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एन. रघुरामन का कॉलम: हमारे पुरखों ने क्षमा कर देने को एक अद्भुत दवा क्यों बताया था? Politics & News

एन. रघुरामन का कॉलम:  हमारे पुरखों ने क्षमा कर देने को एक अद्भुत दवा क्यों बताया था? Politics & News

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1 घंटे पहले

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एन. रघुरामनमैनेजमेंट गुरु

देखने में यह भले ही मामूली घटना लगे, लेकिन इसका एक बेहद हानिकारक पहलू भी है। 50 साल पहले चौथी कक्षा के बालकृष्णन और वीजे बाबू के बीच झगड़ा हुआ, जैसे कोई भी सहपाठी कक्षा में एक-दूसरे से लड़ते हैं। इसके बाद उनके रास्ते अलग हो गए। वे अलग-अलग स्कूलों में गए, पढ़ाई की, बड़े हुए और जीवन में सेटल हो गए।

पिछले सप्ताह वे अपनी प्राथमिक कक्षा के गोल्डन जुबली समारोह में शामिल हुए। जब वे मिले तो पुराने झगड़ों पर हंसने के बजाय दोनों के बीच फिर कहासुनी शुरू हो गई। बात इस हद तक बढ़ गई कि बालाकृष्णन ने एक अन्य व्यक्ति मैथ्यू की मदद से कथित तौर पर बाबू पर हमला कर दिया। याद रहे कि दोनों अब 60 की उम्र के हैं। बाबू को चोटें आईं, उनके दो दांत टूट गए, और उन्हें अस्पताल ले जाया गया।

पुलिस ने दोनों हमलावरों को भारतीय न्याय संहिता के विभिन्न आरोपों में गिरफ्तार कर लिया।दुनियाभर के न्यूरोसाइंटिस्ट्स ने स्कैनिंग तकनीकी के जरिए इस बात का अध्ययन किया है कि जब कोई बदला लेना चाहता है या उपरोक्त मामले की तरह कई वर्षों तक मन में बदले की भावना रखता है तो उसके दिमाग में क्या होता है। यह सामने आया कि बदला लेने पर आमादा दिमाग वैसा ही दिखता है, जैसा वह ड्रग्स लेने पर दिखता है। 2004 में जर्नल साइंस में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ था।

इसमें बताया गया कि प्रतिभागियों को उन अन्य प्रतिभागियों से बदला लेने का मौका दिया गया, जिन्होंने उनसे आर्थिक मामलों में दगाबाजी की थी। लेकिन बदला लेने के लिए उनके दिवालिया होने की शर्त रखी गई थी। कुछ ऐसे थे, जो सबकुछ खोने की कीमत पर भी बदला लेने को तैयार हो गए। उनके मस्तिष्क के पीईटी स्कैन में डोर्सल स्ट्रिएटम की सक्रियता दिखी। यह दिमाग का वह हिस्सा है, जो आदत और बाद में लत बनाने में शामिल होता है।

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नुकसान पहुंचाए जाने या गलत व्यवहार ​किए जाने या गुस्सा, घृणा, अपराध-बोध या शर्म की भावनाएं मस्तिष्क का पेन-नेटवर्क सक्रिय कर देती हैं, विशेष तौर पर दिमाग की उस संरचना को, जिसे एंटीरियर इंसुलेशन कहा जाता है। बदला लेने या इसकी कल्पना से ही डोपामाइन स्रावित होता है, जो दर्द को छुपा देता है और कुछ देर के लिए संतुलन बहाल करता है। नशे के असर की तरह इसके प्रभाव भी धीरे-धीरे या तुरंत समाप्त हो जाते हैं।

लेकिन अमेरिका की कोलगेट यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञानियों ने पाया है कि बदला लेने या इसके बारे में सिर्फ सोचने से ही दीर्घकालीन नकारात्मक परिणाम सामने आते हैं। इनमें टकराव के लगातार बढ़ने से खुद के शिकार हो जाने की घबराहट भी शामिल है। जब हम ड्राइव कर रहे होते हैं तो हमें भी उन लोगों को दंडित करने की इच्छा होती है, जो सिग्नल तोड़ते हैं या सामाजिक नियमों का उल्लंघन करते हैं। जीवन में आगे बढ़ते रहने की अनिवार्यता हमें इस इच्छा को पीछे छोड़ने के लिए मजबूर करती है।

फिर भी लंबे समय तक हमारा दिमाग कहता रहता है कि ‘ऐसे लोग कभी सजा नहीं पाते, दुनिया बहुत खराब हो गई है।’ और यदि आपको भी ऐसा महसूस होता तो अपने दिमाग के पैटर्न को देखना शुरू करें। ड्राइव करते समय भी आपके मन में ऐसे ही ख्याल आएंगे। इसका मतलब है कि दूसरों को सजा देने की सोच की लत लग गई है। न्यूरोसाइंस ने हाल ही में बदला लेने की लत और हिंसा से निपटने का एक आसान और प्रभावशाली उपाय भी बताया है। यह है क्षमा। मैं भी लोगों को सिग्नल तोड़ते देखता हूं।

गाड़ी चलाते समय मुझे भी अकसर सिग्नल तोड़ने वालों को सजा देने की इच्छा होती थी। लेकिन इन शोध निष्कर्षों को पढ़ने के बाद मैंने ऐसे व्यक्तियों से चेहरे पर मुस्कान के साथ तेज आवाज में कहना शुरू कर दिया है- ‘गॉड ब्लेस यू’। और धीरे-धीरे मुझे लगने लगा कि मेरा तनाव कम हो रहा है। यह बहुत मुश्किल नहीं होगा। हमें सिर्फ आधुनिक विज्ञान और क्षमा के बारे में प्राचीन शिक्षाओं का पालन करने की जरूरत है।

फंडा यह है कि बदला लेने पर आमादा दिमाग ड्रग्स की हालत में होने जैसा दिखता है। ड्रग्स की तरह ही बदला भी लत लगाने वाला हो सकता है और इसका सबसे अच्छा डिटॉक्स क्षमा है, जो हमारे पूर्वज जानते थे कि एक चमत्कारी दवा है।

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