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- N. Raghuraman’s Column If Given The Right Help, Even Children From Rural Areas Can Do Wonders
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
हम सब जानते हैं कि एलपीजी अब ग्रामीण जीवन का हिस्सा बन चुकी है। लेकिन हम में से कई लोग नहीं जानते कि हर घर में सिलेंडर की सुरक्षा कितनी जरूरी है? कर्नाटक में मैसूर के पास सिद्दारमाना हुंडी के कर्नाटक पब्लिक स्कूल में कक्षा 9 की छात्रा निहारिका ने दोस्तों के साथ मिलकर रियल टाइम में एलपीजी की मात्रा व रिसाव पहचानने वाला उपकरण बनाया है। इस प्रोटोटाइप उपकरण का लक्ष्य दो तरीके से मदद करना है- संभावित गैस लीक के डर से निजात और ये चिंता बंद करना कि सिलेंडर कब खाली होंगे।
एक अन्य प्रोजेक्ट देखें, जिसमें सूखे व गीले कचरे को अलग करने वाला सेंसर-आधारित यंत्र बनाया है। मैसूर के पास सरकारी हाईस्कूल में नवमीं कक्षा के चार व आठवीं कक्षा के एक विद्यार्थी नागामणि, नयना पी, सिंचना एन, नंदिता और दिव्या पी का बनाया प्रोटोटाइप स्वचालित रूप से कचरा छांटता है।
डस्टबिन के ऊपर लगा सेंसर कचरे की नमी की मात्रा का विश्लेषण करता है, और रीडिंग के आधार पर उपकरण स्वचालित रूप से कचरे को सूखे या गीले कचरे के लिए अलग-अलग कम्पार्टमेंट में निर्देशित करता है।
यहां तीसरा उदाहरण है। रेलवे ट्रैक पर वन्यजीवों के साथ दुर्घटना रोकने के लिए कर्नाटक पब्लिक स्कूल, मांचगोडानाकोपल्लु के पांच छात्रों ने एक प्रोटोटाइप बनाया। जंगली इलाकों में एलीफेंट कॉरिडोर के बीच से निकलने वाले रेलवे ट्रैक पर हाथियों की मौतें देखकर छात्रों ने समाधान तैयार करने का निर्णय लिया था।
कक्षा नवमीं के दर्शन बी, प्रीथम गौड़ा और भुवन के साथ ही कक्षा आठवीं के जयकुमार व कीर्थन ने ‘एनिमल सेफ्टी अलर्ट सिस्टम फॉर रेलवेज’ बनाया, ताकि वन्यजीव ट्रेन से न कुचले जाएं। उनका उपकरण लेजर व सेंसर का उपयोग करता है जो ट्रेन चालकों और रेलवे अधिकारियों को ट्रैक पार करते जानवरों के बारे में सूचित करता है, जिससे वे समय पर ट्रेन रोक सकते हैं।
एक और उदाहरण है, जहां सरकारी उच्च विद्यालय, हंच्या में कक्षा नवमीं की छात्रा यशस्विनी एचडी जानती थीं कि उनके गांव के लोग बार-बार बिजली कटने से परेशान हैं। जब उसे एक अवसर मिला, तो उसे पता था कि क्या करना है और उनसे एक वर्टिकल पवन चक्की प्रोटोटाइप विकसित किया।
उसने और उसके दोस्तों ने पहले 50 से अधिक घरों का सर्वे किया और पाया कि बिजली की आपूर्ति वहां के लोगों पर बहुत असर डालती है। सौर ऊर्जा व पवन चक्की के लाभ और लागत की गणना के बाद, उन्होंने सौर ऊर्जा मॉडल को छोड़ दिया।
जब उनके गांव में तेज हवा चली, तब महसूस किया कि पवनचक्कियां ही वहां सबसे उपयुक्त हैं। वर्तमान में उनका स्कूल प्रोजेक्ट ई-पिचिंग राउंड में आगे बढ़ चुका है, जहां टीम ने इस प्रोजेक्ट को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सामने प्रस्तुत किया है। चुने गए प्रोजेक्ट्स को केंद्र सरकार से अनुदान मिलने की उम्मीद है।
ये सभी छात्र गांवों में विभिन्न सरकारी स्कूलों से थे। उन्हें मैसूर के एक्सेल पब्लिक स्कूल के इनोवेशन लैब और अटल टिंकरिंग लैब में काम करने का अवसर मिला, जहां विषय विशेषज्ञों से मार्गदर्शन मिला ताकि वे कम लागत वाले समाधान बना सकें और व्यावसायिक योजनाएं तैयार कर सकें।
केवल कुछ ही नहीं, इन छात्रों ने विभिन्न क्षेत्रों में एक दर्जन से अधिक ऐसे समाधान तैयार किए हैं, जबकि पांच प्रोजेक्ट्स वित्तीय सहायता चरण में आगे बढ़ चुके हैं। जब इन लैब में ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को आने का अवसर मिला, तो ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं पर सबसे ज्यादा ध्यान गया, क्योंकि इन यंग माइंड्स से बारीक से बारीक चीज भी नहीं छूट सकती।
175 से अधिक छात्रों और 36 शिक्षकों ने चयनित स्कूलों से इनोवेशन लैब में मेंटर्स के साथ काम किया और स्वास्थ्य, सामाजिक, स्थिरता, कृषि, ऊर्जा समस्याओं के समाधान के लिए प्रोटोटाइप बनाए। जैसा इन बच्चों ने अपनी स्थानीय समस्याओं के बारे में सोचा, वैसे ही हर बच्चा अपनी-अपनी स्थानीय समस्याओं के बारे में सोचकर उनका समाधान खोज सकता है।
फंडा यह है कि अगर हम हर युवा मन को ग्रामीण व शहरी में बांटे बिना उन्हें सही टूल और मदद उपलब्ध कराएं, तो यकीन करें, हमारे बच्चे समस्याओं के समाधान खोजने में बहुत अच्छे हैं।
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एन. रघुरामन का कॉलम: सही मदद मिले तो ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे भी चमत्कार कर सकते हैं