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फरीदाबाद के मलेरना गांव के राम किशन 50 भेड़ और बकरियों के साथ पशुपालन करते हैं. रोजाना गर्मी और ठंड में मेहनत कर वह 30,000 रुपए तक की आमदनी करते हैं. बकरियों के बच्चों की बिक्री और दूध की मांग से परिवार का खर्च…और पढ़ें
चरवाहे राम किशन का पशुपालन से सहारा.
हाइलाइट्स
- फरीदाबाद के मलेरना गांव के राम किशन 50 भेड़ और बकरियों के साथ पशुपालन करते हैं.
- रोजाना गर्मी और ठंड में मेहनत कर वह 30,000 रुपए तक की आमदनी करते हैं.
- बकरियों के बच्चों की बिक्री और दूध की मांग से परिवार का खर्च चलता है.
फरीदाबाद: फरीदाबाद के बल्लभगढ़ क्षेत्र के मलेरना गांव में राम किशन का जीवन पशुपालन पर निर्भर है. उनके पास करीब 50 भेड़ और बकरियां हैं, जिनकी देखभाल और चराई में वह दिन-रात मेहनत करते हैं. भीषण गर्मी के बावजूद राम किशन हर रोज़ सुबह 10 बजे अपने जानवरों को लेकर खेतों में निकलते हैं और शाम 6-7 बजे तक उन्हें चराते हैं. उनके इस कठिन काम के बावजूद, यह ही उनकी मुख्य आय का स्रोत है, जिससे उन्हें महीने की लगभग 30 हजार रुपए की आमदनी हो जाती है. यही आमदनी उनके परिवार का सहारा है और उनके जीवन की संजीवनी है.
डेंगू के समय बकरी के दूध की रहती है काफी मांग
राम किशन बताते हैं कि उनकी उम्र 50 साल है और वह पिछले 20 सालों से पशुपालन का काम कर रहे हैं. उनके चार बच्चे हैं, जिनमें से एक बेटी की शादी भी कर चुके हैं. उनके पास 10 भेड़ें और लगभग 40 बकरियां हैं. राम किशन कहते हैं कि बकरी का बच्चा जब 20 किलो का हो जाता है, तो उसे 7-8 हजार रुपये में बेचते हैं, जबकि भेड़ का बच्चा थोड़ा महंगा बिकता है और उसे 8-10 हजार रुपये तक मिलता है. इसके अलावा, डेंगू के समय बकरी के दूध की काफी मांग रहती है, और तब यह दूध 400 रुपये किलो तक बिकता है.
पशुपालन से ही चलता है परिवार का खर्च
राम किशन का कहना है कि मलेरना गांव में वह एकमात्र किसान हैं, जो बड़े पैमाने पर पशुपालन करते हैं. उनके जानवरों को अतिरिक्त चारा नहीं दिया जाता, बल्कि वह दिनभर खेतों में चराई करते हैं, जिससे उनका पेट भर जाता है. हालांकि, अगर कभी जानवर बीमार हो जाते हैं, तो वह सरकारी अस्पताल से दवाई लेते हैं या पशु डॉक्टर के पास जाते हैं. अपने जानवरों के लिए उन्होंने घर में अलग से जगह बनाई है, जहां रात को आराम से रखा जा सकता है.
राम किशन बताते हैं कि उनका काम बहुत मेहनत वाला है, लेकिन इसी मेहनत से उनका परिवार चलता है. वह गर्मी हो या सर्दी, रोजाना चराई करनी ही पड़ती है. उनके लिए यह काम जीवन का आधार है. वह चाहते हैं कि उनके बच्चे भी इस पेशे को अपनाएं और मेहनत के साथ आगे बढ़ें.
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