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Faridabad latest News: दिवाली की रौनक सिर्फ लाइट और सजावट से नहीं बल्कि कुम्हारों और कारीगरों की मेहनत से होती है. बल्लभगढ़ के कुंदन लाल और फरीदाबाद की पदमा देवी मिट्टी के दीये और मूर्तियां बनाकर त्योहार को रोशन करते हैं.
फरीदाबाद: दिवाली का त्यौहार जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे बाजारों में रौनक बढ़ती जा रही है. जगह-जगह रंग-बिरंगी लाइटें, सजावट का सामान और सबसे खास मिट्टी के दीये, घड़े और मूर्तियां बिकती नजर आ रही हैं. यह त्यौहार रोशनी का पर्व तो है ही लेकिन असली रौनक उन कुम्हारों और कारीगरों की मेहनत से बनती है जो महीनों पहले से मिट्टी को आकार देकर दीयों और मूर्तियों में जान डालते हैं. हालांकि, इन कारीगरों के सामने इस बार सबसे बड़ी मुश्किल मिट्टी की हो गई है… वही मिट्टी जिससे ये सुंदर दीये और मूर्तियां बनती हैं, वही अब इन्हें आसानी से मिल नहीं पा रही.
Local18 से बातचीत में बल्लभगढ़ निवासी कुंदन लाल बताते हैं कि उनके परिवार की कई पीढ़ियां इस काम में लगी हैं. हम बचपन से चाक घुमा रहे हैं. दिवाली पर सबसे ज्यादा काम होता है, पर मिट्टी की वजह से ऑर्डर पूरे नहीं हो पाते वे कहते हैं. वह दीये, घड़े, गुल्लक और कई अन्य चीजें बनाते हैं. दिवाली के समय उनके पास 20 से 30 तक ऑर्डर आ जाते हैं जिनकी कीमत 400 से 500 रुपये प्रति हज़ार दीया तक होती है, लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल है मिट्टी…हम जो मिट्टी इस्तेमाल करते हैं वो नॉर्मल नहीं होती. ये खास काली चिकनी मिट्टी होती है जो ट्रॉली के हिसाब से आती है. एक ट्रॉली मिट्टी 7 से 8 हजार रुपये की पड़ती है…वे बताते हैं.
कैसे तैयार होता है सामान
कुंदन लाल आगे समझाते हैं कि इस मिट्टी को तैयार करने में भी मेहनत लगती है. पहले मिट्टी को सुखाया जाता है फिर गड्ढे में गलाया जाता है उसके बाद चाक पर चढ़ाकर आकार दिया जाता है. फिर धूप में सुखाकर भट्ठी में पकाया जाता है. तब जाकर एक दीया तैयार होता है. उनके मुताबिक 100 दीयों पर करीब 15 से 20 प्रतिशत तक का खर्च आता है. भट्ठी पकाने के लिए लकड़ी का बुरादा इस्तेमाल होता है जिसकी कीमत भी बढ़ गई है. वे बताते हैं कि महीने भर में मुश्किल से 15 हजार रुपये की आमदनी हो पाती है जिससे बस परिवार का खर्च चल जाता है. हम इसी काम पर भरोसा रखते हैं यही हमारी पहचान है…वे कहते हैं.
दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की डिमांड
मिट्टी खरीदने के लिए देने होते हैं 10 हजार
हमारे लिए दिवाली सिर्फ त्योहार नहीं
पदमा बताती हैं कि उनका परिवार पिछले 40 सालों से इस काम में है. दिवाली हमारे लिए सिर्फ त्यौहार नहीं बल्कि साल का सबसे बड़ा मौका होता है. मिट्टी में हमारी जिंदगी बसती है…वही मिट्टी जो हमारे दीयों से हर घर को रोशनी देती है.
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