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चंडीगढ़ पीजीआई में स्थिति गंभीर: इंडेंट से लेकर जांच शुल्क तक में खेल, इंटरनल ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा Chandigarh News Updates

चंडीगढ़ पीजीआई में स्थिति गंभीर: इंडेंट से लेकर जांच शुल्क तक में खेल, इंटरनल ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा Chandigarh News Updates

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चंडीगढ़ पीजीआई
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


चंडीगढ़ पीजीआई में आयुष्मान भारत योजना समेत अन्य कई स्तर पर फर्जी स्टांप और मुहर मिलने का मामला सामने आ चुका है। पुलिस के साथ ही पीजीआई प्रशासन भी मामले की जांच में जुट गई है। लेकिन हकीकत यह है कि पीजीआई के अलग-अलग डिपार्टमेंट ऐसी तमाम गड़बड़ियां कर बैठे हुए हैं जिससे संस्थान को आर्थिक क्षति होने के साथ ही कई स्तर पर खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। इसका खुलासा संस्थान के ही इंटरनल ऑडिट की रिपोर्ट में हुआ है, बावजूद इसके विभाग सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। 

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मामला एडवांस पीडियाट्रिक सेंटर के हेमेटोलॉजी लैब का है जिसमें संस्थान के इंटरनल ऑडिट टीम ने पाया है कि वहां स्टॉक रजिस्टर, इंडेंट, लॉक बुक, जांच भुगतान रिकॉर्ड और उपकरण को लेकर व्यापक स्तर पर अनदेखी की जा रही है।

रिकॉर्ड चेक करने पर ऑडिट टीम ने पाया है कि मरीजों से बिना शुल्क लिए धड़ल्ले से महंगी जांच कर संस्थान को आर्थिक चूना लगाने का काम किया जा रहा है। स्थिति यह है कि विभाग में रिकॉर्ड भरने में की गई गलती सामने आने पर संबंधित अधिकारियों ने इसे चूक मानते हुए भविष्य में ऐसा न करने का भी हवाला दिया है। इस ऑडिट रिपोर्ट का खुलासा आरटीआई एक्टिविस्ट आरके गर्ग द्वारा मांगे गए सवालों के जवाब में संस्थान ने खुद किया है।

इंटरनल ऑडिट से 1 फरवरी 2025 को मिली रिपोर्ट के अनुसार अलग-अलग विभागों की 2019 से लेकर 2022 तक की ऑडिट की गई है, जिसमें पीडियाट्रिक हेमेटोलॉजी लैब की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2015 में वहां वर्टिकल डीप फ्रीजर की खरीद की गई थी, जिसके इंस्टॉलेशन के बाद वह कभी भी ठीक से नहीं चली। जबकि उसके अंतर्गत दो वर्ष की वारंटी पीरियड भी थी। उस कंपनी को उपकरण के लिए सत्र प्रतिशत भुगतान किया जा चुका है। वही ऑडिट टीम का यह भी कहना है कि फर्म के विरुद्ध विभाग की तरफ से क्या कार्रवाई की गई उसकी जानकारी दी जानी चाहिए। इसके जवाब में विभाग ने बताया है कि डीप फ्रीजर में इंस्टॉलेशन के पांच महीने के अंदर ही काम बंद कर दिया।

गड़बड़ी को दूर करने के लिए संबंधित फाॅर्म से ईमेल के माध्यम से संपर्क किया इसके बाद दो बार टेक्नीशियन भेज कर उसके मरम्मत कराई गई लेकिन मशीन उसके बाद भी खराब हो गई इसके बाद फर्म को कॉल और मेल किया गया लेकिन उनकी तरफ से कोई ध्यान नहीं दिया गया। मशीन पूरी तरह बंद हो चुकी थी। इंटरनल डिवीजन से मदद लेकर उसे ठीक कराया गया। एक साल बाद वह फिर से खराब हो गई। संबंधित अधिकारी ने यह स्वीकार किया है कि फार्म के साथ संपर्क के लिए जो भी मेल किए गए थे वह डिलीट हो चुके हैं और साक्षी के रूप में उसे पेश नहीं किया जा सकता कितना ही नहीं उसे फर्म को काली सूची में डालने की प्रक्रिया के संबंध में यह भी बताया गया है उसके रिकॉर्ड भी उपलब्ध नहीं है।

प्राइवेट मरीज से भी नहीं लिया शुल्क

उपकरण को लेकर की गई लापरवाही के साथ ही विभाग में जांच शुल्क को लेकर भी व्यापक स्तर पर गड़बड़ी सामने आई है। ऑडिट टीम में रिपोर्ट में बताया है कि एनजीएस और सीईआरसी1 जांच के लिए मरीजों से भुगतान नहीं कराया गया है। इतना ही नहीं बाहर से व ओपीडी से आने वाले जांच नमूने के साथ ही पीजीआई के प्राइवेट रूम में भर्ती मरीजों से भी जांच शुल्क का भुगतान न लेने का मामला सामने आया है। ऐसे में ऑडिट टीम ने आपत्ति जताई है कि बिना भुगतान के उन मरीजों को छुट्टी कैसे दे दी गई। इतना ही नहीं संबंधित स्टाफ द्वारा मरीज की फाइल की मास्टर शीट में भी इसका उल्लेख नहीं किया गया है।

उपकरण की खरीद का भी रिकाॅर्ड गड़बड़

जांच में अभी पाया गया है कि अनुसंधान परियोजनाओं के अनुदान से खरीदे गए उपकरणों से संबंधित स्टॉक भी रजिस्टर में दर्ज नहीं किया जा रहा है। वही उपकरण के मरम्मत और रखरखाव पर हुए खर्च की भी जानकारी कहीं मेंटेन नहीं की जा रही है। इसके जवाब में विभागीय अधिकारियों ने बताया है कि गड़बड़ियों को लेकर वे शर्मिंदा हैं। ऐसी स्थिति से बचने के लिए भविष्य में सुधारात्मक कार्रवाई और उचित सावधानी बरती जाएगी।

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