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चीन बोला-ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने से भारत को नुकसान नहीं: साइंटिफिक तरीके से इसे तैयार करेंगे; भारत ने हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पर जताई थी आपत्ति Today World News

चीन बोला-ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने से भारत को नुकसान नहीं:  साइंटिफिक तरीके से इसे तैयार करेंगे; भारत ने हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पर जताई थी आपत्ति Today World News

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बीजिंग17 मिनट पहले

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चीन, तिब्बत में यारलुप त्यांगपो (ब्रह्मपुत्र) नदी पर बिजली बनाने से जुड़े एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है।

चीन ने तिब्बत में यारलुंग सांगपो (ब्रह्मपुत्र) नदी पर डैम बनाने को लेकर भारत की आपत्ति का जवाब दिया है। ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ याकुन ने कहा कि यारलुंग सांगपो नदी पर बांध बनाने से भारत या फिर बांग्लादेश का जल प्रवाह प्रभावित नहीं होगा।

प्रवक्ता याकुन ने कहा कि इस प्रोजेक्ट की पूरी वैज्ञानिक समीक्षा की गई है। इससे इको सिस्टम को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा, उल्टे यह प्रोजेक्ट कुछ हद तक आपदा को रोकने में मदद ही करेगा। याकुन ने कहा कि चीन के इस प्रोजेक्ट से निचले इलाकों में जलवायु परिवर्तन संतुलित होगा।

चीन ने पिछले महीने ब्रह्मपुत्र नदी पर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी। इसके तहत ब्रह्मपुत्र पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाया जा रहा है। इस बांध पर चीन लगभग 137 बिलियन अमरीकी डॉलर (करीब 12 लाख करोड़ रुपए) खर्च करने जा रहा है। चीन यहां से सालाना 300 अरब किलोवाट-घंटा बिजली पैदा करना चाहता है।

अभी दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत पॉवर स्टेशन ‘थ्री गॉर्जेस’ डैम चीन के हुबेई प्रांत में यांग्जी नदी पर बना हुआ है। इसकी सलाना क्षमता 88 अरब किलोवाट प्रति घंटा है।

अभी दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत पॉवर स्टेशन ‘थ्री गॉर्जेस’ डैम चीन के हुबेई प्रांत में यांग्जी नदी पर बना हुआ है। इसकी सलाना क्षमता 88 अरब किलोवाट प्रति घंटा है।

भारत बांध का विरोध क्यों कर रहा? ब्रह्मपुत्र नदी पर बनने वाला बांध तिब्बत पठार के पूर्वी छोर पर हिमालय की विशाल घाटी में बनाया जाएगा। इस इलाके में अक्सर भूकंप आते हैं। बांध के बनने से ईकोसिस्टम पर दबाव पड़ सकता है जिससे कई हादसे हो सकते हैं।

भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य और बांग्लादेश पहले से ही भयंकर बाढ़ की घटनाओं का सामना कर रहे हैं और जलवायु परिवर्तन के कारण उन्हें और अधिक चुनौतियों जैसे- भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ आदि का सामना करना पड़ सकता है। यही वजह है कि इस बांध के बनने से भारत की चिंता बढ़ गई है।

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने 3 जनवरी को एक प्रेस ब्रीफिंग में इस बांध को लेकर आपत्ति जताई थी। भारत ने कहा था कि ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने से निचले राज्यों के हितों को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए।

यह तिब्बत में बहने वाली यारलुंग त्सांगपो नदी है जो भारत में आकर ब्रह्मपुत्र कहलाती है।

यह तिब्बत में बहने वाली यारलुंग त्सांगपो नदी है जो भारत में आकर ब्रह्मपुत्र कहलाती है।

चीन बोला- कई दशक तक रिसर्च के बाद मंजूरी दी चीन की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने पिछले सप्ताह कहा था कि चीन ने हमेशा से क्रॉस-बॉर्डर नदियों के विकास की जिम्मेदारी निभाई है। तिब्बत में हाइड्रोपावर डेवलपमेंट को दशकों की इन-डेप्थ स्टडी के बाद मंजूरी दी गई है। इसके बनने से निचले इलाके में रहने वाले लोगों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

प्रवक्ता माओ ने कहा था कि चीन सीमावर्ती देशों के साथ बातचीत जारी रखने के लिए तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि चीन निचली नदियों के किनारे मौजूद देशों के साथ भूकंप और आपदा प्रबंधन में मदद करेगा ताकि नदी के किनारे रहने वाले लोगों को फायदा हो सके।

ब्रह्मपुत्र (यारलुंग सांगपो) नदी तिब्बत में कैलाश पर्वत के पास एंग्सी ग्लेशियर से निकलती है और करीब तीन हजार किलोमीटर तक फैली हुई है। भारत में आने के बाद इस नदी को ब्रह्मपुत्र नाम से जाना जाता है। बांग्लादेश पहुंचने पर इसे जमुना कहा जाता है।

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भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने जानकारी दी है।

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भारत ने शुक्रवार 3 जनवरी को चीन की ओर से लद्दाख के कुछ इलाकों को अपना बताने पर विरोध दर्ज कराया। विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन अपने होतान प्रांत में दो नए काउंटी (जिला) बनाने की कोशिश कर रहा है। इनका कुछ हिस्सा लद्दाख में पड़ता है। पूरी खबर पढ़ें…

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