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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
1970 और 80 के दशक में केएन कौल- जो एक कश्मीरी पंडित थे- रोश (Roche) उत्पादों के जीएम थे। यह प्रमुख फार्मा कंपनियों में से एक थी, जो अन्य दवाओं के अलावा सेरिडॉन जैसी गोलियां बनाती थी। उन्हें सीनियर लोगों को हैंडल करने का हुनर आता था। एक दिन उन्होंने मुझसे कुछ वरिष्ठतम लोगों से कुछ जानकारी लेने को कहा।
मैंने उनमें से प्रत्येक को इंटरकॉम पर कॉल किया। चूंकि मैंने नया-नया जॉइन किया था, इसलिए दो अधिकारियों ने वह महत्वपूर्ण जानकारी साझा नहीं की और कहा कि वे सीधे शीर्ष व्यक्ति से शेयर कर देंगे। मैंने कौल को इस बारे में बताया।
उन्होंने तुरंत इंटरकॉम उठाया और उन अधिकारियों से कहा, ‘जो भी काम कर रहे हो, उसे वहीं छोड़कर तुरंत मेरे केबिन में आओ। मुझे बहुत जरूरी काम है।’ वे अधिकारी शॉर्टहैंड नोटबुक लेकर भागते हुए आए। उन दिनों टाइपराइटिंग और शॉर्टहैंड नोटबुक में नोट्स लेना किसी जूनियर का काम नहीं था, बल्कि वरिष्ठ अधिकारियों को भी यह हुनर आता था ताकि वहां मौजूद कोई भी व्यक्ति नहीं जान सके कि वे क्या लिख रहे हैं।
कौल ने अधिकारियों को उनके नाम से पुकारते हुए कहा, ‘कृपया मुझे बताएं कि इस प्रोजेक्ट का क्या स्टेटस है और यह कब तक पूरा होगा?’ दोनों ने अपनी-अपनी तारीख बताई। उन्होंने मेरी तरफ देखा और अपनी आंखों से पूछा, ‘क्या आपने तारीखें नोट कर ली हैं?’ मैंने बिना कुछ बोले सिर हिला दिया।
फिर कौल ने उनसे कहा, ‘धन्यवाद’, जिसका मतलब था कि वे जा सकते हैं। दोनों अधिकारी हैरान थे और उनमें से एक ने पूछा, ‘आपने तो कुछ जरूरी काम बताया था। मैंने यहां आने के लिए प्रोडक्शन लाइन बंद कर दी है।’ कौल ने शांति से और मुस्कराते हुए कहा, ‘यह मेरे लिए जरूरी था।’
और अपने चेहरे पर और भी बड़ी मुस्कान लाते हुए उन्होंने कहा, ‘मुझे पता है कि आप लोग फैक्टरी में व्यस्त हैं, यही वजह है कि मैं आपको परेशान नहीं करना चाहता था। इसीलिए अब से अगर रघु भविष्य में मेरी ओर से कोई जानकारी मांगे, तो उसे दे देना।’
उन्होंने हर शब्द स्पष्टता से कहा और आखिरी शब्द जोड़ना नहीं भूले- ‘बहुत-बहुत धन्यवाद।’ तब से वे अधिकारी बिना किसी झंझट के मेरे सभी सवालों के जवाब देने लगे।
इस हफ्ते भोपाल एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच के दौरान मुझे दशकों पुराना यह अनुभव याद आ गया। सीआईएसएफ के सुरक्षाकर्मी केबी पुरोहित ने मेरा ध्यान खींचा क्योंकि उन्होंने सभी को अपनी लाइन में खड़ा किया, लेकिन चेहरे पर मुस्कान और आवाज में अभिवादन के साथ। वे ‘स्वागत है सर’ और ‘गुड मॉर्निंग जी’ से शुरू करते थे।
अगर आप मेरी जगह खड़े होकर मानवीय व्यवहार के पर्यवेक्षक की हैसियत से देखें तो समझ पाएंगे कि वे ‘स्वागत’ शब्द पर कितना कम और ‘गुड मॉर्निंग’ शब्द पर कितना जोर देते हैं। इससे इन शब्दों के मायने बदल जाते हैं। ‘स्वागत’ शब्द में कम दबाव कानों के लिए संगीत की तरह है।
‘गुड मॉर्निंग’ में उच्च दबाव वह तरीका है जिससे वे खुद को अभिव्यक्त करते हैं और दुनिया को बताते हैं कि दिन को सिर्फ दूसरों के लिए ही नहीं अपने लिए भी अच्छा बनाओ। वे आपके जूते, मफलर, टोपी उतरवा देंगे और आपको वापस जाकर उन सभी को एक सिक्योरिटी ट्रे में रखने को कहेंगे, और आप ठीक उसी तरह से यह करेंगे जैसे सांप संपेरे के कहने पर वापस अपने बक्से में चला जाता है। आप कितने भी सशक्त क्यों न हों, वे आपको बदले में उनका अभिवादन करने के लिए मजबूर करेंगे।
यकीनन, पुरोहित काम की उन कठिन स्थितियों में भी एक मिलनसार व्यक्ति हैं, जहां एक सुरक्षाकर्मी को अलग-अलग मूड स्विंग वाले विभिन्न श्रेणियों के लोगों से निपटना पड़ता है। लेकिन वे लोगों को हैंडल करने के लिए बस एक हथियार का इस्तेमाल करते हैं- अपनी मुस्कराहट।
फंडा यह है कि मुस्कान उसे देने वाले को स्वस्थ रखती है क्योंकि यह कभी भी रक्तचाप को बढ़ने नहीं देती और यह सामने वाले को निहत्था कर सकती है, क्योंकि तब वे बदले में मुस्कराने से इनकार नहीं कर सकते।
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एन. रघुरामन का कॉलम: मुस्कराहट दोधारी तलवार है- यह ठीक भी करती है और खत्म भी