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डेरेक ओ ब्रायन का कॉलम: क्रिकेट का खेल, जो अब मेरी यादों में बसकर रह गया है Politics & News

डेरेक ओ ब्रायन का कॉलम:  क्रिकेट का खेल, जो अब मेरी यादों में बसकर रह गया है Politics & News

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4 घंटे पहले

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डेरेक ओ ब्रायन लेखक सांसद और राज्यसभा में टीएमसी के नेता हैं

एक जमाने में मैं क्रिकेट का दीवाना हुआ करता था, लेकिन अब उसे लेकर उदासीन हो गया हूं। हालत यह है कि मैंने चैंपियंस ट्रॉफी की एक भी गेंद नहीं देखी। लेकिन आज के हालात पर बात करने के बजाय मैं पुराने दिनों की यादों को ताजा करना चाहता हूं।

स्ट्रीट क्रिकेट : दक्षिण कोलकाता की गलियों में टेनिस बॉल क्रिकेट खेलते हुए मैं बड़ा हुआ। मोहल्ला-पाड़ा में स्ट्रीट क्रिकेट के अपने नियम होते थे। एक बल्ला, एक कैम्बिस बॉल (टेनिस बॉल), कोई स्टम्प नहीं, बल्कि उसके बजाय जमीर-लेन में एक के ऊपर एक रखी आठ ईंटें। और, जाहिर है, जब आपका साथी ही अम्पायर हो तो आप कभी एलबीडब्ल्यू आउट नहीं दिए जा सकते थे। और उसके बाद, असली चीज। हाई स्कूल की टीम में ड्यूस बॉल क्रिकेट!

विश्व कप 1983 : 25 जून 1983 को आप क्या कर रहे थे? मेरे दो भाई, चार दोस्त और मैं- हम सभी बीसेक साल के नौजवान ओ’ब्रायन परिवार के घर में प्रूडेंशियल विश्व कप फाइनल देख रहे थे। भारत ने 60 ओवर में 183 रन बनाए। इनिंग्स-ब्रेक में मेरे पिता ने घोषणा की : अगर हम जीतते हैं तो मैं जॉनी वॉकर की बोतल खोलूंगा।

मैंने भी कहा : अगर भारत जीतता है, तो कुछ अलग करूंगा! वेस्टइंडीज की पारी के समापन पर कपिल देव लॉर्ड्स की बालकनी में खड़े थे। मेरे पिता- जो कि एक क्विज मास्टर थे- ने जश्न मनाने के लिए नई बोतल खोली। और एक 22 वर्षीय युवक ने भी ‘स्पोर्टिंग-स्ट्रीकर’ बनकर अपना वादा निभाया!

ऑस्ट्रेलियाई कनेक्शन : मेरे भाई एंडी 30 साल पहले ऑस्ट्रेलिया जाकर बस गए थे। लेकिन उसके पहले एक दशक से ज्यादा समय तक वे भारत में खेल-पत्रकार रहे थे। उनके पास ढेरों कहानियां हैं। यहां उनमें से दो। सुनील गावस्कर, हर्षा भोगले और कुछ पत्रकार पर्थ में उनके घर आए।

वे घर में पकाए भोजन के लिए तरस रहे थे। एंडी की पत्नी ने पूछा, ‘क्या आप इसमें से कुछ और लेना चाहेंगे, मिस्टर गावस्कर?’ ‘कृपया, मुझे केवल सुनील कहें।’ लिटिल मास्टर की इस सौम्यता ने उन्हें एक नया प्रशंसक दिलवा दिया था। या जब एंडी ने अपने ऑस्ट्रेलिया में जन्मे बेटे एडन को सौरव गांगुली से मिलवाया था तो सौरव ने पूछा : ‘तुम ऑस्ट्रेलिया के लिए खेलना चाहोगे या भारत के लिए? मैं जानता हूं कि तुम्हारे डैड किस टीम का समर्थन करते हैं!’

प्रशिक्षु पत्रकार : एक प्रशिक्षु पत्रकार के रूप में मेरी पहली नौकरी स्पोर्ट्स वर्ल्ड में थी। यह पत्रिका अब नहीं छपती। इसका संपादन मंसूर अली खान ‘टाइगर’ पटौदी करते थे। वे दिल्ली में रहते थे। अपने छोटे-से कार्यकाल में मैं उनसे सिर्फ दो बार मिला। पत्रिका के एसोसिएट एडिटर डेविड मैकमोहन ने भी मुझ सरीखे नौसिखिए को प्रोत्साहित ही किया।

आईपीएल : 2014 में मेरी बेटी बेंगलुरु में आईपीएल फाइनल देखने के लिए उत्सुक थी। केकेआर बनाम किंग्स इलेवन पंजाब। यह एकमात्र ऐसा मौका था, जब मैंने कोलकाता के बाहर किसी स्टेडियम में क्रिकेट मैच देखा था। केकेआर ने आराम से जीत हासिल की। तब ​​कौन सोच सकता था कि उस शाम 22 गेंदों पर 36 रन बनाने वाले यूसुफ पठान एक दशक बाद संसद में मेरे सहयोगी बनेंगे।

फर्स्ट स्लिप में अजहर : 2013 में धर्मशाला में सांसदों की टीम ने मशहूर हस्तियों की टीम के खिलाफ प्रदर्शनी मैच खेला। मैंने विकेटकीपिंग दस्ताने पहने। अंदाजा लगाइए फर्स्ट स्लिप पर कौन था? उस समय के लोकसभा सांसद : अजहर। पारी के बीच में मेरे जूते का फीता खुल गया। अजहर ने जूते का फीता बांधने के लिए अपने घुटने टेक दिए। अनमोल पल!

मेरे पड़ोसी : उनके घर और मेरे कार्यालय की बाउंड्री-वॉल जुड़ी हुई है। वे हर दिन पक्षियों को दाना डालते हैं। पौधों की देखभाल करते हैं। वे सलामी बल्लेबाज रहे हैं और बाद में सफल कमेंटेटर भी बने। इस सबसे बढ़कर उन्होंने कई लोगों को प्रेरित किया है और साबित किया है कि ‘कैंसर के बाद भी जीवन जीने लायक है’। वे मेरे दोस्त अरुण लाल हैं।

सांसद बनाम सांसद : एक क्विज प्रश्न। रघुरामैया ट्रॉफी के लिए कौन-सी टीमें प्रतिस्पर्धा करती हैं? उत्तर : लोकसभा सदस्य बनाम राज्यसभा सदस्य। पर यह तथ्य अब कागज पर ही रह गया है। संसद में 15 वर्षों में मैंने इसके बारे में कभी नहीं सुना।

शायद इस महान परम्परा को पुनर्जीवित करने का समय आ गया है। आखिरकार, आज तीन विश्व कप विजेता सांसद हैं- कीर्ति आजाद, हरभजन सिंह और यूसुफ पठान। शायद इसी में मेरी क्रिकेट-उदासीनता का समाधान भी हो!

रघुरामैया ट्रॉफी के लिए कौन-सी टीमें प्रतिस्पर्धा करती हैं? लोकसभा बनाम राज्यसभा सदस्य। पर यह अब कागज पर ही है। संसद में मैंने इसके बारे में कभी नहीं सुना। शायद इस परम्परा को पुनर्जीवित करने का समय आ गया है। (ये लेखक के अपने विचार हैं। इस लेख के सहायक शोधकर्ता नयन चौधरी हैं।)

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