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क्या इलाज करने से इनकार कर सकता है डॉक्टर, धर्म के नाम पर ट्रीटमेंट नहीं करने पर कितनी सजा? Health Updates

क्या इलाज करने से इनकार कर सकता है डॉक्टर, धर्म के नाम पर ट्रीटमेंट नहीं करने पर कितनी सजा? Health Updates

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Patient Rights law India: उत्तर प्रदेश में एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है. जौनपुर महिला जिला अस्पताल में एक महिला मरीज ने डॉक्टर पर गंभीर आरोप लगाया है. मरीज के अनुसार, धर्म के आधार पर उस डॉक्टर ने उसे और एक अन्य मुस्लिम महिला को देखने से मना कर दिया. 27 वर्षीय शमा परवीन ने कहा कि डॉक्टर ने कहा कि “मैं इसको नहीं देखूंगा, इसको ऑपरेशन थियेटर में मत लाना.” उन्होंने अन्य मरीजों को देखा, लेकिन इन दो मुस्लिम मरीजों को देखने से मना कर दिया. इस समय इस बात को विपक्ष सरकार पर निशाना साध रहा है. चलिए इससे हटकर आज हम आपको बताते हैं कि क्या धर्म के आधार पर ट्रीटमेंट से रिफ्यूज किया जा सकता है.

क्या धर्म के आधार पर हो सकता है भेदभाव?

सबसे पहले हम आते हैं Medical Council of India (अब NMC) के Code of Medical Ethics Regulations, 2002 पर, जिसमें मेडिकल एथिक्स के बारे में बताया गया है. इसके अनुसार, एक डॉक्टर को किसी भी मान्य रोगी की अनदेखी नहीं करनी चाहिए. यदि कोई डॉक्टर जानबूझकर बिना कोई ठोस कारण बताए इलाज करने से मना करता है, तो इस नियम का उल्लंघन माना जाता है.

PMC में छपी एक रिसर्च रिपोर्ट Medical negligence: Indian legal perspective में बताया गया है कि अगर कोई डॉक्टर बड़ी लापरवाही करता है, जैसे कि जानबूझकर मरीज को न देखना या छोड़ देना, तो यह कानूनी कार्रवाई के दायरे में आता है. पहले IPC की धारा 304A (rash or negligent act causing death) होती थी, जो अब भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 106(1) में बदल गई है. अगर इसमें लापरवाही से किसी की मौत होती है, तो सजा हो सकती है. लेकिन यह तभी लागू होती है जब लापरवाही गंभीर हो. इसके अलावा मरीज के पास यह भी अधिकार होता है कि वह चिकित्सा क्षेत्र में सिविल मुकदमा कर सकता है.

इलाज से इनकार करने का अधिकार

मरीज को Informed Consent का अधिकार है. इसका मतलब है कि मरीज को इलाज से पहले पूरी जानकारी दी जानी चाहिए. इस हिसाब से डॉक्टर का भी अधिकार है कि यदि वह समझे कि मरीज का केस उसके लिए जोखिम भरा है या संसाधन नहीं हैं तो वह इलाज करने से मना कर सकता है, या इस मामले को रेफर कर सकता है. लेकिन इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि धार्मिक, जाति या लिंग के आधार पर इनकार करना गैरकानूनी और अनैतिक माना जाता है. मरीज इसके लिए कोर्ट में केस कर सकता है और डॉक्टर को सजा भी हो सकती है. हालांकि इसके लिए जरूरी है कि मामले में सबूत हों कि डॉक्टर ने जानबूझकर भेदभाव किया या लापरवाही की.

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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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