कोरोना काल में अपना जीवन दांव पर लगा दूसरों को दिया जीवन दान


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संवाद न्यूज एजेंसी
झज्जर। कोरोना काल ने हर किसी को झकझोर दिया था, ऐसे में चिकित्सकों ने अपने परिवार से दूरी बनाकर मरीजों की सेवा करने को प्राथमिकता दी। 12-14 घंटे ड्यूटी की। पीपीटी किट पहनकर गर्मी से बेहाल हुए लेकिन मरीजों की जान बचाना ही उनकी प्राथमिकता रही। खुद संक्रमित हुए लेकिन घर से ही व्यवस्था बनाने में जुटे रहे। मर्डस डे के मौके पर पेश है खास रिपोर्ट।
जब लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे थे। उस समय कोरोना योद्धा के रूप में चिकित्सक व स्टाफ लोगों की जान बचाने में जुटे थे। न अपने जीवन की परवाह की और न परिवार की, केवल परवाह की तो वह कोरोना संक्रमित हुए लोगों के जीवन को बचने की।
शहर के सामान्य अस्पताल में कार्यरत डॉक्टरों ने कहा कि उन्हें डॉक्टर होने का असली पता कोरोना काल में ही चला और उन्होंने अपना फर्ज बखूबी निभाया।
– समय पूर्व दिया बच्चे को जन्म फिर भी निभाया फर्ज
दो साल के बेटे से दूरी बनाकर किया मरीजों का उपचार
नागरिक अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर डॉ स्वाति सिंह दलाल ने बताया कि कोरोना संक्रमण के कारण नागरिक अस्पताल में स्त्री रोग वार्ड को छोड़कर सभी ओपीडी बंद कर दी गई थी। उन्होंने लगातार ओपीडी में मरीज देखे। उनका दो साल का बेटा था, उसकी भी थोड़ी दूरी बनाकर रखी, खुद दो बार वह संक्रमित हुई लेकिन ठीक होते ही फिर से महिला मरीजों के उपचार में जुट जाती थी। उसके पति डॉक्टर सुनील भी नागरिक अस्पताल में सेवा दे रहे हैं। मुझे पता है कि एक महिला को प्रसव के दौरान कितनी देखभाल की जरूरत होती है इसलिए उसने निडरता से अपनी जिम्मेदारी निभाई। डिलीवरी भी कराई और उपचार भी किया।
दो बार हुए कोरोना संक्रमित, नहीं मानी हार
डिप्टी सीएमओ संजीव मलिक कहते हैं कि कोरोना काल उनके लिए काफी कठिनाई भरा रहा था। उनके पास कोविड वैक्सीनेशन और एंबुलेंस का चार्ज था। मरीजों के बीच रहकर वह खुद दो बार पॉजिटिव हुए लेकिन घर पर आइसोलेट होने के बावजूद व्यवस्थाओं को बनाने में लगे रहे। मरीजों को समय पर एंबुलेंस और वक्सीन मिले सब व्यवस्था घर से करते रहे।
पांच-पांच घंटे पानी तक नहीं पीते थे
फिजिशियन डॉ.मोनिल कादयान ने बताया कि जब जिले का पहला कोरोना केस मिला तो उस समय अजीब माहोल हो गया था। फिजीशियनहोने के नाते प्रथम पायदान पर हमें ही आना पड़ा। 14 से16 घंटे तक किया। दिमाग को एकाग्र करना काफी मुश्किल हो गया था।ी एक बार पीपीटी किट पहनने पर 5 से 6 घंटे तक कुछ नहीं खा पी सकते थे। शरीर में डिहाइड्रेशन तक की नौबत आ जाती थी। एक-एक महीने बाद परिवार से मिलते थे लेकिन एक डॉक्टर होने के नाते परिवार के साथ मरीज भी उनके लिए बहुत जरूरी था।
अपना फर्ज निभाया
चिकित्साधिकारी डॉ सुनील नरवाल कहते हैं कि कोरोना काल में मोर्चरी में कोरोना पॉजिटिव शवों का पोस्टमार्टम भी करना पड़ा था। वह खुद कोरोना संक्रमित हुए लेकिन उस वक्त मरीजों को हमारी जरूरत थे तो हमने जिम्मेदारी समझी और ठीक होकर फिर से ड्यूटी में लग गए।

संवाद न्यूज एजेंसी

झज्जर। कोरोना काल ने हर किसी को झकझोर दिया था, ऐसे में चिकित्सकों ने अपने परिवार से दूरी बनाकर मरीजों की सेवा करने को प्राथमिकता दी। 12-14 घंटे ड्यूटी की। पीपीटी किट पहनकर गर्मी से बेहाल हुए लेकिन मरीजों की जान बचाना ही उनकी प्राथमिकता रही। खुद संक्रमित हुए लेकिन घर से ही व्यवस्था बनाने में जुटे रहे। मर्डस डे के मौके पर पेश है खास रिपोर्ट।

जब लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे थे। उस समय कोरोना योद्धा के रूप में चिकित्सक व स्टाफ लोगों की जान बचाने में जुटे थे। न अपने जीवन की परवाह की और न परिवार की, केवल परवाह की तो वह कोरोना संक्रमित हुए लोगों के जीवन को बचने की।

शहर के सामान्य अस्पताल में कार्यरत डॉक्टरों ने कहा कि उन्हें डॉक्टर होने का असली पता कोरोना काल में ही चला और उन्होंने अपना फर्ज बखूबी निभाया।

– समय पूर्व दिया बच्चे को जन्म फिर भी निभाया फर्ज

दो साल के बेटे से दूरी बनाकर किया मरीजों का उपचार

नागरिक अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर डॉ स्वाति सिंह दलाल ने बताया कि कोरोना संक्रमण के कारण नागरिक अस्पताल में स्त्री रोग वार्ड को छोड़कर सभी ओपीडी बंद कर दी गई थी। उन्होंने लगातार ओपीडी में मरीज देखे। उनका दो साल का बेटा था, उसकी भी थोड़ी दूरी बनाकर रखी, खुद दो बार वह संक्रमित हुई लेकिन ठीक होते ही फिर से महिला मरीजों के उपचार में जुट जाती थी। उसके पति डॉक्टर सुनील भी नागरिक अस्पताल में सेवा दे रहे हैं। मुझे पता है कि एक महिला को प्रसव के दौरान कितनी देखभाल की जरूरत होती है इसलिए उसने निडरता से अपनी जिम्मेदारी निभाई। डिलीवरी भी कराई और उपचार भी किया।

दो बार हुए कोरोना संक्रमित, नहीं मानी हार

डिप्टी सीएमओ संजीव मलिक कहते हैं कि कोरोना काल उनके लिए काफी कठिनाई भरा रहा था। उनके पास कोविड वैक्सीनेशन और एंबुलेंस का चार्ज था। मरीजों के बीच रहकर वह खुद दो बार पॉजिटिव हुए लेकिन घर पर आइसोलेट होने के बावजूद व्यवस्थाओं को बनाने में लगे रहे। मरीजों को समय पर एंबुलेंस और वक्सीन मिले सब व्यवस्था घर से करते रहे।

पांच-पांच घंटे पानी तक नहीं पीते थे

फिजिशियन डॉ.मोनिल कादयान ने बताया कि जब जिले का पहला कोरोना केस मिला तो उस समय अजीब माहोल हो गया था। फिजीशियनहोने के नाते प्रथम पायदान पर हमें ही आना पड़ा। 14 से16 घंटे तक किया। दिमाग को एकाग्र करना काफी मुश्किल हो गया था।ी एक बार पीपीटी किट पहनने पर 5 से 6 घंटे तक कुछ नहीं खा पी सकते थे। शरीर में डिहाइड्रेशन तक की नौबत आ जाती थी। एक-एक महीने बाद परिवार से मिलते थे लेकिन एक डॉक्टर होने के नाते परिवार के साथ मरीज भी उनके लिए बहुत जरूरी था।

अपना फर्ज निभाया

चिकित्साधिकारी डॉ सुनील नरवाल कहते हैं कि कोरोना काल में मोर्चरी में कोरोना पॉजिटिव शवों का पोस्टमार्टम भी करना पड़ा था। वह खुद कोरोना संक्रमित हुए लेकिन उस वक्त मरीजों को हमारी जरूरत थे तो हमने जिम्मेदारी समझी और ठीक होकर फिर से ड्यूटी में लग गए।

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