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- N. Raghuraman’s Column He Is Not Wrong, You Give Him A Chance To Make A Mistake
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
इस हफ्ते की शुरुआत में, जब मेरा परिवार एक दिन की यात्रा के लिए मुंबई से नाशिक के लिए निकल रहा था, तब मैंने अपनी पत्नी से पूछा कि क्या उन्होंने कबर्ड लॉक कर दिया है। पत्नी ने जवाब दिया, हां, कर दिया है। लेकिन आप मौसी पर भरोसा करना कब शुरू करोगे।
मौसी पिछले 20 सालों से हमारे साथ हैं और कुकिंग से लेकर पेट्स की देखभाल और बाकी हाउसकीपिंग स्टाफ को संभालने के साथ हर मेहमान की जरूरतों का भी ख्याल रखती आ रही हैं। वह हमारे परिवार के सदस्य की ही तरह हैं।
मुझे यह कहते हुए पत्नी से तर्क करने की जरूरत पड़ गई कि मेरी बात का भरोसे से कोई लेनादेना नहीं है। मैंने कहा, क्योंकि उनकी उपस्थिति में बाकी स्टाफ आता है, इसलिए अगर कुछ गलत होता है तो हम किसे जिम्मेदार ठहराएंगे। इसलिए अपनी ओर से सावधान रहना बेहतर है। पर मेरी पत्नी इससे संतुष्ट नहीं दिखीं।
खुशकिस्मती से तभी मेरे विचारों के पक्ष में एक कहानी मोबाइल पर आई। इसमें बताया कि कैसे बेंगलुरु में एक सब्जी विक्रेता सामान्य रसीद के बजाय ग्राहकों के लिए बेंगलुरु मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (बीएमटीसी) के प्रतीक वाले कस्टम-प्रिंटेड टिकट रोल का प्रयोग कर रहा था।
बीएमटीसी अपने टिकट, रोल पर इलेक्ट्रॉनिक टिकटिंग मशीन से प्रिंट करती है, जबकि इस विक्रेता ने अपनी मशीन का प्रयोग किया। ये असामान्य घटना सोशल मीडिया पर सामने आई, जिसके बाद बीएमटीसी को जांच करनी पड़ी।
सादे कपड़े पहनकर बीएमटीसी की विजिलेंस शाखा ने इस दुकान से कुछ सब्जियां ली और बीएमटीसी के चिह्न वाली रसीद ली। सच सामने आने के बाद अधिकारियों ने उस विक्रेता को रंगे हाथों पकड़ लिया है! उसकी दुकान पर ऐसे दो रोल मिले! जांच में पता चला कि उसे ये रोल सड़क किनारे पड़े मिले थे।
अब विजिलेंस की टीम दुकानदार को बीएमटीसी टिकट रोल और इसके प्रतीक का उपयोग करने के लिए जिम्मेदार ठहरा रही है, जो गलत हो सकता है। लेकिन मेरा सवाल यह है कि जब ये रोल एक आउटसोर्स की गई प्रिंटिंग प्रेस द्वारा और केवल बीएमटीसी डिपो को दिए जाते हैं, तो यह सड़क के किनारे कैसे पहुंचे?
चूंकि हर रोल पर 90 से 100 टिकट होती हैं, ऐसे में क्या ड्यूटी पर तैनात कंडक्टरों को रोल जारी करते समय कोई गड़बड़ी हुई है? या यह किसी बड़े घोटाले की ओर इशारा है? पूरी जानकारी जाने बिना, एक विक्रेता को दोषी ठहराना तर्कसंगत नहीं लगता।
फिर जब हम नाशिक पहुंचे, तो एक व्यक्ति ने घर आकर मेरी पत्नी को बिल सौंपा और कहा कि हमने महाराष्ट्र हाउसिंग एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (म्हाडा) का नॉन एग्रीकल्चर टैक्स बीते दो सालों से नहीं भरा और ये 9,990 रु. है। पत्नी ने बिल लिया और बिल्कुल वही किया, जो बीएमटीसी की विजिलेंस शाखा ने किया था, उन्होंने मुझसे पूछा कि इतना ज्यादा बकाया कैसे है?
रसीद देखकर मुझे समझ आया कि ये नंबर्स मराठी में लिखे हैं और इसे 1,110 रु. पढ़ा जाना चाहिए ना कि 9,990 रु.। (मराठी लिपि में ये 9,990 लग रहा था) चूंकि बिल देने वाला नहीं दिखा, ऐसे में मैंने म्हाडा नाशिक के चीफ ऑफिसर शिवकुमार अवलकांते को बुलाया और पूछा कि उनका स्टाफ 9,990 रु. का दावा कैसे कर रहा है? उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई का वादा किया।
जब मैंने पूछा कि म्हाडा जैसी बड़ी संस्था द्वारा जारी बिल में नंबर्स को अंकों में लिखने के बाजू में ही शब्दों में भी क्यों नहीं लिखा जा सकता, तब उन्होंने मेरी बात से सहमति जताई और यहां तक कि राजस्व विभाग के पास भी इसका कोई उत्तर नहीं था और कहा कि ये एक अच्छा सुझाव है क्योंकि मैदानी अमला बिलों को गलत पढ़ सकता है। इसकी भी संभावना है कि बिल वितरक ने भी बिल को 9,990 रु. पढ़ा होगा, क्योंकि नंबर्स मराठी में थे।
फंडा यह है कि अगर आप अपने सिस्टम में गलतियां करने की पर्याप्त जगह छोड़ देते हैं, तो कनिष्ठ कर्मचारियों या छोटे व कमजोर लोगों पर आरोप न लगाएं और उन पर चोर का ठप्पा न लगाएं, क्योंकि वे शायद गलत नहीं हो सकते। यह आप और आपका सिस्टम है, जिसने ऐसा मौका दिया, जिसका अनजाने में इस्तेमाल हुआ।
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एन. रघुरामन का कॉलम: वो गलत नहीं हैं, आप गलती का मौका देते हैं