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गूगल स्पेस में AI डेटा सेंटर बनाएगी: कंपनी ने प्रोजेक्ट ‘सनकैचर’ का ऐलान किया, 2027 में दो प्रोटोटाइप सैटेलाइट लॉन्च करेगी Today Tech News

गूगल स्पेस में AI डेटा सेंटर बनाएगी:  कंपनी ने प्रोजेक्ट ‘सनकैचर’ का ऐलान किया, 2027 में दो प्रोटोटाइप सैटेलाइट लॉन्च करेगी Today Tech News

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नई दिल्ली52 मिनट पहले

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गूगल ने अपने नए मूनशॉट प्रोजेक्ट ‘सनकैचर’ का ऐलान किया। इस प्रोजेक्ट के तहत गूगल स्पेस में AI डेटा सेंटर बनाएगा। गूगल के CEO सुंदर पिचाई ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट शेयर कर इसकी जानकारी दी।

इस प्रोजेक्ट के तहत गूगल स्पेस में सूरज की रोशनी से चलने वाले सैटेलाइट्स भेजेगी। इन सैटेलाइट्स में गूगल के लेटेस्ट AI चिप्स फिट किए जाएंगे, जो ट्रिलियम टीपीयू (TPUs) कहलाते हैं। ये चिप्स AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कामों को तेजी से हैंडल करने के लिए बनाए गए हैं।

ये सैटेलाइट्स एक-दूसरे से फ्री-स्पेस ऑप्टिकल लिंक्स नाम की तकनीक से जुड़ेंगे। मतलब, लेजर लाइट की मदद से बिना तारों के हाई-स्पीड डेटा शेयर करेंगे। इससे AI की कंप्यूटिंग पावर यानी दिमागी ताकत को धरती से बाहर स्पेस में और ज्यादा बड़ा और तेज बनाया जा सकेगा।

आसान शब्दों में कहें तो गूगल पृथ्वी पर बिजली की कमी या अन्य दिक्कतों से बचने के लिए स्पेस में सूरज की फ्री एनर्जी यूज करके AI को सुपरफास्ट बनाना चाहती है, ताकि बड़े-बड़े AI टास्क आसानी से हो सकें।

गूगल के CEO सुंदर पिचाई ने X पर पोस्ट शेयर कर प्रोजेक्ट 'सनकैचर' की जानकारी दी।

गूगल के CEO सुंदर पिचाई ने X पर पोस्ट शेयर कर प्रोजेक्ट ‘सनकैचर’ की जानकारी दी।

हमारे TPUs अंतरिक्ष की ओर बढ़ रहे: पिचाई

सुंदर पिचाई ने X पर लिखा, ‘हमारे TPUs अंतरिक्ष की ओर बढ़ रहे हैं। क्वांटम कंप्यूटिंग से सेल्फ ड्राइविंग तक मूनशॉट्स की हिस्ट्री से इंस्पायर्ड प्रोजेक्ट सनकैचर स्पेस में स्केलेबल ML सिस्टम बनाएगा। सूरज की पावर हार्नेस करेंगे, लेकिन कॉम्प्लेक्स इंजीनियरिंग चैलेंज सॉल्व करने होंगे।’

प्रोजेक्ट सनकैचर क्या है, कैसे काम करेगा

प्रोजेक्ट सनकैचर गूगल का एक रिसर्च आइडिया है। जिसके तहत छोटे-छोटे सैटेलाइट्स को लो अर्थ ऑर्बिट यानी सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट (SSO) में लॉन्च किया जाएगा, जहां हमेशा सूरज की रोशनी मिलती रहे। हर सैटेलाइट में सोलर पैनल और गूगल के ट्रिलियम TPUs चिप लगे होंगे, जो AI ट्रेनिंग के लिए बनाए गए हैं। यह सैटेलाइट्स एक-दूसरे से ऑप्टिकल लिंक्स से जुड़ेंगे, जिससे टेराबिट्स प्रति सेकंड स्पीड मिलेगी।

गूगल ने बताया कि 81 सैटेलाइट्स का क्लस्टर सिर्फ 1 किलोमीटर रेडियस में उड़ेगा, ताकि डेटा ट्रांसफर आसान हो। स्पेस में सोलर पावर लगातार मिलेगी, जिससे बैटरी की जरूरत कम होगी। कंपनी को शुरुआती टेस्ट में 1.6 Tbps बाइडायरेक्शनल स्पीड मिली है। वहीं 400 मील ऊपर उड़ते इन सैटेलाइट्स क्लस्टर से बड़े मशीन लर्निंग (ML) वर्कलोड्स हैंडल होंगे। इससे पृथ्वी पर बिजली, पानी और जमीन की टेंशन कम होगी।

प्रोजेक्ट सनकैचर में गूगल छोटे-छोटे सैटेलाइट्स सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट (SSO) में लॉन्च करेगी।

प्रोजेक्ट सनकैचर में गूगल छोटे-छोटे सैटेलाइट्स सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट (SSO) में लॉन्च करेगी।

अंतरिक्ष में क्यों, पृथ्वी पर क्या दिक्कत

AI मॉडल्स को ट्रेन करने में बहुत एनर्जी लगती है। पृथ्वी पर डेटा सेंटर्स के लिए बिजली, पानी और जगह की समस्या बढ़ रही है। गूगल के सीनियर डायरेक्टर ट्रेविस बील्स ने कहा कि सूरज हमारे सोलर सिस्टम का अल्टीमेट एनर्जी सोर्स है, जो पूरी दुनिया की कुल बिजली प्रोडक्शन से 100 ट्रिलियन गुना ज्यादा पावर देता है।

अंतरिक्ष में सोलर पैनल 8 गुना ज्यादा प्रोडक्टिव होंगे और लगातार पावर देंगे। इससे कार्बन फुटप्रिंट भी कम होगा। गूगल का मानना है कि 2030 तक सैटेलाइट्स की लॉन्च कॉस्ट 200 डॉलर (17,727 रुपए) प्रति किलो हो जाएगी, तो स्पेस डेटा सेंटर की कीमत पृथ्वी वाले के बराबर आ जाएगी।

तकनीकी चुनौतियां, रेडिएशन से TPUs को बचाना

अंतरिक्ष में रेडिएशन बहुत ज्यादा होता है, जो चिप्स को खराब करता है। गूगल ने ट्रिलियम TPU को पार्टिकल एक्सीलरेटर (67MeV प्रोटॉन बीम) में टेस्ट किया। रिजल्ट अच्छा रहा- चिप 15 krad(Si) तक रेडिएशन सहन कर लेगी। लेकिन हाई बैंडविड्थ मेमोरी (HBM) सेंसेटिव है।

सैटेलाइट्स को करीब उड़ाना पड़ेगा, ताकि ऑप्टिकल लिंक काम करे। इसके लिए हिल-क्लोहेसी-विल्टशायर इक्वेशंस और JAX मॉडल यूज होंगे। थर्मल मैनेजमेंट और ग्राउंड कम्युनिकेशन भी बड़ी चुनौती है। ट्रेविस बील्स ने कहा कि कोर कॉन्सेप्ट्स पर फिजिक्स या इकोनॉमिक बैरियर नहीं है, बस इंजीनियरिंग चैलेंज बाकी हैं।

गूगल 2027 की शुरुआत में दो प्रोटोटाइप सैटेलाइट्स लॉन्च करेगी।

गूगल 2027 की शुरुआत में दो प्रोटोटाइप सैटेलाइट्स लॉन्च करेगी।

2027 में पहला टेस्ट, प्लैनेट के साथ पार्टनरशिप

गूगल 2027 की शुरुआत में प्लैनेट लैब्स कंपनी के साथ दो प्रोटोटाइप सैटेलाइट्स लॉन्च करेगी। TPU हार्डवेयर, ऑप्टिकल लिंक्स और मॉडल को स्पेस में टेस्ट किया जाएगा। भविष्य में गिगावाट स्केल कांस्टेलेशन भी बनाए जाएंगे। गूगल के प्रीप्रिंट पेपर में इसकी सारी डिटेल्स दी गई हैं।

सफल हुआ तो AI ट्रेनिंग स्पेस में होगी

अगर प्रोजेक्ट सफल हुआ तो AI ट्रेनिंग स्पेस से होगी। बड़े ML वर्कलोड्स आसानी से हैंडल हो सकेंगे। पृथ्वी पर रिसोर्सेस बचेंगे और एनवायरनमेंट प्रोटेक्ट होगा। लॉन्च कॉस्ट और सोलर एफिशिएंसी बढ़ने पर स्पेस कंप्यूट सस्ता होगा। एक्सपर्ट्स का मानना है कि 2035 तक स्पेस डेटा सेंटर्स रियलिटी बन सकते हैं।

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