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कौन थे मेवाड़ के महान शासक राणा सांगा, क्यों उनको लेकर चल रहा है विवाद? – India TV Hindi Politics & News

कौन थे मेवाड़ के महान शासक राणा सांगा, क्यों उनको लेकर चल रहा है विवाद? – India TV Hindi Politics & News

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Image Source : FILE
खानवा में मौजूद राणा सांगा का स्मारक।

मेवाड़ के प्रसिद्ध शासकों में से एक राणा सांगा का नाम भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और वीर योद्धा के रूप में जाना जाता है। उनका जन्म 1484 में हुआ था और वे मेवाड़ के राणा रायमल के पुत्र थे। राणा सांगा का असली नाम संग्राम सिंह था। राणा सांगा ने 1509 से 1527 तक शासन किया। राणा सांगा का इतिहास वीरता, साहस, और नेतृत्व की मिसाल प्रस्तुत करता है। उन्होंने मेवाड़ की सत्ता को मजबूत किया और कई युद्धों में भाग लिया। राणा सांगा ने अपने जीवनकाल में कई युद्धों में सफलता प्राप्त की और उनके नेतृत्व में मेवाड़ ने कई समृद्धि प्राप्त की। 

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बाबर और राणा सांगा के बीच युद्ध संघर्ष

राणा सांगा का सबसे प्रसिद्ध संघर्ष बाबर के खिलाफ था। बाबर ने भारत में दिल्ली की सल्तनत को स्थापित किया था और उसकी नजरें मेवाड़ पर भी थीं। राणा सांगा और बाबर का पहली बार आमना-सामना 21 फरवरी, 1527 को बयाना में हुआ। इसमें बाबर की बुरी हार हुई। अपनी हार के बाद बाबर आगरा लौट गया। बाबरनामा में बाबर ने खुद इस युद्ध के बारे का वर्णन किया है। बयाना की हार के बाद खानवा के मैदान में 16 मार्च, 1527 को राणा सांगा और बाबर की सेनाओं का फिर से आमना-सामना हुआ। इस युद्ध में बाबर तोप और बंदूकों से लड़ा, जबकि राजपूत तलवारों से युद्ध लड़े। यह युद्ध भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण था, क्योंकि राणा सांगा ने बाबर के साम्राज्य को रोकने के लिए काफी संघर्ष किया था। राणा सांगा की एक आंख, एक हाथ, एक पैर क्षतिग्रस्त हो गए थे। उनके शरीर में करीब 80 जख्म आए थे। यह युद्ध राणा सांगा के लिए हार में तब्दील हुआ, लेकिन उनकी वीरता और साहस को आज भी याद किया जाता है।

1528 में हुई राणा सांगा की मृत्यु

राणा सांगा की सैन्य ताकत और रणनीतिक कौशल भी उल्लेखनीय था। वे एक योग्य शासक थे और उन्होंने मेवाड़ के क्षेत्रीय विस्तार को बढ़ाया। उनके शासन में मेवाड़ को न केवल सैन्य बल मिला, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी उन्होंने राज्य को समृद्ध किया। राणा सांगा की प्रमुख विशेषता उनकी जुझारू और संघर्षशील भावना थी। उनके संघर्षों ने यह सिद्ध किया कि वे न केवल एक समर्पित शासक थे, बल्कि एक महान योद्धा भी थे। उनकी मृत्यु 1528 में हुई, लेकिन उनका नाम आज भी भारतीय इतिहास में एक वीरता और साहस के प्रतीक के रूप में जीवित है। 

क्या है पूरा विवाद?

बता दें कि, बीते 21 मार्च को समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन ने राज्यसभा में मेवाड़ के शासक राणा सांगा को लेकर विवादित टिप्पणी की थी। रामजी लाल सुमन ने राणा सांगा को ‘गद्दार’ कहा था। सपा सांसद रामजी लाल सुमन ने कहा, “बाबर राणा सांगा के निमंत्रण पर भारत आया था। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है। मेरा इरादा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं था। हर बार कहा जाता है कि भारत के मुसलमानों के डीएनए में बाबर है। भारत के मुसलमान मुहम्मद साहब (पैगंबर मुहम्मद) को अपना आदर्श मानते हैं और सूफी परंपरा का पालन करते हैं। मेरा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है।” सपा सांसद के इस बयान के बाद से ही रामजी लाल सुमन का विरोध हो रहा है। 

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