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Wheat Crop Harvest Tips: समय बचाने के लिए लोग धान-गेहूं की कटाई मशीन से कराते हैं पर इसके कई नुकसान भी हैं. हरियाणा के किसान ने दोनों के बीच जमीन-आसमान जैसे फर्क बताए. आप भी जानें…
हाथ से गेहूं कटाई कर रहे हैं किसान जितेंद्र रावत.
हाइलाइट्स
- मशीन की कटाई में डंठल छोड़ जाता है
- हाथ से कटाई में पशु चारा आराम से खाते हैं
- हाथ से कटाई से खेत-वातावरण सुरक्षित रहेंगे
Wheat Farmer: फरीदाबाद के खेतों में इन दिनों गेहूं की कटाई जोरों पर है. कई किसान आधुनिक मशीनों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे एक एकड़ की कटाई महज 20 मिनट से लेकर एक घंटे में हो जाती है. लेकिन, कुछ किसान ऐसे भी हैं जो मशीनों के होते हुए भी परंपरागत तरीके से मजदूरों द्वारा हाथों से ही गेहूं की कटाई करवा रहे हैं.
जानें जमीन-आसमान का अंतर
गांव सुनपेड़ के किसान जितेंद्र रावत बताते हैं कि मशीन की कटाई और हाथ की कटाई में जमीन-आसमान का फर्क है. मशीन कटाई में एक बिलांत का डंठल छोड़ देती है, जबकि हाथ से कटाई में फसल बिल्कुल जमीन से काटी जाती है. हाथ से कटाई का सबसे बड़ा फायदा ये कि अगर आप इसे सुखाकर पशुओं को चारे के रूप में दें तो वे आराम से खा लेते हैं, लेकिन मशीन की कटाई का चारा पशु भी नहीं खाते. वहीं, हाथ से कटाई में सबसे बड़ा फायदा ये कि अगर गेहूं कच्चा भी रह जाए तो पक जाता है.
हाथ से कटाई का सबसे बड़ा फायदा ये
किसान ने आगे कहा, हम हर साल मजदूरों से ही गेहूं कटाई करवाते हैं. शुरू से ही हमारे पूर्वज भी हाथ से ही गेहूं और धान की कटाई करते आ रहे हैं. मशीनें तो अब आई हैं. पहले यही तरीका था. हाथ से कटाई में खेत को भी फायदा होता है, क्योंकि इसके बाद जुताई में ज्यादा मेहनत नहीं लगती. जो बचा-खुचा रहता है, वह खाद के रूप में भी काम आ जाता है.
प्रदूषण भी फैलता है
वहीं, मशीन से कटाई के बाद जुताई में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि कुछ किसान मशीन से कटाई के बाद खेत में आग लगा देते हैं, जिससे प्रदूषण फैलता है. इसलिए हम हाथ से कटाई करते हैं ताकि खेत भी बचे रहें और वातावरण भी स्वच्छ रहे.

मजदूरों को दे रहे रोजगार
जितेंद्र ने बताया, उनकी उम्र 47 साल है. वह काफी सालों से खेती कर रहे हैं. उनके पास हर साल 11-12 मजदूर आते हैं जो गेहूं के साथ-साथ धान की फसल की भी कटाई करते हैं. मंडी में उन्होंने गेहूं 2,425 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचा है. सरसों की फसल की भी ढाई लाख रुपये की पेमेंट मिल चुकी है.
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