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Direct Benefit Transfer: चुनाव के समय में अपनी पार्टी को जीत दिलाने के लिए सरकार कई वादे करती है. राज्य में जब कोई चुनाव आने वाला होता है, तो डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) जैसे कई स्कीम्स का ऐलान किया जाता है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने इसे लेकर चिंता जताई है. एसबीआई का कहना है कि इस तरह की स्कीम्स का बोझ राज्यों के बजट पर पड़ता है.
राज्यों के बजट पर पड़ रहा स्कीम्स का प्रभाव
हाल ही में महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव हुआ. इस दौरान महिलाओं के लिए डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजनाओं का ऐलान किया गया, जो राज्य की चुनावी रणनीतियों का अहम हिस्सा है. इसका फायदा पार्टियों को हुआ, सरकारें भी बनीं, लेकिन दबाव राज्य के बजट पर पड़ा. एसबीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव के दरमियान आठ राज्यों में इस स्कीम का ऐलान किया गया, जिसकी कुल लागत 1.5 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा है. यह रकम राज्यों के जेनरेट रेवेन्यू का 3-11 परसेंट है.
स्कीम्स पर सालाना हो रहे करोड़ों खर्च
रिपोर्ट में राज्यों में चलाई जा रहीं इन योजनाओं का जिक्र किया गया, जैसे कि कर्नाटक में गृह लक्ष्मी योजना, जिस पर सरकार को सालाना 28,608 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं. यह कर्नाटक के रेवेन्यू का 11 परसेंट है. इस तरह से पश्चिम बंगाल में लक्ष्मी भंडार योजना चलाया जाता है, जिस पर सालाना खर्च 14,400 करोड़ रुपये का है. यह टोटल रेवेन्यू का 6 परसेंट है. रिपोर्ट में बताया गया कि भले ही इन योजनाओं से सरकार को समर्थन मिलता है और साथ ही महिलाएं भी आत्मनिर्भर बनती हैं, लेकिन इनकी घोषणा से पहले राज्यों को राजकोषीय घाटे पर गौर फरमाना चाहिए.
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने चिंता जताते हुए यह भी कहा है कि अगर चुनाव से पहले DBT जैसे स्कीम्स के ऐलान का यही ट्रेंड बरकरार रहा, तो इसका दबाव आगे चलकर केंद्र सरकार पर भी पड़ सकता है. रिपोर्ट में यूनिवर्सल इनकम ट्रांसफर स्कीम को अपनाने का सुझाव दिया गया.
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डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम्स को लेकर SBI ने जताई चिंता