
[ad_1]
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
सिनेमा हॉल में बिना किसी व्यवधान के फिल्म देखने वालों के लिए मोबाइल फोन की रोशनी पहले ही परेशानी का सबब है। ऊपर से कुछ अभिनेता के फैंस तो हॉल के अंदर न सिर्फ पटाखे फोड़ते है, बल्कि कुछ तो ‘विसेल पोडु’ (सीटी बजाना) जैसी हरकतें करते हैं, जिससे अन्य दर्शकों को फिल्म के संवाद सुनने में दिक्कत होती है।
यह शब्द महेंद्र सिंह धोनी की आईपीएल टीम सीएसके के मैचों के दौरान लोकप्रिय हुआ। भारत में कई उच्च नेटवर्थ वाले व्यक्तियों (एचएनआई) के घरों में निजी थिएटर हैं और वहीं आराम से फिल्में देखना पसंद करते हैं। उनसे एक स्तर नीचे के लोग अपने घरों में बड़े स्क्रीन लगाकर ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर रिलीज हुई फिल्में देखकर संतुष्ट हो रहे हैं।
थिएटर न जाने का सबसे बड़ा कारण अन्य दर्शकों का खराब व्यवहार और थिएटर में फिल्म देखने का मजा खोना बताया जा रहा है। अब सवाल उठता है कि क्या हम अपने साथी दर्शकों का सम्मान करना भूल रहे हैं, जिन्होंने मनोरंजन के लिए उतना ही पैसा खर्च किया है जितना हमने? क्या यह समस्या सिर्फ हमारे देश में है? इसका जवाब है, “नहीं।”
विकसित देशों में भी दर्शक अनुशासनहीनता दिखाते हैं। पिछले शुक्रवार को रिलीज हुई फिल्म ‘ए माइनक्राफ्ट मूवी’ इसका उदाहरण है। इस फिल्म में अभिनेता जैक ब्लैक का किरदार देखता है कि बेबी जॉम्बी एक चूजे के ऊपर गिरता है, इस दृश्य पर दर्शकों ने शोर मचाना, पॉपकॉर्न फेंकना शुरू कर दिया।
इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अप्रत्याशित सफलता हासिल की, और पूरी दुनिया में अभी तक हाईएस्ट वीकेंड ओपनिंग हासिल करते हुए पहले वीकेंड लगभग 314 मिलियन डॉलर कमाए। फिल्म इस हद तक लोकप्रिय हो गई है कि फिल्म देखने आ रहे दर्शक माइनक्राफ्ट के किरदार जैसा तैयार होकर आ रहे हैं।
बात सिर्फ एक थिएटर की नहीं है, बल्कि इस फिल्म का प्रदर्शन कर रहे लगभग हर थिएटर ने अनुशासनहीन दर्शकों के खिलाफ सख्त कदम उठाए। मालूम चला कि लड़कों के एक बड़े ग्रुप ने इस तरह का अस्वीकार्य व्यवहार किया, जिसमें गुंडागर्दी भी थी, जिसके चलते थिएटर मालिकों को एकजुट होना पड़ा।
न्यू जर्सी के एक थिएटर ने घोषणा की है कि नए मूवी शो के दौरान नाबालिगों को माता-पिता या जिम्मेदार वयस्क के साथ ही एंट्री मिलेगी। यह कदम पिछले दिन के शो के दौरान हुई “दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति” के बाद उठाया गया है। अमेरिका और यूके के कई थिएटरों ने दर्शकों को शो के दौरान अनुशासनहीनता से बचने की चेतावनी देते हुए पोस्टर और नोटिस लगाए हैं।
थिएटरों ने “जीरो टॉलरेंस” नीति अपनाई है और चेतावनी दी है कि अगर दर्शकों का व्यवहार हद से बाहर हुआ तो शो बंद कर दिया जाएगा। कुछ थिएटरों ने नोटिस में लिखा है कि जो भी दर्शक असामाजिक व्यवहार करेंगे, विशेषकर जो अन्य मेहमानों को परेशान कर सकते हैं जैसे जोर से ताली बजाना या चिल्लाना, उन्हें उनकी सीट से हटा दिया जाएगा। और कई थिएटरों ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि ऐसे मामलों में रिफंड नहीं दिया जाएगा। सैकड़ों थिएटर मालिक सोशल मीडिया पर अपने दर्शकों को उनके खराब व्यवहार के परिणामों के बारे में चेतावनी दे रहे हैं।
हमारे देश में, कुछ हद तक, सिर्फ एयरलाइन कंपनियों ने यात्रियों के खराब व्यवहार की निंदा की है और उन्हें कुछ दिनों के लिए उड़ान भरने से रोकने तक की सजा दी है। दरअसल समाज में सहनशीलता घट रही है, और अगर यह जारी रहा तो भविष्य में व्यवसाय भी ऐसा सख्त रुख अपनाएंगे। आज हर व्यवसाय अपने व्यापार की मात्रा बढ़ाने के लिए उपभोक्ताओं को सहन कर रहा है। लेकिन वह दिन दूर नहीं जब थिएटर में बैठे लोगों को उनके सार्वजनिक व्यवहार के कारण उनकी सीट से हटा दिया जाएगा।
फंडा यह है कि जब बात यहां-वहां थूंकने, पेशाब करने, जोर से बात करने और खासतौर पर मोबाइल एटीकेट्स की हो, तो अब सोसायटी में अपने सामाजिक व्यवहार में बड़े स्तर पर सुधार के लिए एक क्रैश कोर्स ही सामाजिक रूप से बेहतर इंसान बना सकता है।

[ad_2]
एन. रघुरामन का कॉलम: सार्वजनिक व्यवहार में क्रैश कोर्स की जरूरत है!