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Agriculture News: किसान सोनू कुमार ने बताया कि वह मूल रूप से मेरठ जिले के रहने वाले है और छायंसा गांव में 10 एकड़ का अमरूद का बाग पट्टे पर लेकर खेती कर रहे है. एक एकड़ में करीब 200 पेड़ लगे हुए है और पट्टे का ख…और पढ़ें
Local18 से बातचीत में किसान सोनू कुमार ने बताया कि वह मूल रूप से मेरठ जिले के रहने वाले है और छायंसा गांव में 10 एकड़ का अमरूद का बाग पट्टे पर लेकर खेती कर रहे है. एक एकड़ में करीब 200 पेड़ लगे हुए है और पट्टे का खर्च 40 हजार रुपये प्रति किला पड़ता है. उन्होंने बताया कि बाग साल में दो बार फल देता है, हर छह महीने पर फसल आती है. बागान पहले से तैयार था, जिसे उन्होंने करीब दो साल पहले पट्टे पर लिया.
एक सीजन में 1 से सवा लाख रुपये तक खर्च हो जाता है. सबसे बड़ी चुनौती कीट और मक्खियों से बचाव की होती है. अमरूद देखने में भले चमकदार लगे. लेकिन कई बार अंदर से कीड़ा निकल आता है. इसके लिए साइबर-25 और अल्फा मीथेन जैसी दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा पेड़ों को दीमक से बचाने के लिए चुना और अन्य दवाइयां डाली जाती है. किसान बताते हैं कि 15 दिन में एक बार पानी देना जरूरी है, वरना पैदावार प्रभावित होती है.
किसानों को नुकसान
हालांकि इस बार बाजार में भाव कुछ कमजोर है. बल्लभगढ़ और फरीदाबाद मंडियों में अमरूद 300 से 350 रुपये कैरेट तक बिक रहा है, जिसमें 20 से 22 किलो फल होता है. बारिश की वजह से इस बार किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है, जबकि पिछले सीजन में अच्छा फायदा हुआ था. सोनू बताते हैं कि उनके परिवार में सात से आठ सदस्य है और यही बाग उनकी रोजी-रोटी का सहारा है. बाग की मेहनत को आसान बनाने के लिए किसान घरेलू उपाय भी अपनाते है.
समय-समय पर छंटाई
जैसे चींटियों या कीटों से बचाव के लिए चूना-पानी का स्प्रे और फूलों को टिकाने के लिए लकड़ी की राख का इस्तेमाल. साथ ही वे पेड़ों की समय-समय पर छंटाई और सफाई करते है. ताकि पौधों की ताकत सही दिशा में लगे और ज्यादा फल मिल सकें. कहावत है, जितनी देखभाल उतना मीठा फल, और यही सच छायंसा गांव के इन अमरूदों में साफ झलकता है.
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