[ad_1]
- Hindi News
- Opinion
- N. Raghuraman’s Column Nothing Is Better Than Love And Appreciation To Strengthen Relationships
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
‘तुम्हारा बड़ा भाई तुम्हारा ख्याल रखेगा। वह बहुत ही नेक है,’ जब घर में मेहमान आते तो वे ऊंची आवाज में यह कहती थीं। वे चाहती थीं कि उनका बड़ा बेटा अपनी छोटी बहन का ख्याल रखे। कभी-कभी वे बहन के सामने भाई के काम की सराहना करते हुए कहती थीं, ‘देखो उसने तुम्हारे बालों को कितने अच्छे से संवारा है, तुम रानी जैसी लग रही हो।’ और कभी-कभी वे कहतीं, ‘कल भले ही हम न हों, पर मुझे तुम्हारी चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि तुम्हारा बड़ा भाई हमेशा तुम्हारा ख्याल रखने के लिए मौजूद है।’
ये उन सैकड़ों प्रशंसाओं में से कुछ हैं, जो मैंने बड़े होते समय अपनी मां से तब सुनी थीं, जब वे मेरी दो साल की बहन से बात कर रही होती थीं। मुझे नहीं पता कि मेरी बहन उन गम्भीर वाक्यों को समझ पाती थी या नहीं, लेकिन उस समय दस साल का बड़ा भाई- यानी मैं उसे अच्छी तरह से समझता था।
जब भी मेरी मां ऊपर कही बातों जैसा कुछ कहतीं तो बहन के लिए मेरे अंदर प्यार उमड़ पड़ता। मैं उसके प्रति बहुत केयरिंग हो जाता। अगर आज भी हम भाई-बहन के बीच का रिश्ता मजबूत है तो इसका पूरा श्रेय दशकों पहले मां द्वारा जोड़े गए प्रेम के उस बंधन को जाता है।
पिछले सप्ताहांत मुझे साढ़े पांच दशक पुरानी ये बातें तब याद आ गईं, जब एक वीभत्स घटना ने पूरे मुंबई को हिलाकर रख दिया। मुंबई के एक सुदूर उपनगर नालासोपारा में छह साल की बच्ची की उसके 13 साल के चचेरे भाई ने बेरहमी से हत्या कर दी थी।
उसे लगता था कि उसके परिवार के लोगों सहित उसके घर आने-जाने वाले रिश्तेदार और पड़ोसी भी उससे ज्यादा उस बच्ची को प्यार करते हैं। नाबालिग आरोपी बच्ची को खेलने के बहाने एक सुनसान जगह पर ले गया और गला घोंटकर उसकी हत्या करने के बाद एक बड़े पत्थर से उसका चेहरा कुचल दिया।
उसने पुलिस को बताया कि उसने यह कृत्य रामन राघव के बारे में एक फिल्म देखने के बाद किया था, जो 1960 के दशक में बम्बई का सीरियल किलर हुआ करता था। वह अपने सभी शिकारों पर ठोस और धारदार हथियार से हमला करता था। जब पुलिस ने किशोर से उसके कृत्य के बारे में पूछा तो उसने जवाब दिया कि वह गुस्से में था, क्योंकि सभी लोग उसे नजरअंदाज करके उसकी चचेरी बहन पर प्यार बरसाते रहते थे।
यह घटना किशोरावस्था के दौरान भावनात्मक विकास और पारिवारिक गतिशीलता की जटिलताओं की ओर ध्यान आकर्षित करती है। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अगर किसी बच्चे को लगता है उससे ज्यादा किसी और को प्यार किया जा रहा है तो इससे दूसरे बच्चे में ईर्ष्या और गुस्सा पैदा हो सकते हैं।
कभी-कभी ये भावनाएं चरम सीमा तक पहुंच जाती हैं, जैसा कि ऊपर वाले मामले में हुआ। पिछले पचास सालों में दुनिया बहुत बदल गई है। दोस्तों द्वारा बुलीइंग पहले बहुत कम थी, लेकिन 70 और 80 के दशक के मध्य में यह काफी हद तक बढ़ने लगी।
1975 के बाद से समाज में आक्रामकता का महिमामंडन देखा जाने लगा, जो कि उस समय की फिल्मों में नजर आता है। और फिर आधुनिक तकनीक के चलते माता-पिता का इस पर से नियंत्रण खो गया कि उनका बच्चा स्क्रीन पर क्या देख रहा है।
दूसरी ओर मानवीय इच्छाएं बढ़ी हैं। बढ़ते भौतिक उपभोग ने माता-पिता दोनों को परिवार की वित्तीय जरूरतों में योगदान देने के लिए मजबूर किया है, जिसके कारण उन्हें अपने बच्चों को बाहरी लोगों की देखभाल में छोड़ना पड़ रहा है। इससे भी बच्चों पर से माता-पिता की निगरानी घटी है।
कुछ मामलों में मनोवैज्ञानिक अपोजिशनल डिफायंट डिसऑर्डर (ओडीडी) को इसका कारण बताते हैं, जो ज्यादातर बचपन में ही होता है। ओडीडी से पीड़ित बच्चे अपने दोस्तों, माता-पिता, शिक्षकों और अन्य के प्रति असहयोगी, अवज्ञाकारी और शत्रुतापूर्ण व्यवहार का पैटर्न दिखाते हैं। वे दूसरों को ज्यादा परेशान करते हैं। और इसकी सबसे अच्छी दवा प्यार है।
फंडा यह है कि प्यार और सराहना पैरेंट्स के लिए कई समस्याओं की सार्वभौमिक दवाई है। और हमारी मांओं को यह दवाई बनाने में पीएचडी हासिल है।
[ad_2]
एन. रघुरामन का कॉलम: रिश्तों को मजबूत करने के लिए प्यार और सराहना से बेहतर कुछ नहीं