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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
जयपुर में गुरुवार को 20 से 40 साल के वो युवक खुले मैदान में तेज धूप से बचने के लिए छांव तलाश रहे थे। दिसंबर में ऐसी धूप वहां असामान्य थी। अमेरिका रहने वाले ये भारतीय युवा सोनल माथुर व सागर अग्रवाल की शादी में मेहमान बनकर आए थे और गर्मी से बेचैन थे।
जिस तरह वे अपनी त्वचा का ध्यान रख रहे थे, उससे मुझे लगा कि ये वो भारतीय हैं, जो अब स्किनकेयर को शादी या खास मौकों से पहले एक बार वाला समाधान नहीं मानते। वे मां या पत्नी से प्रोडक्ट उधार लेने में भी भरोसा नहीं रखते।
ये साबुन और शेविंग क्रीम तक सीमित रही हमारी पीढ़ी से अलग हैं। यह नई पीढ़ी क्लींजर, सनस्क्रीन, सीरम और टारगेटेड ट्रीटमेंट इस्तेमाल करती है और अपनी स्किन टोन को सिल्वर स्क्रीन के हीरो जैसा रखने के तरीके भी जानती है।
उन्होंने मुझे करीब 80 साल पहले की एक युवती की कहानी याद दिला दी, जो पियानो रीसाइटल की तैयारी कर रही थी। खुद को टॉमबॉय मानने वाली वह लड़की तब हैरान हुई, जब मां ने उसके चेहरे पर क्रीम, ब्लश और पाउडर लगाया। उसका पूरा रूप बदल गया।
उसने पहली बार कॉस्मेटिक्स की परिवर्तनकारी ताकत को जाना, जिसने खूबसूरती को लेकर उनके मन में जीवनभर की रुचि जगा दी। वह लड़की सिमोन टाटा (नी डुनोयर) थीं। स्विट्जरलैंड के जिनेवा में पली-बढ़ीं सिनोम की शादी 1955 में नवल टाटा से हुई। आगे चलकर वे लैक्मे कंपनी को बढ़ाने वाली शख्सियत बनीं।
लैक्मे टाटा का वेंचर था, जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नेहरू के आग्रह पर हुई। नेहरू ने देखा भारतीय महिलाएं बहुतायत में आयातित कॉस्मेटिक्स पर निर्भर हैं, जिससे विदेशी मुद्रा बाहर जा रही है। इस प्रोडक्ट का नाम फ्रेंच ओपेरा लैक्मे से लिया गया था, जो देवी लक्ष्मी से संबंधित है। लैक्मे को भारत में घर-घर पहुंचाने वाली सिमोन टाटा का पिछले महीने 95 साल की उम्र में निधन हो गया।
सिमोन के मार्केटिंग-प्रयास अब भारतीय पुरुषों की स्किनकेयर को अपग्रेड कर रहे हैं। शादी में अपनी स्किन को तेज धूप से बचाने के लिए छांव तलाश रहे उन युवकों ने माना कि अब वह दौर बीत गया, जब पुरुष बाल झड़ने पर या शादी जैसे खास मौके से पहले ही स्किन क्लीनिक जाते थे।
उन्होंने कहा कि ‘अब कॉलेज से निकलते ही युवकों को स्किनकेयर, एक्ने ट्रीटमेंट, पिगमेंटेशन सॉल्यूशन और सनस्क्रीन के बारे में पूछताछ करते देखा जा सकता है।’ इस अखबार में बिजनेस सेक्शन कवर करने के नाते मैंने देखा है कि यह बदलाव निवेशकों की दिलचस्पी इस सेक्टर में बढ़ा रहा है और बड़ी एफएमसीजी कंपनियां अधिग्रहणों के लिए प्रोत्साहित हो रही हैं। इन युवाओं से मैंने सनस्क्रीन को लेकर कुछ बातें सीखीं, जो आपके भी काम आ सकती हैं।
1. मौसम कोई भी हो, सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणों से त्वचा की सुरक्षा जरूरी है। 2. सनस्क्रीन की एक्सपायरी होती है। इसे तीन साल तक इस्तेमाल कर सकते हैं। 3. सनस्क्रीन बाहर ले जाते समय उसे छांव में या तौलिए में लपेटकर रखें। 4. लंबे समय तक बाहर रहना हो तो एसपीएफ 30 या उससे ज्यादा की क्रीम का इस्तेमाल करना चाहिए। 5. सामान्यत: इसे हर दो घंटे में दोबारा लगाना चाहिए। वॉटरप्रूफ या वॉटर-रेजिस्टेंट सनस्क्रीन लगाने पर भी तैराकी या बहुत ज्यादा पसीना आने के बाद इसे फिर से लगाएं। आप सोचिए, पुरुषों से ऐसे टिप्स मिल रहे हैं। जो बदलाव दिख रहा है, वह सिर्फ पुरुषों की सोच का नहीं, बल्कि एफिकेसी, केमिस्ट्री और एजुकेशन पर गहरे फोकस से जुड़ा है। हैरानी नहीं कि क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म भी ऐसी आदतों के शुरुआती संकेत देख रहे हैं, जिनमें पुरुष अब पिछले साल की तुलना में लगभग 100% ज्यादा ग्रूमिंग प्रोडक्ट्स खरीद रहे हैं।
फंडा यह है कि सेल्फ केयर भी उतनी ही जरूरी है, जितना अच्छा दिखना। यह आत्मविश्वास बढ़ाती है और पब्लिक प्लेस और कामकाज के वक्त बॉडी लैंग्वेज बेहतर बनाती है। लेकिन जिन केमिकल्स को हम स्किन पर लगा रहे हैं, उन्हें सीखना-समझना भी जरूरी है।
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एन. रघुरामन का कॉलम: सनस्क्रीन लगाने से पहले इसे समझिए
