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गुरु ग्रंथ साहिब जी के 420वें प्रकाश उत्सव के उपलक्ष्य में कीर्तन करते हुए ढाडी जत्था। स्वयं
संवाद न्यूज एजेंसी
सिरसा। गुरुग्रंथ साहिब जी के 420वें प्रकाश उत्सव के उपलक्ष्य में गांव प्रताप नगर में स्थित गुरुद्वारा जगजीत मंदर में धार्मिक समागम आयोजित किया गया। मंगल सिंह माछीवाड़ा साहिब से कीर्तन जत्था पहुंचा। जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण पदक विजेता ढाडी जत्था अवतार सिंह आलम, सारंगी मास्टर गुरप्रीत सिंह पुरेवाल, ढाडी गुरदीप सिंह, ढाडी जसपाल सिंह ने गुरुओं की शिक्षाओं का बखान किया। ढाडी अवतार सिंह ने बताया कि गुरुग्रंथ साहिब में सभी धर्मों की वाणी सम्मिलित है।
श्री गुरुग्रंथ साहिब जी की वाणी की शुरुआत मूल मंत्र से होती है। ये मूल मंत्र है, एक ओंकार सतनाम, कर्तापुरख, निरभऊ निर्वैर, अकाल मूरत, अजूनी स्वैभं गुरु परसाद। गुरुग्रंथ साहिब सिख धर्म का प्रमुख धर्मग्रंथ है। इसका संपादन सिख संप्रदाय के पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव द्वारा किया गया। 16 अगस्त 1604 को हरिमंदिर साहिब अमृतसर में गुरु ग्रंथ साहिब जी का पहला प्रकाश हुआ था। गुरु ग्रंथ साहिब में कुल 1430 पृष्ठ हैं। उन्होंने बताया कि पांचों वक्त की नमाज अदा करने वाले शेख फरीद के श्लोक भी गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं। गुरुग्रंथ साहिब में कर्म करने को अधिक महत्व दिया गया है। सिखों के इस ग्रंथ के अनुसार व्यक्ति अपने कर्मों के अनुसार ही महत्व पाता है और कर्म ही उसके जीवन का फैसला करते हैं।
गुरुवाणी के अनुसार भगवान का वास व्यक्तियों के हृदय में होता है। गुरुवाणी मधुर व्यवहार और विनम्र शब्दों के द्वारा हर हृदय को जीतने की सीख देती है। गुरुवाणी ब्रह्मज्ञान से उपजी आत्मिक शक्ति को लोक कल्याण के लिए प्रयोग करने की प्रेरणा देती है। ढाडी जत्थों ने बीच-बीच में कीर्तन से भी श्रद्धालुओं को निहाल किया।
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गुरुग्रंथ साहिब में सभी धर्मों की वाणी सम्मिलित : ढाडी अवतार सिंह


