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- N. Raghuraman’s Column Trust Is The Biggest Asset Even For Roadside Businessmen
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
इससे पहले उसने मुझे कभी नहीं देखा था, पर इस रविवार को उसने मुझे बुलाकर कहा, ‘बाबू जी हम बिसलेरी पानी यूज करते हैं।’ मैंने बस ‘गुड’ कहा और वहां से चला गया। आप सोच रहे होंगे क्यों? बात ये नहीं थी कि वह मुझसे झूठ बोल रहा था।
दरअसल उसकी खुद की स्वच्छता डराने वाली थी। उसने शेव नहीं किया था। काम के लिए इस्तेमाल उसका गमछा कंधे पर था और धीरे से कानों पर चिल्ला रहा था कि कृपया मुझे नहला दो। उसके नाखून कह रहे थे, कृपया करके क्या मुझे थोड़ी देर के लिए गर्म पानी में डुबोकर रखोगे, ताकि इसके अंदर जमा सूखा मैल बाहर आ सके।
पैर पर बेतरतीब सफेद मोटी परत चढ़ी थी और पैरों को भी तेल से मालिश की दरकार थी। उसकी फुटवियर टायर जैसे किसी चीज से बनी थी, और वो अब साफ-साफ िदख रहा था क्योंकि वह अपनी कार्ट के बाहर खड़ा था और काला पॉलिश करवाने के लिए कुछ लोगों को बुला रहा था।
संक्षेप में कहूं तो उस व्यक्ति को ओवरऑल क्लीनिंग की जरूरत थी। उसकी कार्ट पर एक नोटिस था, “हम सिर्फ बिसलेरी वॉटर यूज करते हैं।’ पहले से उलट अब उसकी कार्ट में सबकुछ साफ-सुथरा व व्यवस्थित जमा था। फिर भी, लोग उसके स्टॉल के सामने रुके बिना वहां से जा रहे थे।
उसी सड़क पर एक अन्य स्टॉल पर भी बैनर था, “मिनरल वॉटर पानी-पूरी’। ये बोर्ड कार्ट पर उसके नाम से भी बड़ा था। मैं समझ सकता था कि पुणे में सड़क किनारे स्टॉल वालों के लिए स्थानीय लोगों का फिर से विश्वास हासिल करना कितना जरूरी हो गया है, जो उन्होंने गुइलैन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के प्रकोप के बाद खो दिया है, जिसने 200 से अधिक लोगों को चपेट में ले लिया और 11 ने जान गंवाई। ये प्रकोप 2019 में पेरू में हुई घटना के जैसा ही था और कैंपिलोबैक्टर संक्रमण से संबद्ध था, स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि ये दूषित पीने के पानी के जरिए आया।

मैं इस वीकेंड पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज रोड पर चल रहा था, जो युवाओं के बीच सबसे लोकप्रिय सड़क है, और बदलती ज़मीनी हकीकत देखकर हैरान था। मेरा दोस्त, जिसे मैं मुंबई से एक दिन की यात्रा पर मिलने आया था, उसने मुझसे कहा “पुणे में पानी पूरी की बिक्री तेजी से गिरी है।”
मुख्य शहर से बाणेर तक की यात्रा ने सब कुछ उजागर कर दिया था। नाशिक की अनुष्का अंकुश करात जैसे छात्र जो महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग की कोचिंग के लिए यहां आए हैं, उनके मन में भी हिचकिचाहट आ गई है।” ये अकेली हॉस्टल स्टूूडेंट नहीं, उसके जैसे कई लोग जो स्ट्रीट फूड का आनंद लेते थे, अब सड़क पर कुछ खाने से पहले दो बार सोचते हैं। अनुष्का को हाल ही में तेज बुखार था और उसके माता-पिता ये जानने पुणे भागे कि वह जीबीएस से जुड़ी बीमारी से पीड़ित तो नहीं है!
मैं बदलती बिजनेस प्रेक्टिस देख रहा हूं। कोई भी विक्रेता बर्तन में पानी मिक्स करने के लिए अपने हाथ नहीं डाल रहा। कुछ ने गन्ना रस निकालने वाली मशीन की तरह एक प्रकार की मशीन लगाई है और उनका उपयोग कंटेनर में पानी को हिलाने के लिए करते हैं।
वहीं कुछ लोगों ने खट्टे-मीठे पानी वाले घड़े में नल लगाए हैं और इससे पानी निकालकर कप में भरते हैं और फिर एक प्लेट में छह पानी-पूरी निकालकर ग्राहक को देते हैं, इस तरह ग्राहक खुद अपनी डिश बनाते हैं। वहीं कुछेक लोगों ने कहा कि उन्होंने ग्राहकों के हाथ में पानी-पूरी देने का तरीका तक बदल दिया है। और लोग अब नगरपालिकाओं से उन्हें नियमित रूप से परीक्षण और प्रमाणित करने के लिए कह रहे हैं।
और हम सभी जानते हैं कि ऐसा सिस्टम सिर्फ भ्रष्टाचार को बढ़ाएगा और आम लोगों को शायद ही कुछ भला होगा। यही कारण है कि सड़क किनारे की खाने-पीने की दुकान वालों को ग्राहकों का भरोसा जीतने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी और इसके लिए उन्हें रोज साफ-सुथरा खाना परोसना होगा। यह एक बाहरी मुखौटा नहीं हो सकता बल्कि एक आंतरिक भावना होनी चाहिए।
फंडा यह है कि स्ट्रीट वेंडर्स में एक नेक मानसिकता के साथ स्वच्छ भोजन परोसने की आंतरिक चेतना होनी चाहिए। इसके बदले में समय के साथ वह लोगों का भरोसा जीतेंगे और इस रवैये का नतीजा मुनाफे के रूप में सामने आएगा।
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एन. रघुरामन का कॉलम: सड़क किनारे बिजनेस वालों के लिए भी भरोसा सबसे बड़ी संपत्ति है