
[ad_1]
- Hindi News
- Opinion
- N. Raghuraman’s Column Parents’ Eyes Are Pre nursery Books And The Best Natural Screen
6 घंटे पहले

- कॉपी लिंक
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
लगभग 51 साल पहले, एक छह साल के बच्चे ने जब कक्षा पहली में सर्वश्रेष्ठ छात्र का पुरस्कार प्राप्त किया, तो वह मुख्य अतिथि को धन्यवाद देना भूल गया। अगले दिन, प्रिंसिपल ने उसे इस चूक के लिए फटकार लगाई। बच्चे ने धीमी आवाज में उत्तर दिया, “सर, मैं मुख्य अतिथि को धन्यवाद देना भूल गया क्योंकि मैं दर्शकों में बैठे अपने गर्वित माता-पिता की चमकती आंखों को देख रहा था।’
अब 57 साल की उम्र में, पिछले महीने मुंबई में एक पुरस्कार लेते समय उस बच्चे ने बचपन के इस वाकिए को याद करते हुए कहा, “आज मैं फिर से एक मूल्यवान पुरस्कार ले रहा हूं और पहली पंक्ति में बैठी अपनी गर्वित मां की चमकती आंखें देख रहा हूं।’ जैसे ही उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला ने अपना भाषण जारी रखा, कई लोगों ने अपनी नम आंखें पोंछने के लिए रूमाल निकाले।
यह घटना मुझे हाल ही में मेरी एक यात्रा के दौरान तब याद आई जब मेरी नजर एक छोटे बच्ची की मुस्कान और चमकती आंखों पर पड़ी, जो शायद अपनी मां का ध्यान खींचने की कोशिश कर रही थी। लेकिन उसकी मां फोन में व्यस्त थी।
ध्यान खींचने की कोशिश में बच्ची ने अपनी मां की ड्रेस खींची और संतुलन खोकर सीट के गद्देदार हैंडल पर सिर मार लिया। मां मुड़ी, लेकिन उससे पहले ही मैं उसके माथे को अपने हाथ से सहलाने लगा था। मैं कहना चाहता था, ‘आपके फोन में ऐसा क्या है जो उससे ज्यादा जरूरी है?’ लेकिन शिष्टाचार ने मुझे रोक दिया। गुजरते समय के साथ मेरी और बच्ची की नजरें बार-बार मिलती रहीं।
इस प्रक्रिया में एहसास ही नहीं हुआ कि मैंने आंखों-आंखों का खेल खेलते हुए लगभग 15 मिनट बिता दिए। हां, मुझे पता है कि छोटे बच्चों की देखभाल करना थकाऊ, रिपीटिटिव और अकेलेपन वाला होता है, लेकिन निश्चित रूप से उबाऊ नहीं। मैं भगवान का शुक्रगुजार हूं कि मैं “मोबाइल-ब्रिक-एरा’ (मोबाइल फोन के दौर) में बच्चों की परवरिश नहीं कर रहा हूं! हां, हम सभी इस फोन को हर समय साथ लेकर चलते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि हमारी दुनिया केवल इस पर केंद्रित है कि बच्चे ऑनलाइन नुकसान से कैसे निपट रहे हैं। हमें सिर्फ स्क्रीन टाइम पर निगरानी की सलाह दी जा रही है, ताकि उन्हें सुरक्षित रख सकें। लेकिन हम भूल गए कि यही नियम हम माता-पिता पर भी लागू होता है। वास्तव में, जेन एक्स और बेबी बूमर्स अब युवा लोगों की तुलना में ऑनलाइन अधिक समय बिताते हैं।
अन्यथा बताइए कि जब कोई बच्चा मुस्कान जीतने की कोशिश कर रहा हो या कुछ दिखाना चाहता हो, तो हम उस पर ध्यान क्यों नहीं देना चाहते? हम किस तरह के जरूरतमंद, असुरक्षित वयस्क बना रहे हैं? यात्रा के दौरान उस मां ने कुछ वीडियो भी लिए। मुझे हमेशा ऐसे माता-पिता से डर लगता है जो अपने बच्चों को कैमरे के लेंस से ज्यादा देखते हैं।
मुझे दृढ़ता से विश्वास है कि हर सेकंड की फिल्मिंग हमेशा पोस्ट करने की चीज नहीं होती। मेरे लिए वह “बेचारी क्लिक-एडिक्ट’ थी। जोनाथन हैड्ट अपनी किताब “एंग्जियस जेनरेशन’ में कहते हैं कि कम फोन उपयोग का मतलब था कि बच्चों में मिसिंग आउट की बेचैनी कम हुई, नींद बेहतर ली और दोस्तों से मिलने का समय मिला और वे कम अकेला महसूस करते थे। क्या आपको नहीं लगता कि यह हम माता-पिता पर भी लागू होता है?
जब आपकी आंखें बच्चों की आंखों से मिलती हैं, तो विश्वास करें, उनमें भावनाओं की बाढ़ आ जाती है क्योंकि बच्चे स्वीकृति, प्रशंसा, आश्वासन, प्यार, सुरक्षा, देखभाल और गारंटी का मतलब सीखते हैं। कृपया उनसे ये प्री-नर्सरी लेसन न छीनें।
यह वह लेसन है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने की जरूरत है। कल्पना कीजिए कि 30 साल बाद वही बच्चा अपने चिकित्सक से कह सकता है, ‘मेरी मां मेरी बात सुनने के बजाय हमेशा सोशल मीडिया पर किसी के कमेंट पर कमेंट करने में अधिक व्यस्त रहती थी।’
फंडा यह है कि बचपन को केवल तभी तकनीकी कंपनियों से वापस लिया जा सकता है जब हम वयस्क मिलकर काम करें। याद रखें, हमारी माताएं हमें असली आंखों से देखती थीं, ना कि मोबाइल के लैंस से। अब हमारी बारी है कि अपना फोन एक तरफ रखें और वही करें।
[ad_2]
एन. रघुरामन का कॉलम: माता-पिता की आंखें प्री-नर्सरी किताबें और बेस्ट नेचरल स्क्रीन हैं