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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि ईरान को ये सोचना बंद कर देना होगा कि वह न्यूक्लियर हथियार रख सकता है। ये कट्टर लोग हैं और इन्हें न्यूक्लियर हथियार रखने नहीं दिया जा सकता है।
ट्रम्प ने कहा कि अगर ईरान ऐसा नहीं करता है तो हम उसकी न्यूक्लियर फैसलिटी पर मिलिट्री स्ट्राइक करेंगे। ट्रम्प ने ईरान पर ये आरोप भी लगाया कि वह अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील साइन करने में जानबूझकर देरी कर रहा है।
ट्रम्प की चेतावनी ऐसे समय में आई है जब अमेरिका और ईरान के बीच कुछ दिन पहले ही ओमान में बातचीत हुई है। अब अगले दौर की बातचीत 19 अप्रैल को रोम में होगी।
इस महीने की शुरुआत में अमेरिका ने हिंदमहासागर के दूरदराज के द्वीप डिएगो गार्सिया में कम से कम छह B-2 स्टील्थ बॉम्बर तैनात किए थे। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ऐसा करके अमेरिका ईरान को डराना-धमकाना चाहता है।

डिएगो गार्सिया में अमेरिका की तरफ से तैनात छह B-2 स्टील्थ बॉम्बर।
अमेरिका ने 2015 में न्यूक्लियर डील से खुद को बाहर किया था
कई मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आया है कि ईरान हथियार बनाने लायक स्तर तक का यूरेनियम शुद्ध करने की प्रक्रिया तेज कर रहा है। 2015 में अपने पहले कार्यकाल में ट्रम्प ने ईरान और पांच अन्य बड़े देशों के साथ हुई न्यूक्लियर डील से अमेरिका को बाहर निकाल लिया था।
नए परमाणु समझौते को लेकर ओमान में हुई पहले दौर की बातचीत में ट्रम्प के मध्य-पूर्व के दूत स्टीव विटकॉफ और ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराकची शामिल हुए। व्हाइट हाउस ने इन बातचीत को ‘सकारात्मक और रचनात्मक’ बताया।
बातचीत को लेकर ट्रम्प ने कहा, ‘मुझे लगता है कि ईरान हमें सिर्फ टाल रहा है। लेकिन फिर भी हमें उम्मीद है कि ईरान बहुत जल्द कोई समझौता करेगा।’
ट्रम्प ने तीन दिन पहले ईरान को धमकी दी थी
ओमान में हुई बैठक से पहले ट्रम्प ने ईरान को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर उसने अपना न्यूक्लियर प्रोग्राम नहीं छोड़ा, तो उसे खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
ट्रम्प की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने पत्रकारों से कहा कि ट्रम्प की प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि ईरान कभी परमाणु हथियार न हासिल कर सके। ट्रम्प कूटनीति से निकाले गए हल का समर्थन करते हैं, लेकिन अगर कूटनीति विफल होती है तो वह कड़े कदम उठाने के लिए भी तैयार हैं।
कैरोलिन लेविट ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रम्प पहले भी साफ कर चुके हैं कि इस मामले में सभी विकल्प खुले हैं। ईरान के पास दो विकल्प हैं- या तो ट्रम्प की मांगों को माने, या गंभीर परिणाम भुगतने को तैयार रहे। यही इस मुद्दे पर ट्रम्प की दृढ़ भावना है।

ट्रम्प की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने शनिवार को कहा कि ईरान को ट्रम्प की बातें माननी पड़ेंगीं या परिणाम भुगतना पड़ेगा।
ईरान के पास 6 परमाणु बम बनाने के लिए पर्याप्त यूरेनियम
2018 में ट्रम्प के ईरान से परमाणु करार रद्द करने के बाद ईरान की बम बनाने की क्षमता में इजाफा हुआ है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के अनुसार ईरान ने 60% शुद्धता का 275 किलो यूरेनियम बना लिया है। यह छह परमाणु बम बनाने के लिए काफी है।
अगर अमेरिका-ईरान के बीच कोई समझौता नहीं होता है तो इस साल के अंत तक अमेरिका या इजराइल या दोनों ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी का फैसला ले सकते हैं। अमेरिकी, इजराइली और अरब सूत्रों का कहना है कि ट्रम्प कुछ माह तक बातचीत की प्रक्रिया जारी रखेंगे।
चार बड़े घटनाक्रमों से समझिए…आखिर ये दोनों देश झगड़ते क्यों रहते हैं?
1953 – तख्तापलट : यह वो साल था, जब अमेरिका-ईरान के बीच दुश्मनी की शुरुआत हुई। अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA ने ब्रिटेन के साथ मिलकर ईरान में तख्तापलट करवाया। निर्वाचित प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसाद्दिक को हटाकर ईरान के शाह रजा पहलवी के हाथ में सत्ता दे दी गई। इसकी मुख्य वजह था-तेल। मोसाद्दिक तेल के उद्योग का राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे।
1979 – ईरानी क्रांति : ईरान में एक नया नेता उभरा-आयतोल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी। खुमैनी पश्चिमीकरण और अमेरिका पर ईरान की निर्भरता के सख्त खिलाफ थे। शाह पहलवी उनके निशाने पर थे। खुमैनी के नेतृत्व में ईरान में असंतोष उपजने लगा। शाह को ईरान छोड़ना पड़ा। 1 फरवरी 1979 को खुमैनी निर्वासन से लौट आए।
1979-81 – दूतावास संकट : ईरान और अमेरिका के राजनयिक संबंध खत्म हो चुके थे। तेहरान में ईरानी छात्रों ने अमेरिकी दूतावास को अपने कब्जे में ले लिया। 52 अमेरिकी नागरिकों को 444 दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया। 2012 में इस विषय पर हॉलीवुड फिल्म-आर्गो आई। इसी बीच इराक ने अमेरिका की मदद से ईरान पर हमला कर दिया। युद्ध आठ साल चला।
2015 – परमाणु समझौता : ओबामा के अमेरिकी राष्ट्रपति रहते समय दोनों देशों के संबंध थोड़ा सुधरने शुरू हुए। ईरान के साथ परमाणु समझौता हुआ, जिसमें ईरान ने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने की बात की। इसके बदले उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में थोड़ी ढील दी गई थी, लेकिन ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद यह समझौता रद्द कर दिया। दुश्मनी फिर शुरू हो गई।
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