक तो हमारे आयात में ही इजाफा होगा।
‘ईज ऑफ डुइंग बिजनेस’ के नाम पर गुणवत्ता नियंत्रण को कमजोर करने के नए आदेश क्या यह दिखाते हैं कि भारत में मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में अब क्वालिटी की अहमियत नहीं रही? यह ना भूलें कि ‘एशियन टाइगर्स’ की श्रेणी में आने वाले देश (हांगकांग, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और ताइवान) विकसित अर्थव्यवस्था तब बने, जब उन्होंने गुणवत्तापूर्ण उत्पादों में निवेश किया और अपने उत्पादों की गुणवत्ता सुधारने के लिए इनोवेशन किए।
दूसरी तरफ, गुणवत्ता में कमी का असर यह होने वाला है कि खराब क्वालिटी वाले उत्पाद हमारे बाजार में भेजे जाएंगे, जो हमारे घरेलू उत्पादन को नुकसान पहुंचाएंगे। 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए हमें एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा। यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि हर उत्पाद गुणवत्ता वाला हो और आयात के स्थान पर घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिले।
यदि दुनिया में ये संदेश चला गया कि हमारे यहां गुणवत्ता की कसौटी अनिवार्य नहीं है तो भारत टेक्स्टाइल्स, स्टील, केमिकल आधारित उत्पादों जैसे फार्मा और अन्य उपयोगी वस्तुओं की मैन्युफैक्चरिंग का डम्पिंग ग्राउंड बन सकता है। वास्तव में इस तरह के अदूरदर्शी निर्देश हमारी आत्मनिर्भरता और हमारे ‘विश्वगुरु’ कहलाने की आकांक्षाओं पर प्रतिकूल असर डालते हैं। घरेलू बाजार में दबदबे और निर्यात के लिए उत्पादों की गुणवत्ता सबसे महत्वपूर्ण है और आयात से गुणवत्ता नियंत्रण हटाना इसी चीज को कमजोर करता है।
बहरहाल, नई एकीकृत चार श्रम संहिताएं स्वागतयोग्य हैं। इनमें गिग वर्कर्स समेत सभी तरह के श्रमिकों को शामिल किया गया है। उन्हें सामाजिक सुरक्षा देने की कोशिश की गई है। लेकिन इसमें न्यूनतम मजदूरी पर ही ज्यादा जोर है, जबकि बेहतर जीवन सुनिश्चित करने वाली मजदूरी अभी भी अपेक्षित है।
सवाल यह है कि हम ये सुनिश्चित करें कि श्रमिकों से नियमानुसार और शोषण-रहित ही काम लिया जाए और हम पहले से नाजुक चल रहे श्रम बाजार को मजबूत करने में सक्षम बनें। नियोक्ता और कर्मचारी के बीच संतुलन बनाने का उद्देश्य गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को भविष्य निधि, ईएसआईसी और बीमा जैसी सुरक्षा देना है, ताकि एक से अधिक नियोक्ताओं के साथ काम कर रहे लोगों के लिए पार्ट टाइम, वर्क फ्रॉम होम जैसी नई कार्य-प्रणालियों को भी सुरक्षा के दायरे में लाया जा सके। अब प्रत्येक राज्य अपने नियम अधिसूचित करेगा और माना जा रहा है कि कुछ सहमत सिद्धांतों पर एकरूपता रहेगी। खासकर, असंगठित क्षेत्र के 90 प्रतिशत श्रमिकों के लिए।
इधर, छोटे उद्योगों के लिए भी निवेश की सीमा 10 करोड़ रुपए और टर्नओवर की सीमा 100 करोड़ रुपए तक बढ़ाकर उन्हें दुबारा परिभाषित किया गया है। इससे इन इकाइयों पर अनुपालन का बोझ कम हुआ है और 300 कर्मचारियों तक के उद्योगों को भर्ती और यहां तक कि छंटनी में भी आसानी हुई है। यहां विशेष ध्यान देना होगा कि कामगारों का शोषण न हो। डिजिटल फाइलिंग का बोझ इससे ऊपर वाले उद्योगों के लिए है और वह भी स्वघोषणा पर आधारित है।
इस प्रकार, चार श्रम संहिताएं, लघु उद्योगों की परिभाषा में संशोधन और सबसे महत्वपूर्ण गुणवत्ता नियंत्रण में ढील एक समग्र दृष्टिकोण के तौर पर एक-दूसरे के विरोधाभासी हैं। श्रम संहिता की सुरक्षा लचीलेपन के कारण अनौपचारिक श्रम अदालतों के बड़े हिस्से को उनके अधिकारों से वंचित कर देगी। कैजुअलाइजेशन को नियोक्ताओं के विवेक पर छोड़ा गया है, जिससे स्थायी नौकरियों के बजाय ठेका आधारित श्रम को अधिक बढ़ावा मिलेगा।
मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को मजबूत करने के लिए ऐसा समग्र दृष्टिकोण आवश्यक है, जिसमें गुणवत्ता को ही की-फैक्टर माना जाए। बेहतर कौशल वाले श्रमिक हों, उनके अधिकार सुरक्षित रखे जाएं और बेहतर इनोवेशन को बढ़ावा मिले।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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डॉ. अरुणा शर्मा का कॉलम: जो चीजें हमारे यहां नहीं बनतीं, उनकी मैन्युफैक्चरिंग जरूरी है

