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सरकारी स्कूलों का बुनियादी ढांचा ही जर्जर है। जिले के 400 से ज्यादा सरकारी स्कूलों में 77 को जर्जर (कंडम) घोषित किया जा चुका है। इसके बावजूद यहां नियमित कक्षाएं लगाई जा रही हैं। बच्चे जान हथेली पर लेकर पढ़ने के लिए मजबूर हैं।
रोहतक के सुखपुरा चाैक स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में कक्षा 6 से 12वीं तक के 750 बच्चों की कक्षाएं सुबह 7 से साढ़े 12 बजे तक लगती हैं। दूसरी शिफ्ट 1 से 5 बजे तक प्राइमरी के 240 बच्चे पढ़ने आते हैं। यहां कुल 11 कमरे हैं। दो कमरे जर्जर घोषित हो चुके हैं। इनमें छत का प्लास्टर तीन जगह से गिर चुका है। दीवारों में सीलन है। बरामदे में भी बच्चों को बैठाया जाता है। बेंच अपर्याप्त हैं। शाैचालय लड़के-लड़कियों के अलग-अलग हैं लेकिन पास जाने पर दुर्गंध आती है। पीने का पानी सप्लाई का मिलता है, आरओ की व्यवस्था नहीं है।
हनुमान काॅलोनी स्थित राजकीय कन्या प्राथमिक पाठशाला का भवन भी कंडम घोषित है। कुल चार कमरे हैं जो जमीन से डेढ़ फीट नीचे आ चुके हैं। बारिश के दाैरान पानी भर जाता है। बच्चे पहले पानी निकालते हैं फिर पढ़ाई करते हैं। वहीं, निगाना स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में 14 में 8 कमरे कंडम घोषित हो चुके हैं। कमोवेश यही हाल अधिकांश सरकारी स्कूलों का है। अरसे से न तो इन भवनों की मरम्मत हुई है और न ही रंग रोगन। शिक्षकों ने कहा कि अधिकारियों व मुख्यालय तक सभी को जानकारी है।
अधिकारी के अनुसार
स्कूलों में सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। शिक्षक पर्याप्त हैं। जिले के जर्जर स्कूलों की मरम्मत के लिए मुख्यालय को पत्र लिखा जा चुका है। हाल में ही पीडब्ल्यूडी बीएंडआर को कई स्कूलों की रिपोर्ट जांच के लिए भेजी गई है। -मनजीत मलिक, जिला शिक्षा अधिकारी, रोहतक।
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कैसी है पाठशाला: रोहतक में जर्जर कमरों और खुले बरामदे में पढ़ रहे बच्चे, शाैचालय से आती है दुर्गंध


