इस वर्ष के अर्थशास्त्र के नोबेल विजेता व एमआईटी में प्रोफेसर
यदि आप उद्योग-जगत के लोगों या प्रमुख समाचार पत्रों के टेक्नोलॉजी पत्रकारों की बात सुनें तो सोच सकते हैं कि कृत्रिम सामान्य बुद्धिमत्ता (एजीआई)- जो मनुष्यों के किसी भी संज्ञानात्मक कार्य को कर सकती है- बस हकीकत में तब्दील होने ही वाली है।
ऐसे में इस पर बहुत बहस चल रही है कि क्या ये अद्भुत क्षमताएं हमें अकल्पनीय रूप से समृद्ध बना देंगी या क्या वे मानव-सभ्यता के अंत का कारण बनेंगी, जिसमें सुपर-इंटेलीजेंट एआई मॉडल हमारे स्वामी बन जाएंगे।
लेकिन अगर आप अर्थव्यवस्था में जमीनी स्तर पर चल रही गतिविधियों पर गौर से नजर डालें तो पाएंगे कि अतीत की तुलना में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है। अभी तक इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं कि एआई से आमूलचूल बदलाव कर देने वाली उत्पादकता मिल रही है।
कई टेक्नोलॉजिस्टों ने जो वादा किया था, उसके विपरीत हमें अभी भी रेडियोलॉजिस्टों (वास्तव में पहले से भी ज्यादा), डॉक्टरों, पत्रकारों, अकाउंटेंट्स, ऑफिस कर्मचारियों और ड्राइवरों की जरूरत है। हमें अगले दशक में मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले काम के लगभग 5 फीसदी से ज्यादा काम एआई द्वारा हथिया लिए जाने का अंदेशा नहीं रखना चाहिए।
एआई मॉडल को अधिकांश नौकरियों के लिए आवश्यक निर्णय-क्षमता, बहुआयामी तार्किकता और सामाजिक-कौशल हासिल करने और एआई व कंप्यूटर विजन तकनीकों को उस बिंदु तक आगे बढ़ने में अभी काफी समय लगेगा, जहां उन्हें हाई-प्रिसीजन वाले शारीरिक कार्यों (जैसे मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन) करने के लिए रोबोट के साथ जोड़ा जा सके।
एआई का इतिहास महत्वाकांक्षी भविष्यवाणियों से भरा पड़ा है। 1950 के दशक के मध्य में मार्विन मिंस्की- जिन्हें एआई का पितामह कहा जाता है- ने भविष्यवाणी की थी कि मशीनें कुछ ही सालों में इंसानों से आगे निकल जाएंगी, और जब ऐसा नहीं हुआ तो भी वे अपनी बात पर अड़े रहे।
1970 में उन्होंने कहा कि महज तीन से आठ साल में हमारे पास ऐसी मशीन होगी, जिसमें एक औसत इंसान जितनी बुद्धि होगी, जो शेक्सपीयर को पढ़ सकेगी, कार में तेल डाल सकेगी, ऑफिस-पोलिटिक्स में हिस्सा ले सकेगी, चुटकुले सुना सकेगी और लड़ाई कर सकेगी। वह खुद को शानदार गति से शिक्षित करना शुरू कर देगी और कुछ ही महीनों में जीनियस लेवल पर होगी। क्या 54 सालों बाद भी यह सब हो सका है?
एआई डेवलपर्स की दिलचस्पी इस बात में है कि कुछ ऐसा माहौल बनाया जाए कि क्रांतिकारी ब्रेकथ्रू बस होने ही वाला है, ताकि मांगों को बढ़ावा दिया जा सके और निवेशकों को आकर्षित किया जा सके। लेकिन धीमी गति के बावजूद एआई का विकास चिंता का कारण है।
वह पहले ही बहुत नुकसान कर रहा है : डीपफेक, मतदाताओं और उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी, बड़े पैमाने पर निगरानी। एआई का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर ऑटोमैशन के लिए भी किया जा सकता है, तब भी जब ऐसे उपयोगों की कोई तुक न हो। हमारे पास पहले ही ऐसी डिजिटल तकनीकों के उदाहरण हैं, जिन्हें कार्यस्थलों में प्रस्तुत तो कर दिया गया, लेकिन किसी को पता नहीं वे प्रोडक्टिविटी को कैसे बढ़ाएंगी।
एआई को लेकर इतना माहौल बना दिया गया है कि कई व्यवसाय-समूह उसका उपयोग करने का दबाव महसूस करने लगे हैं, जबकि उन्हें नहीं पता कि एआई उनकी कैसे मदद कर सकता है। अगर कोई टेक्नोलॉजी अभी उत्पादकता को बहुत अधिक बढ़ाने में सक्षम नहीं है, तो मनुष्यों के बजाय उसे बड़े पैमाने पर तैनात करने से फायदे के बजाय नुकसान ही होगा।
अगर एआई की हाइप में आकर कंपनियां उन नौकरियों के लिए उसे अपना लेती हैं, जिन्हें मशीनें उतनी अच्छी तरह से नहीं कर सकतीं, तो यह कोई अच्छी स्थिति नहीं होगी। कहीं ऐसा न हो कि एआई से हमें हालात को सकारात्मक रूप से बदल देने की क्षमता तो न मिले, उलटे हमें श्रम के विस्थापन, गलत सूचनाओं और धोखाधड़ियों का सामना करने को मजबूर होना पड़े।
टूल्स को ऐसे काम करने चाहिए, जिन्हें मनुष्य बहुत कुशलता से नहीं कर सकते। हथौड़े और कैलकुलेटर यही करते हैं, और इंटरनेट भी ऐसा कर सकता था, अगर सोशल मीडिया ने उसे पथभ्रष्ट न किया होता। लेकिन आज ऐसे डिजिटल टूल्स का पक्ष लिया जा रहा है, जो मनुष्यों की मदद करने के बजाय उनका स्थान ले सकते हैं।
ये सच है कि मनुष्य गलतियां करते हैं; लेकिन वे हर कार्य में दृष्टिकोण, प्रतिभा और संज्ञानात्मक क्षमताओं का एक अनूठा मिश्रण भी लेकर आते हैं। जरूरत इस बात की है कि हम मशीनों की श्रेष्ठता का जश्न मनाने के बजाय मानवीय क्षमताओं को बढ़ाने की उनकी ताकत पर जोर दें।
डेरोन एस्मोगलु का कॉलम: एआई की हाइप अभी तो हम सबको नुकसान ही पहुंचाएगी