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चीन में भारत से पहले क्यों आएगा 2025: न्यूजीलैंड से अमेरिका तक 19 घंटों में न्यू ईयर की जर्नी और उससे जुड़े 6 अजीबोगरीब रिवाज Today World News

चीन में भारत से पहले क्यों आएगा 2025:  न्यूजीलैंड से अमेरिका तक 19 घंटों में न्यू ईयर की जर्नी और उससे जुड़े 6 अजीबोगरीब रिवाज Today World News

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नई दिल्ली2 मिनट पहले

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31 दिसंबर को जैसे ही रात के 12 बजेंगे, दुनियाभर में नए साल का जश्न शुरू हो जाएगा। पर क्या आप जानते हैं, न्यूजीलैंड में भारत से साढ़े 7 घंटे पहले ही नया साल आएगा जबकि अमेरिका में साढ़े 9 घंटे बाद। इस तरह पूरी दुनिया में नया साल आने की जर्नी 19 घंटों तक जारी रहेगी।

दुनिया में सिर्फ नया साल मनाने का समय ही नहीं बल्कि रिवाज भी अलग-अलग हैं। जापान में नए साल के स्वागत पर लोग मिलकर 108 बार घंटा बजाते हैं, जबकि चीन 29 जनवरी को जश्न मनाएगा।

नए साल पर जानिए अलग-अलग देशों में अलग-अलग टाइम की साइंस और न्यू ईयर मनाने के 6 अजीबो-गरीब रिवाज…

अंग्रेजों ने किया था दुनिया के समय का बंटवारा पृथ्वी के सूरज का एक चक्कर पूरा करने से साल बदलता है। वहीं, अपनी धुरी पर पूरा चक्कर लगाने पर दिन और रातें होती हैं। पृथ्वी के अपनी धुरी पर लगातार घूमते रहने की वजह से कहीं सुबह, कहीं दोपहर तो कहीं पर रात होती है। यही वजह है कि दुनिया के लगभग हर देश को अलग-अलग टाइम जोन में बांट दिया गया है।

टाइम जोन की जरूरत क्यों पड़ी? घड़ी का आविष्कार 16वीं सदी में हुआ, लेकिन 18वीं सदी तक इसे सूरज की पोजिशन के मुताबिक सेट किया जाता था। जब सूरज सिर पर होता था, तभी घड़ी में 12 बजा दिए जाते थे।

शुरुआत में अलग-अलग देशों के अलग-अलग समय से कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन बाद में रेल से लोग कुछ ही घंटे में एक देश से दूसरे देश पहुंचने लगे। देशों के अलग-अलग टाइम से लोगों को ट्रेन के समय का हिसाब रखने में दिक्कतें आईं। जैसे कोई शख्स अगर सुबह 8 बजे स्टेशन से निकलता, तो 5 घंटे बाद, जिस देश पहुंचता वहां कुछ और समय होता।

ऐसे में कनाडाई रेलवे के इंजीनियर सर सैनफोर्ड फ्लेमिंग ने इस समस्या का सबसे पहले हल निकाला। दरअसल 1876 में अलग टाइम की वजह से उनकी ट्रेन छूट गई थी। इस वजह से उन्हें दुनिया के अलग-अलग इलाके में अलग-अलग टाइम जोन बनाने का आइडिया आया।

उन्होंने दुनिया को 24 टाइम जोन में बांटने की बात कही। धरती हर 24 घंटे में 360 डिग्री घूमती है। यानी हर घंटे में 15 डिग्री, जिसे एक टाइमजोन की दूरी माना गया। इससे पूरी दुनिया में 24 समान दूरी वाले टाइम बने।

हालांकि टाइमजोन बनाने के बाद भी यह दिक्कत थी कि 24 टाइमजोन को बांटते समय दुनिया का सेंटर किसे माना जाए। इसी को तय करने के लिए 1884 में इंटरनेशनल प्राइम मेरिडियन सम्मेलन बुलाया गया। इसमें इंग्लैंड के ग्रीनविच को प्राइम मेरिडियन चुना गया। इसे मैप में 0 डिग्री पर रखा गया।

फिलहाल पूरी दुनिया का टाइमजोन GMT यानी ग्रीनविच मीन टाइम से ही मैच किया जाता है। यानी आपका देश अगर GMT से 60 डिग्री की दूरी पर है तो 60X4= 240 मिनट यानी टाइमजोन में 4 घंटे का अंतर होगा।

जो देश ग्रीनविच से पूर्व दिशा में है वहां का टाइम ब्रिटेन से आगे और पश्चिम होने पर पीछे हो जाता है। जैसे भारत का टाइम ब्रिटेन के टाइम से साढ़े पांच घंटे आगे चलता है वहीं, अमेरिका, ब्रिटेन के पश्चिम में होने के कारण ब्रिटेन के टाइम से 5 घंटे पीछे है।

ब्रिटेन से सबसे ज्यादा पूर्व में ओशिनिया महाद्वीप के देश हैं। इसमें न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया वो बड़े देश हैं जहां सबसे पहले 12 बजेंगे और नए साल का स्वागत होगा। जब न्यूजीलैंड में नया साल शुरू होगा, तब भारत में 31 दिसंबर को शाम के 4.30 बजे होंगे। इस टाइमजोन के मुताबिक चीन का समय भारत से ढाई घंटे आगे है, इसलिए वहां पहले नया साल आएगा।

ग्रीनविच को ही GMT क्यों चुना गया? ग्रीनविच में काफी लंबे समय से खगोलीय घटनाओं का अध्ययन किया जाता था। इसलिए ब्रिटेन ने इस जगह को ही टाइमजोन का केंद्र बनाया। तब ब्रिटेन दुनिया का सबसे ताकतवर देश हुआ करता था। व्यापार में भी काफी आगे था और दुनिया के ज्यादातर इलाके पर इसका कब्जा था। समुद्री व्यापार में शामिल ज्यादातर जहाज ब्रिटेन के समय का ही इस्तेमाल करते थे।

जानिए भारतीय समयानुसार कौन सा देश कब मनाएगा नया साल…

दुनिया के साथ नया साल क्यों नहीं मनाता चीन?

चीन दुनिया के उन देशों में से एक है, जहां 1 जनवरी को नए साल का जश्न नहीं मनाया जाता। दरअसल, चीन उन देशों में से है जो सोलर कैलेंडर के बदले लूनीसोलर कैलेंडर के हिसाब से चलता है।

लूनीसोलर कैलैंडर में 12 महीने होते हैं और हर महीने में चांद द्वारा पृथ्वी का एक चक्कर होने पर महीना पूरा माना जाता है। चांद, पृथ्वी का एक चक्कर 29 दिन और कुछ घंटों में पूरा करता है।

चीन में 12वें महीने के 30वें दिन नए साल का जश्न मनाया जाता है। इसे चीन में दानियन संशी कहा जाता है। इस साल चीन में 29 जनवरी को नया साल मनाया जाएगा। इस दौरान लोग एक-दूसरे को लाल रंग के कार्ड देते हैं। इतना ही नहीं, इस दौरान पूर्वजों की पूजा और परिवार के साथ डिनर, ड्रैगन और लॉयन डांस का आयोजन भी किया जाता है।

इस फेस्टिवल को चीन ही नहीं, वियतनाम, दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया और मंगोलिया जैसे बड़े देश भी अलग-अलग परंपराओं के साथ सेलिब्रेट करते हैं।

दुनिया भर में नया साल मनाने के अजीबोगरीब तरीके…

31 दिसंबर को घड़ी में रात के 12 बजते ही, पूरी दुनिया नए साल का स्वागत करती है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि 1 जनवरी को ही साल की शुरुआत क्यों होती है? इसकी वजह रोम साम्राज्य के तानाशाह जूलियस सीजर को माना जाता है।

सीजर ने भ्रष्टाचारी नेताओं को सबक सिखाने के लिए 2066 साल पहले कैलेंडर में बदलाव किए थे। इसके बाद से पूरी दुनिया ने 1 जनवरी को नया साल मनाना शुरू कर दिया।

आखिर ऐसा क्या हुआ था कि सीजर को कैलेंडर बदलना पड़ा, सबसे पहले नया साल कब मना…

आखिर 1 जनवरी को ही नया साल क्यों मनाया जाता है? 2637 साल पहले यानी 673 ईसा पूर्व की बात है। रोम में नूमा पोंपिलस नाम का राजा हुआ करता था। उसने रोमन कैलेंडर में बदलाव करते हुए मार्च की जगह जनवरी से नया साल मनाने का फैसला किया। इससे पहले रोम में नए साल की शुरुआत 25 मार्च से होती थी।

नूमा पोंपिलस का तर्क था कि जनवरी महीने का नाम रोम में नई शुरुआत करने के देवता जानूस के नाम पर पड़ा है। वहीं, मार्च महीने का नाम रोम में युद्धों के देवता मार्स के नाम पर रखा गया है। इसीलिए नए साल की शुरुआत भी मार्च के बजाय जनवरी में होनी चाहिए।

नूमा पोंपिलस के जारी कैलेंडर में एक साल में 310 दिन और सिर्फ 10 महीने होते थे। उस समय एक सप्ताह में 8 दिन थे। हालांकि 2175 साल पहले यानी 153 ईसा पूर्व तक जनवरी में नया साल मनाया जरूर जाता था, लेकिन इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई थी।

नूमा पोंपिलस के 607 साल बाद रोम में राजशाही को उखाड़ कर फेंक दिया गया। साम्राज्य का सारा दारोमदार रोमन रिपब्लिक के पास आ गया। कुछ साल सत्ता में रहने के बाद रिपब्लिक के नेता भ्रष्टाचारी होने लगे। रोम साम्राज्य में मची उथल-पुथल का फायदा उठा कर रोमन आर्मी के जनरल जूलियस सीजर ने सारी कमान अपने हाथों में ले ली।

इसके बाद उसने नेताओं को सबक सिखाना शुरू किया। दरअसल, रिपब्लिक के नेता ज्यादा वक्त तक सत्ता में रहने के लिए और चुनावों में धांधली के लिए कैलेंडर में अपनी मर्जी के मुताबिक बदलाव करने लगे थे। वो कैलेंडर में अपनी मर्जी से कभी दिनों को बढ़ा देते तो कभी कम कर देते थे।

इसका समाधान निकालने के लिए जूलियस सीजर ने कैलेंडर ही बदल डाला। 46 ईसा पूर्व में रोम साम्राज्य के तानाशाह जूलियस सीजर ने एक नया कैलेंडर जारी किया।

जूलियस सीजर को खगोलविदों ने बताया कि पृथ्वी को सूर्य के चक्कर लगाने में 365 दिन और 6 घंटे लगते हैं। इसके बाद सीजर ने रोमन कैलेंडर को 310 दिन से बढ़ाकर 365 दिन कर दिया। साथ ही सीजर ने फरवरी के महीने को 29 दिन करने का फैसला किया, जिससे हर 4 साल में बढ़ने वाला एक दिन भी एडजस्ट हो सके। अगले साल यानी 45 ईसा पूर्व से 1 जनवरी के दिन नया साल मनाया जाने लगा।

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