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- N. Raghuraman’s Column Not Sympathy, Your Good Advice Will Help Some People
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
बेंगलुरु में इनकम टैक्स इंस्पेक्टर होने के बावजूद, लोग उन्हें कौतूहल से देखते और ताने देने के साथ उपहास करते। पर पानीपत के रहने वाले 4 फीट 4 इंच कद के 23 वर्षीय यह नौजवान हमेशा से ही सम्मान और गरिमा चाहते थे। क्योंकि वह ड्वारफिज्म (बौनेपन) से पीड़ित थे, जिसका मतलब था कि उनके हाथ, पैर, पेट और सिर की सामान्य वृद्धि नहीं हुई थी।
इसलिए वो आलोचकों को गलत साबित करना चाहते थे। पैरालिंपिक खेलों के लिए 31 अगस्त को जब नवदीप सिंह पेरिस पहुंचे तो वे चाहते थे कि भारत में लोग उन्हें अलग तरीके से याद रखें- छोटी हाइट के तौर पर नहीं बल्कि एक चैंपियन और पैरा-एथलीट के तौर पर। लेकिन उनकी नियति 7 सितंबर को तय होनी थी।
दो बार पैरालिंपिक में गोल्ड जीत जुके, राजस्थान-चुरु के रहने वाले 42 वर्षीय देवेंद्र झाझरिया, जो हाल में देश की पैरालिंपिक कमेटी के अध्यक्ष भी चुने गए, उन्होंने नवदीप को बिल्कुल अलग सलाह दी, जो उनके लिए काफी मददगार रही।
देवेंद्र ने नवदीप को कहा कि कई लोगों को लगता है कि जैवलिन मुख्यतौर पर हाथों से फेंका जाता है, जबकि असली ताकत पैरों से मिलती है। उन्होंने उसे सलाह दी कि जमीन से पूरी ताकत पैदा करने के लिए वह दाएँं पैर का पूरी तरह इस्तेमाल करें।
इस टेक्नीक से जमीन से फोर्स पैदा करने में मदद मिलती है, जो एकदम सटीकता और पूरी ताकत से भाला फेंकने में काम आती है। उनके पिता दलबीर सिंह, जो खुद राष्ट्रीय स्तर के कुश्ती खिलाड़ी रहे हैं, वह उसे प्रेरित करते रहते हैं और अपने बेटे से अपनी इच्छाएं पूरी करने की चाहत रखते हैं। और अंततः उनके बेटे ने ना सिर्फ भारत के लिए बल्कि अपने पिता के लिए भी गोल्ड जीत लिया।
वहीं नगालैंड के होकाटो होतोझे सिमा का संघर्ष भारतीय सेना में करिअर शुरू करने के तुरंत बाद ही शुरू हो गया था। उन्होंने 18 साल की उम्र में भारतीय सेना की 9-असम रेजिमेंट जॉइन की और जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में पोस्टिंग हुई।
14 अक्टूबर 2002 को अपने पहले ही असाइमेंट (चौकीबल में एक काउंटर घुसपैठ ऑपरेशन) में एक बारूदी सुरंग विस्फोट में उन्हें घुटने से नीचे का अपना बायां पैर गंवाना पड़ा। अब 40 साल की उम्र में इन नायब सूबेदार ने शुक्रवार को धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ एक और लड़ाई जीती, उन्होंने पैरालिंपिक खेलों में पुरुषों के शॉट पुट खेल में कांस्य पदक जीता।
रविवार रात जब मैं 2024 के पैरालिंपिक का शानदार समापन समारोह देख रहा था, तो मुझे अहसास हुआ कि समय आ गया है कि हम न सिर्फ इन दो खिलाड़ियों की बल्कि भिन्न रूप से सक्षम मेडल जीतने वाले हर एथलीट्स व फिनिशिंग लाइन तक पहुंचकर मेडल से चूकने वाले हर खिलाड़ी की सफलता का जश्न मनाएं।
सात भारतीय, मेडल जीतने के करीब थे और चौथे रहे ः राकेश कुमार (व्यक्तिगत कंपाउंड तीरंदाजी), संदीप (जेवलिन थ्रो), शिवराजन सोलइमलाई, नित्य श्री (मिक्स्ड डबल्स एसएच-6 बैडमिंटन), सुकांत कदम (पुरुष एकल एसएल-4 बैडमिंटन), शैलेष कुमार (पुरुष ऊंची कूद), हरविंदर सिंह, पूजा (मिक्स टीम रिकर्व ओपन), सिमरन (वुमंस 100 मीटर)। 84 एथलीट्स वाले दल ने भारत के लिए न सिर्फ 29 मेडल जीते ( सात गोल्ड, नौ सिल्वर, 13 ब्रोन्ज) बल्कि भारत पैरालिंपिक में शामिल देशों में 18वें क्रम पर रहा, साथ ही उन्होंने ये भी साबित कर दिया है कि हमारा पैरा खेलों के इकोसिस्टम ने एक लंबा सफर तय किया है।
अब आपको जब भी कोई भिन्न रूप से सक्षम व्यक्ति व्हील चेयर पर या मदद लेता नजर आए, तो उनका अभिवादन करें और ऐसे समाज का हिस्सा बनने के लिए उनके धैर्य और दृढ़ संकल्प की सराहना करें, जो समाज उनको एक साधारण-सा रैंप तक उपलब्ध नहीं करा सकता या ऐसे बाथरूम नहीं बना सका, जहां व्हीलचेयर अंदर जा सके।
फंडा यह है कि एक राष्ट्र के तौर पर हम मानवता की सीढ़ी पर ऊपर तभी चढ़ सकते हैं, जहां हम इन भिन्न रूप से सक्षम लोगों को देखकर उनका मखौल न उड़ाएं, बल्कि उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए अच्छे सलाहकार बनकर उभरें।
एन. रघुरामन का कॉलम: सहानुभूति नहीं, आपकी अच्छी सलाह कुछ लोगों की मदद करेगी