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गुरुद्वारा नानकसर साहिब, जहां के अमृत जल से मिलती है सुख-शांति Haryana News & Updates

गुरुद्वारा नानकसर साहिब, जहां के अमृत जल से मिलती है सुख-शांति Haryana News & Updates

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Faridabad News: बल्लभगढ़ के दयालपुर गांव स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा नानकसर साहिब सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद सिंह महाराज की याद में बना है. मान्यता है कि यहां सरोवर में स्नान व अमृत जल पीने से रोग-दोष दूर होते है…और पढ़ें

गुरुद्वारा नानकसर साहिब, जहां के अमृत जल से मिलती है सुख-शांतिदयालपुर गुरुद्वारा आस्था और इतिहास का संगम.
फरीदाबाद: बल्लभगढ़ के दयालपुर गांव में स्थित गुरुद्वारा नानकसर साहिब सिर्फ आस्था का केंद्र ही नहीं बल्कि इतिहास और चमत्कार का अद्भुत संगम भी है. मान्यता है कि यहां आने वाला हर व्यक्ति रोग-दोष से मुक्त हो जाता है और जीवन में सुख-शांति का अनुभव करता है. दूर दूर से लोग यहां माथा टेकने और सरोवर में स्नान करने आते हैं, क्योंकि विश्वास है कि इस अमृत जल में डुबकी लगाने से हर कष्ट दूर हो जाता है.

दयालपुर के इस ऐतिहासिक गुरुद्वारे की कहानी 1619 ईसवी से जुड़ी हुई है. Local18 से बातचीत में गुरुद्वारे के प्रेसिडेंट सेवक परमजीत कलाधारी ने बताया कि इसका इतिहास सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद सिंह महाराज से जुड़ा है. उस समय मुगल बादशाह जहांगीर ने कोसी, पलवल, सोहना, वृंदावन और बल्लभगढ़ सहित 52 छोटे-छोटे राज्यों के राजाओं को ग्वालियर के किले में कैद कर रखा था.

कैसे पड़ा दाता बंदी छोड़ का नाम

गुरु महाराज जी भी दो साल से ज्यादा समय तक वहां कैद रहे. जब जहांगीर गंभीर रूप से बीमार पड़ा तो सलाहकारों की राय पर उसने गुरु महाराज जी को रिहा करने का आदेश दिया, लेकिन गुरु महाराज जी ने शर्त रखी कि उनके साथ कैद सभी राजाओं को भी रिहा किया जाए. जहांगीर ने कहा कि जो राजा उनके चोले का पल्ला पकड़कर बाहर आएंगे उन्हें आजाद कर दिया जाएगा. इस पर गुरु महाराज जी ने 52 कलियों वाला खास चोला तैयार करवाया और सभी राजा उसमें हाथ डालकर बाहर निकले. इस घटना के बाद उन्हें दाता बंदी छोड़ के नाम से जाना जाने लगा.

कैसे पड़ा दयालपुर का नाम

इन्हीं 52 राजाओं में बल्लभगढ़ के राजा बल्लू राजा भी शामिल थे. रिहाई के बाद गुरु महाराज जी तीन दिन तक उनके निवास नाहर सिंह पैलेस में ठहरे. इसी दौरान दयालपुर गांव के लोग गुरु महाराज जी के पास पहुंचे और बताया कि गांव में बाढ़ आती है और कई तरह की परेशानियां हैं. तब गुरु महाराज जी ने अपने घोड़े से गांव का चक्कर लगाया और कहा कि इस गांव का नाम गुरु दयालपुर रखो तब यह हमेशा बसा रहेगा. बाद में हरियाणा बनने पर इसका नाम दयालपुर हो गया.

नानकसर सरोवर

गांव के लोगों ने यह भी शिकायत की कि यहां मीठा पानी नहीं मिलता. तब गुरु महाराज जी ने एक स्थान से तीर चलाया और वहीं पर पानी का कुंड प्रकट हुआ जिसे नानकसर सरोवर नाम दिया गया. पहले यह कच्चा था लेकिन 1980 में कार सेवा शुरू हुई और 2016 में महापुरुष संत हरदयाल सिंह महाराज ने इसे भव्य रूप में बनवाया. आज यहां रोजाना सुबह-शाम लंगर चलता है और हर रविवार को कीर्तन का आयोजन होता है. किसी भी धर्म का व्यक्ति सिर पर कपड़ा बांधकर माथा टेक सकता है और लंगर प्रसाद पा सकता है.

सरोवर से जुड़ी हैं मान्यताएं

गुरुद्वारे के सेवादार ओमप्रकाश बताते हैं कि वह इसी गांव के निवासी हैं और बाबा हरदयाल सिंह जी के शिष्य हैं. उनके अनुसार बाबा जी उच्च कोटि के संत थे जिन्होंने कई लोगों के जीवन में बदलाव लाया. ओमप्रकाश खुद हिंदू धर्म से थे, लेकिन बाबा जी के आशीर्वाद से अब सिख धर्म को मानते हैं. उनका कहना है कि नानकसर सरोवर का अमृत जल पीने वाला कभी दुखी नहीं होता.

दयालपुर का यह गुरुद्वारा सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं बल्कि इतिहास आस्था और चमत्कार का जीवंत प्रमाण है….जहां हर आने वाला व्यक्ति मन की शांति और सुकून लेकर लौटता है.

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