[ad_1]
प्लास्टिक प्रदूषण आज पूरी दुनिया के लिए सिरदर्द बन चुका है। समुद्र से लेकर नदियों और यहां तक कि बारिश की बूंदों में भी प्लास्टिक के सूक्ष्म कण (माइक्रोप्लास्टिक) मिल रहे हैं। इस गंभीर पर्यावरणीय संकट के बीच आईआईटी दिल्ली की वैज्ञानिक डॉ. नाहिद त्यागी ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जो सिर्फ 20 मिनट में पानी से 97.4% प्लास्टिक प्रदूषण खत्म कर सकती है।
यह तकनीक नैनो कंपोजिट एमएक्सईएनई-जिंक फेराइट पर आधारित है, जो प्लास्टिक उद्योग से निकलने वाले टेरेफ्थेलिक एसिड (टीपीए) जैसे हानिकारक रासायनिक प्रदूषकों को प्रभावी ढंग से नष्ट करती है। इस क्रांतिकारी उपलब्धि के लिए डॉ. नाहिद त्यागी और उनके सहयोगी डॉ. गौरव शर्मा (आईआईटी दिल्ली, सेंटर फॉर रूरल डेवलपमेंट एंड टेक्नोलॉजी) को नाइपर मोहाली में आयोजित शिक्षा महाकुंभ 2025 के दौरान सर्वश्रेष्ठ शोध पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
जल में फैलता अदृश्य खतरा
भारत में प्लास्टिक और वस्त्र उद्योगों से बड़ी मात्रा में टीपीए युक्त अपशिष्ट जल नदियों और भूजल स्रोतों में पहुंचता है। यह जल को जहरीला बनाकर मछलियों और जलीय जीवों के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करता है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य खतरे उत्पन्न होते हैं। यह समस्या संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य के लिए भी बड़ी चुनौती है।
आंकड़ों के अनुसार, हर साल करीब 70 मिलियन टन टीपीए का उत्पादन होता है, जिससे 3-4 घन मीटर विषैला अपशिष्ट जल बनता है। इस पानी में एंडोक्राइन-डिसरप्टिंग केमिकल्स और उच्च केमिकल ऑक्सीजन मांग जैसे हानिकारक तत्व पाए जाते हैं।
ऐसे काम करती है यह तकनीक
डॉ. त्यागी द्वारा विकसित यह एमएक्सईएनई-जिंक फेराइट नैनो कंपोजिट एक तरह का सुपर फिल्टर है। यह अपशिष्ट जल में मौजूद प्लास्टिक रसायनों को पुराने तरीकों से नौ गुना तेज साफ करता है। इसकी खासियत यह है कि यह अंधेरे में भी काम करता है, यानी इसे किसी रोशनी या बाहरी ऊर्जा स्रोत की जरूरत नहीं होती।
इसे दो प्रक्रियाओं—सोल-जेल ऑटो-कम्बशन और हाइड्रोथर्मल तकनीक—से तैयार किया गया है, जिससे इसका सतही क्षेत्र बहुत बढ़ जाता है। यह बढ़ा हुआ क्षेत्र हानिकारक रसायनों को आसानी से सोखने और तोड़ने में मदद करता है।
एमएक्सईएनई की परतदार संरचना और जिंक फेराइट के चुंबकीय गुणों का संयोजन इसे अत्यधिक प्रभावी बनाता है। इस तकनीक से साफ किया गया पदार्थ आसानी से चुंबक की मदद से पानी से अलग किया जा सकता है और इसे बार-बार दोबारा इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
प्रयोगशाला में मिले शानदार परिणाम
प्रयोगशाला परीक्षणों में यह पाया गया कि इस तकनीक से अपशिष्ट जल की विषाक्तता में 86% की कमी आई और टेरेफ्थेलिक एसिड पूरी तरह कार्बन डाईऑक्साइड व हाइड्रोजन ऑक्साइड में बदल गया। इससे न केवल जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ, बल्कि यह तरीका ऊर्जा-कुशल, पर्यावरण-अनुकूल और किफायती भी साबित हुआ।
स्वच्छ भारत मिशन को देगी गति
भारत में औद्योगिक अपशिष्ट जल की समस्या लगातार बढ़ रही है। इस परिस्थिति में आईआईटी दिल्ली का यह शोध ‘स्वच्छ भारत मिशन’ और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
शिक्षा महाकुंभ में हुई सराहना
शिक्षा महाकुंभ 2025 में जब डॉ. नाहिद त्यागी ने अपना शोध प्रस्तुत किया, तो देशभर के वैज्ञानिकों, प्रोफेसरों और विद्यार्थियों ने इस नवाचार की भूरी-भूरी प्रशंसा की। उन्हें मंच पर बेस्ट रिसर्च अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
अब तक डॉ. त्यागी 20 से अधिक अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र प्रकाशित कर चुकी हैं, जबकि उनके सहयोगी डॉ. गौरव शर्मा के 40 से अधिक शोध कार्य अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।
यह तकनीक न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में जल प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे देशों के लिए उम्मीद की एक नई किरण लेकर आई है।
[ad_2]
एमएक्सईएनई-जिंक फेराइट: पानी से हटाएगी प्लास्टिक का जहर


